यूपी चुनाव: बाराबंकी में रामसेवक यादव ने लहलहाई थी समाजवाद की फसल
बाराबंकी। बाराबंकी को समाजवाद का गढ़ यूं ही नहीं कहा जाता। यहां तो आजादी के बाद से ही कांग्रेस के खिलाफ समाजवादी झंडा फहराने लगा था। इसकी नींव रखी थी समाजवाद के पुरोधा रामसेवक यादव ने। रामसेवक यादव ही वह शख्स थे जिन्होंने मुलायम सिंह यादव को राजनीति में आगे बढ़ाया। अब राम सेवक यादव …
बाराबंकी। बाराबंकी को समाजवाद का गढ़ यूं ही नहीं कहा जाता। यहां तो आजादी के बाद से ही कांग्रेस के खिलाफ समाजवादी झंडा फहराने लगा था। इसकी नींव रखी थी समाजवाद के पुरोधा रामसेवक यादव ने। रामसेवक यादव ही वह शख्स थे जिन्होंने मुलायम सिंह यादव को राजनीति में आगे बढ़ाया। अब राम सेवक यादव का परिवार राजनीति के हाशिए पर है। कहते हैं कि मुलायम सिंह यादव को वैचारिक, मानसिक दृढ़ता और कुशल संगठन क्षमता रामसेवक यादव से ही मिली थी। मुलायम सिंह यादव की प्रतिभा को पहचान कर रामसेवक यादव ने ही उन्हें युवजन सभा की कमान सौंपी थी।
कौन थे राम सेवक यादव?
राम सेवक यादव का जन्म हैदर गढ़ तहसील के सुबेहा थाना क्षेत्र ग्राम ताला मजरे रुक्मुद्दीनपुर पोस्ट थलवारा (वर्तमान में पोस्ट रुक्मुद्दीनपुर ) में एक किसान परिवार में हुआ था। उनके पिता रामगुलाम यादव साधारण किसान थे। उनके छोटे भाई प्रदीप कुमार यादव राजनीति में तो डॉ श्याम सिंह यादव समाज सेवा में सक्रिय रहे। उनकी तीन बहने रामावती शांति देवी व कृष्णा थी।
रामसेवक यादव की प्राथमिक शिक्षा कक्षा 4 तक की ग्राम ताला में ही हुई। मिडिल 5 -6 की शिक्षा उन्होंने अपने एक करीबी रिश्तेदार जो कि मटियारी-लखनऊ में रहते थे, के घर पर रहकर प्राप्त की। कक्षा 7 की शिक्षा के लिए बाराबंकी के सिटी वर्नाक्युलर मिडिल स्कूल में दाखिला लिया। सिटी वर्नाक्युलर मिडिल स्कूल से कक्षा 8 की परीक्षा में सफल होने के पश्चात् हाई स्कूल की शिक्षा ग्रहण करने के लिए स्थानीय राजकीय हाई स्कूल में राम सेवक यादव ने दाखिला लिया। इंटर मीडियट की शिक्षा रामसेवक यादव ने कान्य कुब्ज इंटर कॉलेज से पूरी करी। उच्च शिक्षा स्नातक व विधि स्नातक की उपाधि लखनऊ विश्व विद्यालय से ग्रहण करके रामसेवक यादव ने बाराबंकी जनपद में वकालत करना प्रारंभ किया।
राजनीतिक सफर
1952 के चुनाव मे पूरे देश में कांग्रेस और नेहरू परिवार का डंका बज रहा था। डॉ राम मनोहर लोहिया ने कांग्रेस का मुकाबला करने के लिए सोशलिस्ट पार्टी का गठन किया। लोहिया ने कांग्रेस के उम्मीदवार डॉ जगन्नाथ बख्श दास के मुकाबले 1952 के चुनाव में राम सेवक यादव को अपना प्रत्याशी बनाया। यह चुनाव रामसेवक यादव हार तो जरूर गए लेकिन उनका सामाजिक और राजनीतिक प्रभाव बढ़ता गया। 1955 के विधानसभा उपचुनाव में पहली बार उन्होंने रामनगर विधानसभा सीट से विजयश्री हासिल की।
वे 1957 से 1971 तक बाराबंकी से लोकसभा के सदस्य रहे। इसी दौरान डॉक्टर राम मनोहर लोहिया ने प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू से कहा था कि सदन में राम सेवक यादव मेरे नेता हैं और सदन के बाहर मैं उनका नेता। सदन के अंदर जो भी बात करनी हो रामसेवक यादव जी से करिए। 1974 में वे रुदौली विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गए।22 नवंबर 1974 को उनकी मृत्यु के बाद इसी विधानसभा सीट से उनके भाई प्रदीप यादव विधायक चुने गए थे।
उनके राजनीतिक उत्तराधिकारी उनके भतीजे अरविंद कुमार यादव विधान परिषद सदस्य रहे हैं जबकि दूसरे भतीजे विकास यादव उनके नाम से कई शिक्षण संस्थान चला रहे हैं। पोता आयुष्मान यादव भी राजनीति में सक्रिय हैं परंतु पूरा परिवार अब राजनीति के हाशिए पर दिख रहा है। रामसेवक यादव के बाद बेनी प्रसाद वर्मा ने उनकी राजनीतिक विरासत संभाली। देने के बाद अब समाजवादी पार्टी हमें कोई करिश्माई नेता नहीं दिख रहा है। 2017 के चुनाव में बाराबंकी की 6 में से 5 सीटें गंवाने के बाद अब समाजवादी पार्टी के समक्ष अपना खोया हुआ गौरव हासिल करने की चुनौती है।
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