शास्त्रीय संगीत की खुशबू से महकता रहा मुरादाबाद, बुजुर्गों के बाद आगे की पीढ़ियां साधना में लीन
मुरादाबाद, अमृत विचार। कला, साहित्य व संगीत के क्षेत्र में मुरादाबाद की भूमि हमेशा उर्वरा रही है। यहां जन्मे कई संगीत साधकों और उनकी कई पीढ़ियां शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में महत्वपूर्ण योगदान देती रही हैं।
नवगीतकार योगेंद्र वर्मा व्योम बताते हैं कि शास्त्रीय संगीत के सच्चे साधक के रूप में यहां जन्मे बुलाकी गुरु हारमोनियम के कुशल वादक होने के साथ-साथ शास्त्रीय गायन में भी अद्भुत प्रतिभा के स्वामी रहे। 1965 में 90 वर्ष की आयु में संसार को अलविदा कहने वाले बुलाकी गुरु के शिष्य जगदीश प्रसाद शर्मा, सच्चे गुरू, रघुवीर शरण रहे। व्यास परिवार के संत संगीतज्ञ पंडित पुरुषोत्तम व्यास कंठ-संगीत में प्रवीण तो थे ही बांसुरी, सितार और दिलरुबा के कुशल वादक भी थे।
भजन-गायन में श्रोताओं को मंत्रमुग्ध कर देने वाले अद्भुत प्रतिभा-संपन्न पंडित पुरुषोत्तम व्यास का 66 वर्ष की आयु में निधन हो गया था। उनके बाद व्यास परिवार की अगली पीढ़ी के रूप में उनके पुत्र मदन मोहन व्यास, ब्रह्मशंकर व्यास, गिरिधर गोपाल व्यास एवं ब्रजगोपाल व्यास के साथ ही उनकी पुत्री बालसुंदरी व्यास ने परिवार की शास्त्रीय-संगीत की समृद्ध परंपरा को आगे बढ़ाया।
ब्रह्मशंकर व्यास, गिरिधर गोपाल व्यास एवं बालसुंदरी व्यास शास्त्रीय संगीत की साधना के अतिरिक्त लेखन में भी सक्रिय रहे हैं, मदन मोहन व्यास की ‘भाव तेरे शब्द मेरे’, ‘घर एक संसार’ शीर्षक से 2 पुस्तकें, बालसुंदरी व्यास की विशाखा तिवारी के नाम से ‘हथेलियों में चांदनी’ शीर्षक से काव्य-संग्रह तथा गिरिधर गोपाल व्यास की भी 2 काव्य-कृतियां प्रकाशित हुई हैं। यहां से मुंबई जाकर बस गये ब्रह्मशंकर व्यास ने प्रसिद्ध दूरदर्शन धारावाहिक ‘रामायण’ की पटकथा लेखन में शोधपूर्ण कार्य करते हुए सहयोग किया और एक अन्य सीरियल ‘गंगा’ की पटकथा भी लिखी, इसके अलावा प्रसिद्ध अभिनेत्री हेमा मालिनी के संस्कृत शो का निर्देशन भी किया।
उस्ताद थिरकवा को विरासत में मिला था संगीत
योगेंद्र वर्मा के अनुसार प्रख्यात तबलावादक उस्ताद अहमद जान थिरकवा का जन्म भी 1891 में मुरादाबाद में संगीतज्ञों के परिवार में हुआ। उन्हें संगीत अपने पिता से विरासत में मिला। शुरुआत में यहीं से संगीत की शिक्षा प्राप्त करने के कुछ वर्षों बाद बम्बई (मुंबई) में उस्ताद मुनीर खां के शागिर्द बन गए और उन्हीं की देख-रेख में संगीत का रियाज करते रहे। वह लंबे अरसे तक रामपुर दरबार में भी रहे। उनके कई शिष्य- पंडित जगन्नाथ बुआ पुरोहित, पंडित लालजी गोखले, पंडित भाई गायतोंडे, पंडित बापू पटवर्धन, पंडित नारायण राव जोशी, पंडित सुधीर कुमार वर्मा, पंडित प्रेम वल्लभ जी तथा पंडित निखिल घोष भी बाद में प्रसिद्ध तबला वादक बने। उस्ताद अहमद जान थिरकवा को कला के क्षेत्र में भारत सरकार द्वारा सन 1970 में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था। बाद में 13 जनवरी 1976 को उनका निधन हो गया था।
मदन मोहन व मरदान भी दक्ष संगीतज्ञ थे
जिले की शास्त्रीय संगीत परंपरा में प्रमुख नाम मदन मोहन गोस्वामी का भी है। जिन्होंने सच्चे गुरु से संगीत सीखा और सुगम संगीत में महारत पाई। आकाशवाणी के संगीत कलाकार के तौर पर उनकी कई प्रस्तुतियां संग्रहणीय रहीं। उनकी पत्नी सुनीता गोस्वामी और उनके पुत्र विनीत गोस्वामी आज भी तबला, सितार, गिटार, हारमोनियम वादन के माध्यम से शास्त्रीय संगीत में योगदान कर रहे हैं। उनकी दो पुत्रियां कादंबरी और अर्चना विदेश में रहकर सांगीतिक परंपरा की खुशबू बिखेर रही हैं। इसके अलावा यहां के भट्टी मुहल्ले में जन्मे शास्त्रीय संगीत के सच्चे साधक मरदान अली खां राना साहब भी हुए। जिन्होंने 19वीं सदी में संगीत-साधना के साथ शायरी भी की और दोनों की क्षेत्रों अपना नाम कमाया। ‘गुंचा-ए-राग’ और ‘नग्मा-ए-सनम’ शीर्षक से संगीत के संदर्भ में उनकी 2 किताबें भी प्रकाशित हुई हैं। उनकी मृत्यु 2 जून 1879 को श्रीनगर(कश्मीर) में हुई।
