लखनऊ : 36 साल पुराना मामला, 23 साल से हो रही है विवेचना, विवेचक के विरुद्ध कोर्ट ने की गंभीर टिप्पणी
विधि संवाददाता, लखनऊ। 36 साल पुराने एक मामले में पिछले 23 साल से की जा रही विवेचना का अंत न होने पर भ्रष्टाचार निवारण अधिनियम के विशेष न्यायाधीश श्याम मोहन जायसवाल ने एलडीए के सहायक अभियंता विवेकानंद सिंह को एक- एक लाख रुपये की अग्रिम जमानत पर रिहा करते हुए विवेचक विरुद्ध गंभीर टिप्पणी की है।
कोर्ट ने अपने जमानत आदेश में कहा है कि इस मामले की घटना को 36 वर्ष से अधिक का समय व्यतीत हो चुका है। सभी अभियुक्तगण अपनी वृद्धावस्था को प्राप्त कर चुके हैं। परंतु इस मामले में प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज होने के बाद से लगभग 25 वर्ष बीत जाने के बावजूद अभी किसी भी अभियुक्त के विरुद्ध चार्जशीट कोर्ट में दाखिल नहीं की गई है।
कोर्ट ने विवेचक के विरुद्ध गंभीर टिप्पणी करते हुए कहा है कि शायद अभी भी पुलिस विभाग को शेष सह अभियुक्तों व प्रस्तुत मामले के महत्वपूर्ण साक्षियों की मृत्यु का इंतजार है। जमानत प्रार्थना पत्र की एक प्रति पुलिस महानिदेशक ईओडब्ल्यू पुलिस मुख्यालय लखनऊ को भेजे जाने का आदेश देते हुए, अदालत ने अपने जमानत आदेश में यह भी कहा है कि इतनी लंबी अवधि के पश्चात इस बात की प्रबल संभावना है कि प्रस्तुत मामले के विचारण के समय अधिकांश साक्षीगण की या तो मृत्यु हो चुकी होगी या वृद्धावस्था के कारण उनकी याददाश्त प्रभावित हो चुकी होगी।
कोर्ट ने कहा कि यह प्रकरण पुलिस विभाग की गैर जिम्मेदारी लापरवाही एवं उपेक्षा का सीधा एवं जीता जागता प्रमाण है।अभियोजन के अनुसार धोखाधड़ी एवं सरकार को लाखों रुपये की क्षति पहुंचाए जाने संबंधित थाना मंडियांव में दर्ज मामले की विवेचना ईओडब्ल्यू द्वारा की जा रही है। जिसमें कहा गया है कि 15 जून 1992 को लखनऊ विकास प्राधिकरण एवं नगर पालिका के अधिकारियों व कर्मचारियों द्वारा किसानों के अर्जित भूमि के प्रतिकर भुगतान में 13 वर्ष पूर्व अनियमितता की जांच कराए जाने का निर्णय लिया गया था।
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