बहराइच: तहरीम सिद्दीकी को DMC पद पर मिली तैनाती, बंदिशों से निकल बनायी अलग पहचान
बहराइच। लड़की सयानी हो गयी है, घर से बाहर निकल कर लोगों के बीच नौकरी पर जाना उसे शोभा नहीं देता। कहीं कुछ ऊंच नीच हो गया तो इस प्रकार के जुमले सयानी हो रही बेटियों के रिश्तेदारों से अक्सर सुनने को मिलते हैं। लिंग भेद की यह सोंच न सिर्फ महिलाओं को शिक्षा सहित …
बहराइच। लड़की सयानी हो गयी है, घर से बाहर निकल कर लोगों के बीच नौकरी पर जाना उसे शोभा नहीं देता। कहीं कुछ ऊंच नीच हो गया तो इस प्रकार के जुमले सयानी हो रही बेटियों के रिश्तेदारों से अक्सर सुनने को मिलते हैं। लिंग भेद की यह सोंच न सिर्फ महिलाओं को शिक्षा सहित उन्हे दूसरे अधिकारों से वचित कर देती है बल्कि घर बैठी बेटियों की कम उम्र में शादी करने की वजह भी बन जाती है। ऐसी ही रूढ़िवादी परम्पराओं को तोड़ कुछ बेटियों ने उच्च मुकाम हासिल कर लोगों के सामने मिसाल पेश की है। इन्ही में से एक नाम है तहरीम सिद्दीकी का , इन्होने रिश्तेदारों की परवाह किए बिना अपनी एक अलग पहचान बनायी और सफलता के शिखर पर अपना परचम लहरा रही हैं। जिलाधिकारी डॉ दिनेश चंद्र ने 31 मार्च को इनके उत्कृष्ट कार्य के लिए प्रशस्ति पत्र देकर सम्मानित भी किया ।
छोटे से सफर से हासिल किया बड़ा मुकाम –
गाजीपुर के युसुफपुर मोह्म्दाबाद की रहने वाली तहरीम सिद्दीकी शुरू से ही स्ववालंबी थी। अपने से छोटे बच्चो कों टयूशन पढ़ाते हुए इन्होने सोशल साइंस से पोस्ट ग्रेजुएट किया और वर्ष 2013 में बनारस से अपने कैरियर की शुरुआत की। यूनिसेफ एसएम- नेट के सबसे छोटे पद सीएमसी यानि कम्यूनिटी मोब्लाइजर कोऑर्डिनेटर के पद पर रहते हुए इन्होने बच्चों और महिलाओं को स्वस्थ रहने तरीके सिखाये।
बच्चों को जानलेवा बीमारियों से सुरक्षित रखने के लिए उन्हे टीके लगवाए। पल्स पोलियो जैसे राष्ट्रीय कार्यक्रम में बढ़ चढ़ कर हिस्सा लिया और माताओं की बैठक कर उन्हे स्वस्थ रहने के तरीके सिखाये। इनके काम की लगन को देखते हुए यूनिसेफ़ ने वर्ष 2016 में मुरादाबाद व सोनभद्र जिले में ब्लॉक स्तर की ज़िम्मेदारी दी। वर्तमान में बहराइच जिले में डीएमसी यानि डिस्ट्रिक्ट मोब्लाइजर कोऑर्डिनेटर जैसी महत्वपूर्ण ज़िम्मेदारी निभा रही हैं और एक बड़ी टीम का नेतृत्व कर कम वजन के जन्मे शिशुओं की देखभाल करने मेन मदद करती हैं।
पापा ने बढ़ाया हौसला –
तहरीम सिद्दीकी बताती हैं कि वह ऐसे समुदाय से हैं जहाँ लड़कियों को आगे की पढ़ाई और उसके बाद नौकरी की इजाजत बहुत कम ही मिलती है। कैरियर की शुरुआत में रिश्तेदार नहीं चाहते थे कि लड़की होकर मै कोई नौकरी करूँ। वह अपने पिता को धन्यवाद देते हुए कहती हैं कि यह सब उन्ही के सहयोग से संभव हो पाया। आज जनपद में यूनिसेफ़ के महत्वपूर्ण पद की ज़िम्मेदारी निभाते हुए अपने पिता के साथ खुद पर भी गर्व महसूस करती हूँ।
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