सफारी, सन्नाटा और सरप्राइज...जंगल की गोद में बाघ और हाथियों की धरती पर अद्भुत सफर
पश्चिमी घाट की सुरम्य पहाड़ियों में बसा बांदीपुर दक्षिण भारत के कर्नाटक राज्य में स्थित प्रकृति प्रेमियों और रोमांच चाहने वालों के लिए एक आदर्श पर्यटन स्थल है। हरे-भरे जंगलों, कल-कल करती नदियों और नीरवता बढ़ाते प्राकृतिक दृश्यों से घिरे इस सुरम्य व सुंदर रमणीक स्थल पर पहुंचकर आप आज की भागदौड़ भरी जिंदगी की कशमकश कुछ देर के लिए भूलकर यहीं के हो जाएंगे। यह देश का बाघ आरक्षित राष्ट्रीय उद्यान है। यहां बंगाल टाइगर, एशियाई हाथी, तेंदुआ और गौर जैसे जीवों तथा तमाम दुर्लभ पक्षियों के साथ अजगर, किंग कोबरा और मगरमच्छ पाए जाते हैं।
बांदीपुर पहुंचने के लिए हमने अपनी यात्रा कार द्वारा मैसूर से शुरू की। करीब 82 किलोमीटर की यात्रा दो घंटे में पूरी करके हम बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान के गेट थे। बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान को देश के सबसे सुंदर और बेहतर प्रबंधित राष्ट्रीय उद्यानों में गिना जाता है। कर्नाटक में मैसूर-ऊटी राजमार्ग पर विशाल पश्चिमी घाट के सुरम्य परिवेश में स्थित यह नीलगिरि रिजर्व का महत्वपूर्ण हिस्सा है। इसके उत्तर-पश्चिम में कर्नाटक का राजीव गांधी राष्ट्रीय उद्यान (नागरहोल), दक्षिण में तमिलनाडु का मुदुमलाई वन्यजीव अभयारण्य और दक्षिण-पश्चिम में केरल का वायनाड वन्यजीव अभयारण्य है। बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान का कुल क्षेत्रफल 872.24 वर्ग किमी है। यह आंशिक रूप से चामराजनगर जिले के गुंडलुपेट तालुका और आंशिक रूप से मैसूर जिले के एचडीकोटे और नंजनगुड तालुका में आता है।
कभी यह राजाओं का था शिकारगाह बाघों व हाथियों का प्रजनन स्थल
कभी यह उद्यान राजा-महाराजाओं का शिकारगाह था। बाद में आसपास के आरक्षित वन क्षेत्रों को इसमें शामिल कर दिया गया और इसका नाम बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान रखा गया। यह राष्ट्रीय उद्यान बाघों और हाथियों का प्रजनन स्थल था, इसलिए इन्हें बचाने के लिए इस अभयारण्य को देश भर के 30 अभयारण्यों में चिह्नित किया गया। बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान बाघ, हाथी, भालू और भारतीय गौर जैसे अनोखे और तमाम लुप्तप्राय वन्यजीव प्रजातियों का घर है। यह प्रकृति प्रेमियों के लिए स्वर्ग है। नीलगिरी की तलहटी में बसे बांदीपुर का बाघों से पुराना नाता है। यह लुप्तप्राय एशियाई जंगली हाथियों का अंतिम आश्रय स्थल है। इस राष्ट्रीय उद्यान में सुस्त भालू, गौर, भारतीय रॉक अजगर, सियार, मगर और चार सींग वाले मृग जैसी कई अन्य लुप्तप्राय प्रजातियां देखने को मिलती हैं। यहां सांभर, चूहा हिरण, चीतल, सुस्त भालू और उड़ने वाली दुर्लभ छिपकली भी पाई जाती है। पक्षियों की 200 से ज्यादा प्रजातियां और वनस्पतियों की विविधता यहां का आकर्षण और बढ़ाती है। बांदीपुर में सागौन, शीशम, चंदन, भारतीय लॉरेल और कीनो के पेड़, विशाल गुच्छेदार बांस सहित कई प्रकार की इमारती लकड़ियों के पेड़ भी हैं।
