शीर्ष अदालत हैरान

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सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून की धारा 66ए सोमवार को तब सुर्खियों में आई जब देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र से इस पर जवाब-तलब किया। उच्चतम न्यायालय ने आईटी कानून की रद की गई धारा 66ए के तहत मामले दर्ज किए जाने पर ‘आश्चर्य’ व्यक्त किया और इसे ‘चौंकाने’ वाला बताया। अदालत ने पीपल्स यूनियन …

सूचना प्रौद्योगिकी (आईटी) कानून की धारा 66ए सोमवार को तब सुर्खियों में आई जब देश की सर्वोच्च अदालत ने केंद्र से इस पर जवाब-तलब किया। उच्चतम न्यायालय ने आईटी कानून की रद की गई धारा 66ए के तहत मामले दर्ज किए जाने पर ‘आश्चर्य’ व्यक्त किया और इसे ‘चौंकाने’ वाला बताया। अदालत ने पीपल्स यूनियन फॉर सिविल लिबर्टीज़ की ओर से दायर आवेदन पर केंद्र को नोटिस जारी किया है।

शीर्ष अदालत ने वर्ष 2015 में इस धारा को निरस्त कर दिया था। अदालत ने स्पष्ट कर दिया था कि यह लोकतांत्रिक मूल्यों के खिलाफ है। आश्चर्यजनक है कि प्रावधान समाप्त होने के बाद भी, देश भर में 1307 से अधिक मामले दर्ज किए गए हैं। यह धारा अगर कोई व्यक्ति सोशल मीडिया साइट पर आपत्तिजनक सामग्री पोस्ट करता है, तो उस व्यक्ति की गिरफ्तारी की इजाजत देती है।

धारा शुरू से विवादों में रही है, क्योंकि पूर्व में कई घटनाएं सामने आई हैं, जब पोस्ट करने वाले को गिरफ्तार किया गया है और जेल में डाला गया है। बाद में अदालत के हस्तक्षेप के बाद उसकी रिहाई हो पाई है। शिकायत रही है कि सरकार लोगों की आवाज दबाने के लिए आईटी एक्ट की इस धारा का दुरुपयोग करती है। देखा गया है कि कई प्रदेशों की पुलिस मशीनरी ने वैसे लोगों को गिरफ्तार किया है, जो सामाजिक और राजनीतिक मुद्दों पर आलोचनात्मक टिप्पणियां करते हैं।

राजनीतिक मुद्दों के अलावा कई बार टिप्पणी के केंद्र में राजनेता भी रहे हैं। इस कृत्य के खिलाफ पुलिस कार्रवाई करती है और तर्क देती है कि ऐसी टिप्पणियों से सामाजिक सौहार्द्र, शांति, समरसता आदि-आदि को नुकसान पहुंचता है। केंद्र की ओर से पेश अटॉर्नी जनरल केके वेणुगोपाल ने अदालत में स्वीकार किया कि भले ही खंडपीठ ने प्रावधान को रद कर दिया हो, लेकिन यह अभी भी कार्य में है। इस धारा के तहत लगातार मामले दर्ज किया जाना पुलिस की संवेदनशीलता व कार्यप्रणाली पर भी सवाल खड़े करता है। जो अदालत में दिए गए अटार्नी जनरल के बयान से भी स्पष्ट है।

अदालत में कहा गया कि जब पुलिस अधिकारी को मामला दर्ज करना होता है तो वह धारा देखता है और नीचे लिखी टिप्पणी को देखे बिना मामला दर्ज कर लेता है। अब कहा गया है कि धारा 66ए के साथ ब्रैकेट लगाकर उसमें लिख दिया जाए कि इस धारा को निरस्त कर दिया गया है। धारा रद होने के बाद सबसे ज्यादा 381 मामले महाराष्ट्र, 245 झारखंड व उत्तर प्रदेश में 245 दर्ज किए गए। अब देश भर के जिला न्यायालयों और उच्च न्यायालयों में लंबित मामलों का डेटा भी मांगा गया है।