गौरवशाली अतीत की झांकी है बरेली का रंगमंच, विंडरमेयर से निकले रंगकर्मी बॉलीवुड की दुनिया के सितारे
रंगमंच केवल अभिनय भर नहीं, समाज की संवेदनाओं, विडंबनाओं और सांस्कृतिक चेतना को मंच पर जीवंत रूप देने का सशक्त माध्यम है। बरेली, जो उत्तर भारत के सांस्कृतिक नक्शे पर खास पहचान रखता है, रंगमंच के क्षेत्र में भी गौरवशाली अतीत समेटे हुए है। यहां का रंगमंच तीन ऐतिहासिक दौरों से गुजरा है, पारसी थियेटर, समाजसेवी रंगयात्रा और आधुनिक युग। 19वीं सदी में जब पारसी थियेटर का प्रभाव पूरे उत्तर भारत में फैला हुआ था, बरेली का रंगमंच भी उसके प्रभाव से अछूता नहीं रहा। इस दौर में पारसी थियेटर ने भी बरेली में अपनी जड़ें जमाईं। तत्कालीन स्थानीय थियेटर कंपनियों ने शेक्सपियर के साथ संस्कृत के नाटकों को हिंदी में मंचित कर लोगों को रंगमंच से जोड़ा। बरेली के मौलवी करीमुद्दीन ने पारसी मंचीय शैली को भारतीय रूप देकर स्थानीय दर्शकों में लोकप्रिय बनाया। रंगमंच का दूसरा दौर पं. राधेश्याम कथावाचक का माना जाता है। वह कथावाचक होने के साथ उत्कृष्ट नाटककार भी थे। उनके द्वारा वर्ष 1927 में लिखे गए उर्दू नाटक ‘मशरिकी हूर’ ने रंगमंच जगत में नई पहचान बनाई। उनके अन्य नाटक ‘वीर अभिमन्यु’, ‘श्रवणकुमार’, ‘परमभक्त प्रहलाद’, ‘श्रीकृष्ण अवतार’, ‘रुक्मिणी मंगल’ जैसे नाटकों ने पेशावर, लाहौर, अमृतसर, दिल्ली, ढाका तक विख्यात हुए। बरेली रंगमंच का तीसरा दौर वर्तमान है, जिसमें बरेली के कलाकार अपनी सांस्कृतिक विरासत को न सिर्फ संजोए हुए हैं, बल्कि नई पीढ़ी तक सक्रिय रूप से पहुंचा रहे हैं।
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1895 में विक्टोरिया ड्रामा कंपनी के बाद जुबली थियेटर की धूम
बरेली में 130 साल पहले वर्ष 1895 में विक्टोरिया ड्रामैटिक थिएट्रीकल कंपनी के नाम से रंगमंच की पहली कंपनी शुरू हुई थी। जमींदार अमीनउद्दीन खां ने इसकी स्थापना की थी। इस कम्पनी के एमडी मिर्जा नजीर बेग थे। इसके प्रसिद्ध नाटकों में राम लीला उर्फ मार्का ए लंका, माहीगीर, इन्द्रसभा आदि थे। वर्ष 1900 के आसपास बरेली के रईस औलाद अली ने जुबली थियेटर कंपनी शुरू की। इस कंपनी का गुलरू जरीना नाटक खूब खेला गया। कहा जाता है कि तब इस नाटक के गानों को जनता की फरमाइश पर चार-चार बार सुना जाता था।
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पं. राधेश्याम ने दिखाई नई राह तो मुंशी प्रेमचंद मिलने आए
समय बदला तो बरेली के रंगमंच को पं. राधेश्याम कथावाचक ने नई दिशा दी। उनके नाटक पेशावर, रावलपिंडी, लाहौर, मद्रास, कलकत्ता तक खेले जाते थे। लेखन के साथ ही उन्होंने दृश्य संयोजन, रूप सज्जा, वेशभूषा, अभिनय, संवाद अदायगी, नृत्य और संगीत के क्षेत्र में भी गजब का काम किया। पारसी थियेटर के मशहूर अभिनेता मास्टर फिदा हुसैन नरसी और सोहराब मोदी जैसे कलाकार पं. राधेश्याम कथावाचक को अपना गुरु मानते थे। 1930 के दशक में उनके लेखन से प्रभावित होकर नाटकों की भाषा-शैली पर विचार-विमर्श के लिए मुंशी प्रेमचंद तीन बार बरेली में पंडित राधेश्याम से मिलने आए।

जब पृथ्वीराज कपूर के नाटक ने जमकर बटोरीं तालियां
बरेली के रंगमंच की ख्याति दूर-दूर तक फैली तो वर्ष 1955 में मुंबई से पृथ्वीराज कपूर भी यहां नाटक खेलने आए। राज कपूर और शम्मी कपूर भी उनके साथ थे। हिंद टॉकीज में ‘पठान’ नाटक का मंचन हुआ। इस नाटक में पृथ्वीराज कपूर की प्रस्तुति का बरेली वासियों ने ढेरों तालियों से स्वागत किया। तीनों सुपरस्टारों ने बरेली की जनता का प्यार लुटाने के लिए आभार जताया।
विंडरमेयर से निकले रंगकर्मी बॉलीवुड की दुनिया के सितारे
रंगमंच को नई पहचान देने के लिए डॉ. बृजेश्वर सिंह ने विंडरमेयर थियेटर शुरू किया। डॉ. बृजेश्वर बताते हैं कि वर्ष 2009 में ललित कपूर के साथ मिलकर उन्होंने 200 से अधिक कलाकारों के ऑडिशन लिए। इनमें से 30 रंग कर्मियों का चयन किया गया। इनके साथ मिलकर रंग विनायक रंगमंडल बनाया गया, जो बीते 15 साल से थियेटर फेस्ट का आयोजन कर रहा है। विंडरमेयर के ‘रंग अंभग’, ‘जब शहर हमारा सोता है’, ‘खामोश अदालत जारी है’, ‘मत्त विलास’ जैसे नाटकों ने सामाजिक रूढ़िवादिता को रंगमंच के रूप में आमजन के सामने रखा। विंडरमेयर से निकले कई कलाकार आज बॉलीवुड से लेकर छोटे पर्दे पर भी अपनी छाप छोड़ रहे हैं। सृष्टि माहेश्वरी, नेहा चौहान और शिवा समेत कई रंगकर्मी बॉलीवुड में काम कर रहे हैं।
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रंगमंच की एक दर्जन से अधिक संस्थाएं सक्रिय
बरेली में ऑल इंडिया कल्चरल एसोसिएशन, रंग विनायक रंगमंडल, रंग प्रशिक्षु समेत एक दर्जन से अधिक संस्थाए रंगमंच के क्षेत्र में लंबे समय से सक्रिय हैं। वहीं, स्वर्गीय जेसी पालीवाल डॉ. ब्रजेश्वर सिंह, अंबुज कुकरेती, राकेश श्रीवास्तव, अमित रंगकर्मी, राजेंद्र सिंह, गरिमा सक्सेना, मोहनीश हिदायत, बृजेश तिवारी, लव तोमर, संजय मद, मीना सोंधी समेत 200 से अधिक रंगकर्मी हैं। बरेली में मानव कौल सरीखे कलाकार आकर रंगमंच पर अपनी अदाकारी दिखा चुके हैं। सुधीर पांडेय, रघुवीर यादव, कुलभूषण खरबंदा, कुमुद मिश्रा जैसे बॉलीवुड कलाकार भी बरेली में रंग जमा चुके हैं।
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