महाशिवरात्रि विशेष: सात नाथ मंदिरों से घिरा बरेली, मानो देवाधिदेव महादेव खुद इसे समेटे हुए हों

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अमृत विचार, बरेली। इतिहास के पन्नों में तो बरेली का नाम अमिट है ही। धर्म-संस्कृति और आस्था के क्षेत्र में भी इसकी गौरवशाली परंपरा रही है। यहां के विश्वप्रसिद्ध नाथ मंदिरों में हर साल लाखों लोग अपनी मनोकामना पूरी करने पूजन-दर्शन करने आते हैं। शहर अपनी भौगोलिक बनावट में इन सात नाथ मंदिरों से घिरा …

अमृत विचार, बरेली। इतिहास के पन्नों में तो बरेली का नाम अमिट है ही। धर्म-संस्कृति और आस्था के क्षेत्र में भी इसकी गौरवशाली परंपरा रही है। यहां के विश्वप्रसिद्ध नाथ मंदिरों में हर साल लाखों लोग अपनी मनोकामना पूरी करने पूजन-दर्शन करने आते हैं। शहर अपनी भौगोलिक बनावट में इन सात नाथ मंदिरों से घिरा है। मानो देवाधिदेव महादेव खुद इसे समेटे हुए हैं। देवालयों की यहां विस्तृत श्रृंखला है, समृद्ध परंपरा है। स्थापत्य में अद्भुत, दर्शन में मुग्ध करने वाले और आस्था के बड़े केंद्र हैं। गुरुवार को महाशिवरात्रि के पर्व को लेकर भक्तों में गजब का उल्लास दिखा तो वहीं शहर के प्रमुख मंदिरों में सजावट की गई। तड़के 4 बजे से ही भक्तों का शिवालयों में जल चढ़ना शुरू हो जाएगा।

महाशिवरात्रि की पूर्व संध्या पर पीलीभीत बाईपास स्थित पशुपति नाथ मंदिर पर की गयी सजावट।

नेपाल की तर्ज पर नाथनगरी में बना है पशुपतिनाथ मंदिर
यहां मौजूद भगवान शिव के 7 मंदिरों में से एक मंदिर बाबा पशुपतिनाथ मंदिर सबसे नवीन है। इस मंदिर का निर्माण 16-17 वर्ष पहले ही हुआ है। इतने कम समय में भी यह मंदिर भक्तों की आस्था का बड़ा केंद्र बन गया है। नेपाल के मंदिर की तर्ज पर बने इस मंदिर में पूरे साल भक्तों की भीड़ जुटती है। नाथ मंदिरों की श्रृंखला का यह महत्वपूर्ण देवालय माना जाता है। ऐसे भक्त जो नेपाल में बाबा पशुपतिनाथ के दर्शन करने किसी कारण से नहीं जा पाते, वो इस देवालय में दर्शन कर खुद को धन्य मानते हैं।

पीलीभीत बाईपास स्थित मंदिर और आसपास का माहौल सावन माह में देखने लायक होता है। पंचमुखी शिवलिंग के ही नेपाल के बाबा पशुपतिनाथ मंदिर में दर्शन होते हैं। उसी मंदिर की तरह यहां भी पंचमुखी शिवलिंग की स्थापना की गई है। नाथ मंदिरों में यह एकमात्र शिवालय है, जहां पंचमुखी शिवलिंग हैं। मान्यता है कि यह सिद्ध देवस्थल है। दर्शन करने से बाबा पशुपतिनाथ भक्तों की सभी मनोकामना पूरी करते हैं। मंदिर परिसर में ही कैलाश पर्वत का प्रतिरूप भी बनाया गया है।

धूम्र ऋषि की तपोस्थली है धोपेश्वरनाथ मंदिर
सबसे प्राचीन मंदिरों में इसकी गिनती होती है। शहर के कैंट इलाके में स्थित बाबा धोपेश्वरनाथ मंदिर में सावन माह में तो भक्तों की भीड़ लगती ही है, आम दिनों में भी श्रद्धालुओं की दर्शन के लिए कतार लगी रहती है। कहते हैं कि इस मंदिर में पूजन-अर्चन करने से ज्ञान मिलता है और अंधकार से मनुष्य प्रकाश की ओर जाता है।

