संपादकीय :रेलवे पर सवाल

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Published By Monis Khan
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छत्तीसगढ़ के बिलासपुर की रेल दुर्घटना ने यह सवाल फिर से उठाया है कि भारतीय रेल की सुरक्षा-संरक्षा प्रणाली क्यों चूक रही है! जांच के प्रारंभिक संकेत मानव त्रुटि या सिग्नलिंग की खामी बता रहे हैं, पर असली दोषी का पता तब चलेगा जब ब्लैक बॉक्स, सिग्नल लॉग, ड्राइवर की ड्यूटी रिकॉर्ड, ट्रैक सर्किट और नियंत्रण-कक्ष के डेटा की बारीकी से तकनीकी जांच के बाद रेल सुरक्षा आयुक्त की रिपोर्ट आएगी। इससे तय होगा कि हादसे में मानवीय भूल का हाथ था या तकनीकी प्रणाली की विफलता। 

यदि रेलवे द्वारा आधुनिक तकनीक और उच्चस्तरीय सिग्नलिंग सिस्टम के दावे के बाद भी आमने-सामने की टक्कर हो रही है, तो बेशक हमारी सुरक्षा संस्कृति ही दोषपूर्ण है। रेलवे में सिग्नलिंग इंटरलॉकिंग की किंचित नाकामी ट्रेन को गलत ट्रैक पर भेज सकती है। सिग्नल सिस्टम में खामी का मतलब है कि ट्रैक सर्किट, इंटरलॉकिंग प्रणाली ने ठीक से काम नहीं किया। ये ठीक से काम करें, इसके लिए हार्डवेयर सुधार के साथ ‘रियल टाइम रिमोट मॉनिटरिंग’ जैसी व्यवस्थाएं लागू करना जरूरी हैं। 

हालांकि लोको पायलट की थकान, संचार की कमी या समय-संवेदनशील निर्णयों में विलंब से भी दुर्घटनाएं होती हैं। दोषी पाए जाने वाले कर्मचारियों पर विभागीय कार्रवाई का प्रावधान है। निलंबन, बर्खास्तगी, दंडात्मक अभियोजन तक, लेकिन सच्चाई यह है कि अधिकांश जांच रिपोर्टें बरसों-बरस फाइलों में पड़ी रहती हैं। रेल सुरक्षा आयुक्त की अनुशंसाओं पर कार्रवाई का प्रतिशत अत्यंत अल्प है। भारतीय रेलवे की ऑडिट रिपोर्टें बताती हैं कि बड़ी संख्या में दुर्घटनाओं में मानव-त्रुटि मुख्य कारण होने के बावजूद जवाबदेही तय करने की प्रक्रिया धीमी और बेहद अपारदर्शी है। इसीलिए दोषियों और कारणों की पहचान के बावजूद सुधार तत्परता से लागू नहीं होते।

हर बड़े हादसे के बाद उच्चस्तरीय समितियां बनती हैं, नई घोषणाएं होती हैं, लेकिन जमीनी स्तर पर बदलाव, सुधार की रफ्तार बेहद धीमी रहती है। रेल मंत्रालय ने वर्षों पहले एंटी कोलिजन डिवाइस ‘कवच’ लगाने की योजना बनाई थी, ताकी इस तरह आमने-सामने की टक्कर न हो। अब तक यह कुछ हजार किलोमीटर रूट और सीमित संख्या में लोकोमोटिव तक ही सीमित है। बजटीय सीमाएं, तकनीकी संगतता और विशाल नेटवर्क इसके विस्तार में बाधा हैं, किंतु जान-माल की सुरक्षा के आगे प्राथमिकता स्पष्ट होनी चाहिए। 

हर चालित ट्रेन में ‘कवच’ या इसी तरह की स्वचालित सुरक्षा प्रणाली अनिवार्य हो। रेलवे में गाड़ी का पटरी से उतरना, सिग्नल फेल होना, लोकोमोटिव फाल्ट छोटी दुर्घटनाएं रोज घटती हैं, पर ये मीडिया में नहीं आतीं। न इन पर प्रशासनिक दबाव बनता है। छोटी लापरवाहियों पर उपेक्षा की यही प्रवृत्ति आगे चल कर बड़े हादसे का रूप ले लेती है। जरूरी है कि रेल मंत्रालय हर छोटे हादसे की रिपोर्टिंग और त्वरित विश्लेषण के बाद जिम्मेदारी तय करने की व्यवस्था विकसित करे। लालखदान की रेल त्रासदी चेतावनी है कि भारतीय रेल में तकनीकी निवेश के साथ मानव प्रबंधन, जवाबदेही और पारदर्शिता को समान महत्व दिया जाए। सुरक्षा सिर्फ उपकरणों से नहीं, प्रणालीगत ईमानदारी और सतर्कता से आती है।