हाईकोर्ट : बाल कल्याण समिति को एफआईआर दर्ज करने का अधिकार नहीं
प्रयागराज, अमृत विचार । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने एक मामले की सुनवाई के दौरान स्पष्ट किया कि किशोर न्याय (बच्चों की देखभाल एवं संरक्षण) अधिनियम, 2015 के तहत गठित बाल कल्याण समिति (सीडब्ल्यूसी) को पुलिस को एफआईआर दर्ज करने का निर्देश देने का कोई अधिकार नहीं है। बदायूं की सीडब्ल्यूसी द्वारा पारित आदेश को रद्द करते हुए न्यायमूर्ति चव्हाण प्रकाश की एकलपीठ ने कहा कि समिति केवल बाल विवाह निषेध अधिनियम, 2006 के उल्लंघन के मामलों में किशोर न्याय बोर्ड या संबंधित पुलिस प्राधिकरण को रिपोर्ट भेज सकती है, लेकिन सीधे एफआईआर दर्ज कराने का आदेश नहीं दे सकती।
मामले के अनुसार बदायूं की एक गर्भवती नाबालिग लड़की, जिसकी शादी पहले ही हो चुकी थी, सीडब्ल्यूसी ने उसका बाल विवाह मानते हुए जांच के बाद पुलिस को 2006 के अधिनियम के तहत प्राथमिकी दर्ज करने का निर्देश दिया। इस आदेश को लड़की के पिता और पति ऋषि पाल एवं अन्य ने चुनौती दी। याचिका में तर्क दिया गया कि समिति ने अपनी सीमित शक्तियों का अतिक्रमण किया है और वह धारा 156(3) सीआरपीसी के अंतर्गत न्यायिक शक्तियों का प्रयोग नहीं कर सकती।
कोर्ट ने कहा कि जेजे अधिनियम की धारा 27 व 30 के अनुसार समिति की शक्तियां केवल देखभाल, संरक्षण और पुनर्वास संबंधी कार्यवाहियों तक सीमित हैं। धारा 27(9) समिति को प्रथम श्रेणी न्यायिक मजिस्ट्रेट के समकक्ष अधिकार देती है, लेकिन यह अधिकार एफआईआर दर्ज कराने के आदेश तक विस्तारित नहीं होता है। कोर्ट ने स्पष्ट किया कि एफआईआर दर्ज कराने का अधिकार केवल सीआरपीसी की धारा 190 के तहत सशक्त मजिस्ट्रेट के पास है। अतः कोर्ट ने सीडब्ल्यूसी, बदायूं का आदेश रद्द करते हुए कहा कि एफआईआर दर्ज करने का उसका निर्देश कानून के विपरीत और उसके अधिकार क्षेत्र से बाहर था।
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