मंदिर में भक्तों की आस्था और विश्वास का बड़ा केंद्र है यहां का सरोवर। मंदिर की बनावट और स्थान बताता है कि कभी यहां घना वन था। वन में संन्यासी, मुनि तपस्या किया करते थे। बाद में यहां आबादी बसी और वन विलुप्त हो गए। मान्यता है कि धूम्र ऋ षि ने यहां भगवान शिव की तपस्या की थी। वह पांडवों के गुरु थे और परम ज्ञानी थे। ऋ षि धूम्र के नाम पर ही इसका नाम धोमेश्वरनाथ मंदिर पड़ा जो कालांतर में धोपेश्वनाथ मंदिर हुआ।

मढ़ीनाथ मंदिर में दूध से भरे कुएं में प्रकट हुआ शिवलिंग
सुभाषनगर क्षेत्र में मौजूद शिव मंदिरों में बाबा मढ़ीनाथ मंदिर का नाम बहुत आदर और श्रद्धाभाव से लिया जाता है। इस पौराणिक मंदिर में दर्शन पूजन करने रुहेलखंड मंडल से लोग आते हैं और उनकी मनोकामना पूरी होती है। यह पांचाल प्रदेश के सबसे पौराणिक मंदिरो में गिना जाता है।

मान्यता है कि इस स्थल पर देवाधिदेव महादेव की कृपा है। यहां पूजन करने वाले भक्तों को भगवान शिव शंकर सभी तरह के कष्ट से बचाते हैं। सावन में यहां का नजारा देखते ही बनता है। कांवड़ियों के जत्थे दिन-रात कतारबद्ध होकर बाबा मढ़ीनाथ के दर्शन-पूजन करते हैं और उनका आशीर्वाद लेते हैं। मढ़ीनाथ मंदिर के पीछे कई कथाएं हैं। कहते हैं कि यहां सदियों पहले एक बाबा रहते थे जो शिव के अनन्य भक्त थे।

सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र बाबा तपेश्वरनाथ मंदिर
सदियों से लोगों की आस्था का केंद्र बाबा तपेश्वरनाथ मंदिर रहा है। कहते हैं, यह मंदिर मुनियों और साधुओं की तपोस्थली रहा है। यहां कई प्रसिद्ध मुनियों ने तपस्या की थी और अपने ईष्ट देव की आराधना कर उनको प्रसन्न किया था। मान्यता है कि मुनियों की तपस्या से प्रसन्न होकर खुद महादेव भगवान शंकर ने इसे तपेश्वरनाथ नाम दिया था। इस भूमि में ऐसा तेज है कि यहां आने मात्र से जीवन के कष्ट दूर हो जाते हैं। आज यहां आबादी विकसित हो गई है और वन क्षेत्र नहीं है पर लोगों की सदियों से आस्था जस की तस है।

चरवाहे को मिला था शिवलिंग, स्थापित हुए बाबा त्रिवटीनाथ
नाथ नगरी के सबसे प्राचीन और भव्य मंदिरों में गिना जाता है बाबा त्रिवटीनाथ मंदिर। इस पौराणिक मंदिर के बारे में कई कथाएं प्रचलित हैं। इसकी स्थापना का प्रसंग भी काफी रोचक है। इस मंदिर की महत्ता का अंदाजा इसी से लगाया जा सकता है कि सावन में कांवड़ियों का जत्था यहां जलाभिषेक करने के बाद ही अपनी पूजा पूरी मानता है। यहां पहले घना जंगल था। ऐसा वन कि रात तो छोड़िए, दिन में भी यहां लोग आने से कतराते थे। पूरा दिन बीत जाने पर गिनती के लोग ही इस इलाके से गुजरते थे।