प्रकृति की अद्भुत दुनिया में वन्य जीवों के घर देखने को सफारी
उद्यान के द्वार से भीतर प्रवेश करते ही हमें घने जंगलों, लुढ़कती पहाड़ियों और विशाल घास के मैदानों के साथ एक अद्भुत दुनिया के दर्शन हुए। पक्षियों की चहचहाहट, बंदरों की खों-खों और पत्तों की सरसराहट से प्राकृतिक वन्य जीवन जीवंत हो उठा। जंगली फूलों की खुशबू हवा के साथ बहकर स्वर्ग जैसा अहसास दिला रही थी। बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान वनस्पतियों और जीवों की एक समृद्ध विविधता का घर है, जिसमें बाघ, हाथी, तेंदुए, हिरण, जंगली सूअर और पक्षियों की कई प्रजातियां शामिल हैं। यहां के जीवों को उनके प्राकृतिक आवास में देखने के लिए उद्यान में सफारी की सुविधा उपलब्ध है। हमने वन विभाग द्वारा संचालित मिनी-बस सफारी की यात्रा रेंज कार्यालय से शुरू की। यहां से बस सफारी सुबह 6.15 से 9 बजे और दोपहर 2.15 से शाम 5 बजे के बीच चलती है। शुल्क 350 रुपये प्रति व्यक्ति है। जीप सफारी का किराया तीन हजार रुपये प्रति व्यक्ति है। जीप सफारी सुबह 6.15 से 8 बजे, सुबह 8 से 9.45 बजे, दोपहर 2.30 से 4.30 बजे और शाम 4.30 से 6.30 बजे के बीच संचालित होती है। पूर्व में चलने वाली हाथी सफारी अब यहां बंद की जा चुकी है। जीप और मिनी बस सफारी का समय भी मौसम और सुरक्षा कारणों से बदलता रहता है।
ट्रैकिंग, रॉक क्लाइम्बिंग, रिवर राफ्टिंग और जिप-लाइनिंग
बांदीपुर में ट्रैकिंग की सुविधा खासतौर पर युवाओं के लिए साहसिक गतिविधियां प्रदान करती है। इस रोमांचक यात्रा में आप नीलगिरी के ऊबड़-खाबड़ इलाकों में ट्रेकिंग कर सकते हैं या रॉक क्लाइम्बिंग, रिवर राफ्टिंग और जिप-लाइनिंग जैसी साहसिक गतिविधियों का भी आनंद उठा सकते हैं।
आदिवासी गांवों की परंपराएं और रीति-रिवाजों को नजदीक से देखें
प्राकृतिक सुंदरता के अलावा, बांदीपुर राष्ट्रीय उद्यान अपनी सांस्कृतिक विरासत के लिए भी जाना जाता है। यह उद्यान कई आदिवासी गांवों से घिरा हुआ है। हर एक गांव की अपनी अनूठी परंपराएं और रीति-रिवाज हैं। आपको इन गांवों में घूमते समय ऐसा लगेगा जैसे एक या दो शताब्दी पीछे चले गए हैं। आदिवासों गांवों का भ्रमण समृद्ध सांस्कृतिक विरासत का अनुभव दिलाता है। यहां लोगों की जीवन शैली बहुत करीब से देखी जा सकती है। हालांकि समय की कमी से हम इस अनूठे अवसर को बहुत थोड़े समय के लिए कार से ही देख पाए। लेकिन बांदीपुर घूमने के दौरान आसपास के आदिवासी गांवों में लोगों के रीति-रिवाजों और परंपराओं के बारे में जरूर काफी जानकारी हासिल की। -राजपुरुष
अविश्वसनीय! सावधान! यहां मिलते अलग-अलग रंग की आंखों वाले तेंदुए
इस तेंदुए की आंखें आपको सम्मोहित कर देंगी। बांदीपुर टाइगर रिजर्व में भारत में अपनी तरह के पहले दो अलग-अलग रंग की आंखों वाले तेंदुए भी हैं। एक आंख नीली-हरी तो दूसरी भूरी। यह एक जेनेटिक विशेषता हेटेरोक्रोमिया है, जिसके कारण तेंदुए की दोनों आंखों का रंग अलग-अलग होता है।
