यहीं से शुरू हुई दुनिया और लिखी गई रामायण... पुराणों में कानपुर के पास स्थित ब्रह्मावर्त की महिमा
कानपुरः कानपुर शहर से 20 किमी की दूरी पर स्थित है, धार्मिक-पौराणिक और ऐतिहासिक स्थल ब्रह्मावर्त, जिसकी महिमा पुराणों में वर्णित है। इसे बिठूर के नाम से भी जाना जाता है। ऐसी मान्यता है कि यह क्षेत्र सृष्टि का केंद्र है, क्योंकि जल प्लावन के बाद सबसे पहले जल से प्रकट होने वाला भू-भाग यही था। पौराणिक साक्ष्यों के अनुसार ब्रह्मा ने यहीं सृष्टि रचना पूर्ण करने के उपरान्त ब्रह्मेश्वर शिवलिंग स्थापित कर अश्वमेद्य यज्ञ किया और अश्वनाल को कीलित कर स्थापित किया।
बिठूर के ब्रह्मेश्वर घाट में इसकी आज भी ब्रह्मा की खूंटी के रूप में पूजा-अर्चना होती है। बिठूर में ही महर्षि वाल्मीकि का आश्रम है। जहां बैठकर उन्होंने रामायण की रचना की थी। इसी आश्रम में श्रीराम द्वारा परित्याग किए जाने के बाद माता सीता ने निवास किया और लव और कुश नामक दो पुत्रों को जन्म दिया था। आश्रम में तीन मंदिर हैं। इनमें से एक मंदिर महर्षि वाल्मीकि का है, जिसमें उनकी पद्मासन मुद्रा में बैठे और दाएं हाथ में लेखनी लिए प्रतिमा स्थापित है। उनके पास ही भगवान विष्णु की मूर्ति स्थापित है।
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बिठूर में वाल्मीकि आश्रम ऊंचाई पर बना है। इसलिए यहां तक पहुंचने के लिए सीढ़ियां बनाई गई हैं। इन सीढ़ियों को स्वर्ग की सीढ़ी कहा जाता है। आश्रम में माता सीता की रसोई के पास यह सीढ़ियां बनी हैं। यहां श्रीराम तथा उनकी सेना के साथ लव-कुश के युद्ध के प्रमाणों के साथ घटनास्थलों के नाम भी उस कालखंड की पुष्टि करते हैं, जैसे सीता परित्याग स्थल परियर, सेना के साथ रणभूमि में मिलन रणमेल या रमेल तथा महारण झील अथवा महान झील है। यह क्षेत्र आदि काल से ही मुनियों की तपस्थली तथा यज्ञ भूमि के रूप में विख्यात रहा है। ब्रह्मा जी और मित्रसह के अश्वमेघ यज्ञ तथा पृथु द्वारा मनु महाराज से अश्वमेध यज्ञ की दीक्षा प्राप्त करने के साथ ही दुष्यंत पुत्र राजा भरत द्वारा गंगा तट पर 55 अश्वमेघ यज्ञ करने का उल्लेख श्रीमद्भागवत् के नवम् स्कन्ध में मिलता है। इससे प्रमाणित होता है कि ब्रह्मावर्त यज्ञ दीक्षा एवं यज्ञ करने का अति महत्वपूर्ण स्थान था।
बिठूर का इतिहास आजादी की लड़ाई से भी प्रमुखता के साथ जुड़ा है। 1817 में पूना के पेशवा बाजीराव पेशवा द्वितीय को अंग्रेजों से हुए समझौते के कारण पेंशन लेकर बिठूर में निवास करना पड़ा। इसके बाद तमाम मराठी परिवार यहां बस गए। बाजीराव ने बिठूर में महल तथा कई इमारतें बनवाईं। 1851 में बाजीराव की मृत्यु के उपरान्त उनके दत्तक पुत्र धूढू पन्त नाना साहब के रूप में विख्यात हुए। लेकिन अंग्रेजों ने नानाराव को पेंशन देने से मना कर दिया। अंग्रेज सरकार के इस रवैये के खिलाफ नाना साहब ने भारत को अंग्रेजों से मुक्त कराने की योजना बनाई। नाना साहब के नेतृत्व में बिठूर को केन्द्र बनाकर प्रथम स्वतंत्रता संग्राम लड़ा गया।
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इन तथ्यों और अवशेषों से मिले प्रमाण
वाल्मीकि रामायण में उत्तरकाण्ड के पैंसठवें सर्ग के श्लोक 1 तथा 2 में उल्लिखित है कि श्रीराम के भाई शत्रुघ्न ने अयोध्या से लवणासुर को मारने के लिए सेना भेजने के बाद अकेले ही प्रस्थान किया और दो दिन यात्रा के उपरान्त तीसरे दिन वाल्मीकि आश्रम पहुंचे। अयोध्या से बिठूर तक उस समय में घोड़े या अश्वरथ से 2 दिन का समय लगना पूर्णतः विश्वसनीय है। यही समयावधि सीता परित्याग की घटना में वर्णित है।
- श्रीमद्भागवत् के चतुर्थ स्कन्ध के 19वें अध्याय में राजा पृथु द्वारा मनु महाराज से ब्रह्मावर्त में अश्वमेध यज्ञ दीक्षा लेने का उल्लेख है।
- महाकवि विद्यापति द्वारा 13 वीं सदी में रचित भू परिक्रमा में बिठूर में बलराम जी के तीर्थ यात्रा में आने का उल्लेख मिलता है।
- भारत में सर्वप्रथम ताम्र निधियों की प्राप्ति बिठूर में ही हुई। इनका कालखण्ड 4000 वर्ष ईसा पूर्व तक आंका गया है।
- यहां रामायण काल के अस्त्र - शस्त्र भी मिले हैं, जिनमें से कुछ रामजानकी मंदिर में संग्रहीत हैं।
- महाराज मनु की संतान राजा उत्तानपाद के पुत्र ध्रुव की तपस्थली के स्मृति स्वरूप यहां ध्रुव टीला आज भी विद्यमान है, जिससे प्रागैतिहासिक काल तक के अवशेष प्राप्त हुए हैं।
लेखक- धर्म प्रकाश गुप्त, संयोजक सचिव, कानपुर पंचायत
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