सन 1474 ईसवीं में एक चरवाहा यहां अपने मवेशियों के साथ आया था। उसे तीन वट वृक्षों के नीचे दिव्य शिवलिंग मिला था। उसी जगह पर बाबा त्रिवटीनाथ का भव्य मंदिर बनाया गया। इस मंदिर की भव्यता देखकर लोग चकित रह जाते हैं। बाबा त्रिवटीनाथ मंदिर में वट वृक्ष के पास शिवलिंग की स्थापना की गई है। यहां भगवान देवाधिदेव महादेव शिवशंकर के परिवार के दर्शन का लाभ होता है। माता दुर्गा का भव्य रूप भी यहां है जिसके लोग दर्शन-पूजन करते हैं। मंदिर की बनावट और छत पर ऊंचाई पर देव शिव की प्रतिमा इसे और भी आकर्षक बनाती हैं।

औरंगजेब के हाथी भी नहीं हिला सके थे वनखंडीनाथ शिवलिंग
वनखंडीनाथ मंदिर के कई रोचक प्रसंग हैं। यह मंदिर हिन्दुओं की आस्था का बड़ा केंद्र रहा है। कहा जाता है कि मुगलकाल में इस मंदिर की प्रतिष्ठा बादशाओं के दरबार तक पहुंच गई थी। मुस्लिम शासकों ने द्वापर युग के इस मंदिर को नष्ट करने की कई बार कोशिश की लेकिन भगवान शिव की शक्ति के आगे उनकी एक न चली।

कहा जाता है कि जब मुगल काल में इस मंदिर की प्रतिष्ठा दूर-दूर तक फैल गई तो आलमगीर औरंगजेब ने यहां के शिवलिंग को हटाने का फरमान सुना दिया था। उसने आदेश दिया कि मंदिर के शिवलिंग को उखाड़ दिया जाए। उसके सिपाहियों ने मंदिर के शिवलिंग को उखाड़ने के लिए हाथियों का सहारा लिया। शिवलिंग को जंजीरों से बांध कर दो-दो हाथियों से जोर लगवाया लेकिन शिवलिंग उखड़ना तो दूर अपनी जगह से हिली तक नहीं। हाथी पूरा जोर लगाते रहे लेकिन शिवलिंग जस का तस रहा। मुस्लिम शासकों द्वारा वन में स्थित इस मंदिर को खंडित करने की कोशिश के कारण ही मंदिर का नाम वनखंडी नाथ मंदिर पड़ा।

महाराज अलखिया साधु ने की थी तपस्या
कहते हैं कि अलखनाथ मंदिर की स्थापना के पीछे वैदिक धर्म की रक्षा का उद्देश्य था जब मुगल शासनकाल में हिंदुओं को प्रताड़ित किया जा रहा था और जबरन मुसलमान बनाया जा रहा था तो नागा साधुओं ने आनंद अखाड़ा के अलाखिया साधु महाराज को यहां भेजा था। अलाखिया ने यहां पीपल के पेड़ के नीचे तपस्या कर शिवलिंग की स्थापना की। मुस्लिम शासकों की लाख कोशिश के बाद भी बाबा श्री अलखनाथ मंदिर अपनी प्रतिष्ठा के साथ और बढ़ता गया और प्रसिद्ध हुआ। उनके नाम पर ही इस मंदिर को अलखनाथ मंदिर कहा जाता है। आज भी यह मंदिर आस्था की तपोस्थली कहा जाता है।

गर्भगृह विशाल पीपल के पेड़ की जड़ में बना है। मंदिर में प्रवेश द्वार से लेकर गर्भगृह तक महादेव देवाधिदेव शिवशंकर के कई छोटे मंदिर हैं। शनिदेव महाराज, भगवान श्रीराम के साथ ही कई देवताओं के देवालय हैं। इस मंदिर की भक्तों में विशेष महत्ता है। यहां 51 फीट ऊंची बजरंग बली की दक्षिणामुखी प्रतिमा है। यह प्रतिमा मंदिर के प्रवेश द्वार के पास ही है। करीब 51 फीट ऊंची इस विशालकाय प्रतिमा की अलौकिकता देखते ही बनती है।

यहां आने वाले भक्त श्रद्धा भाव से संकट मोचन श्री बजरंगबली की पूजा और आराधना करते हैं। मंदिर परिसर में शनि शिंघनापुर का मंदिर, पंचमुखी हनुमान और नवग्रह मंदिर है। परिसर में श्री राम जानकी मंदिर, श्री कृष्ण मंदिर और दुर्गा मंदिर भी बना हुआ है।

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