याद की गई डॉ मिथिलेश कुमारी मिश्रा, 'देवयानी' रचकर हिन्दी जगत की बनीं पहली महिला महाकाव्य रचयिता
अमृत विचार, हरदोई। " यदि निर्माण नहीं कर सकते तो क्यों नाश करोगे.
जिंदा रह कर जियो मार कर क्या तुम नहीं मरोगे."
...इन प्रेरक पंक्तियों से लोकमंगल के लिए शान्ति-अहिंसा और रचनात्मकता का संदेश बिखेरने वाली पंचनद कटरी के गांव खद्दीपुर गढ़िया की बहुभाषाविद साहित्यकार एवं बिहार राष्ट्रभाषा परिषद, पटना की पूर्व निदेशक डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र की जयंती पर गुरुवार को श्री सरस्वती सदन में उनके चित्र पर माल्यार्पण व पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी गयी.
...साहित्यकार डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र के चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित करते हुए सदन की पुस्तकालयाध्यक्ष सीमा मिश्र ने उनके व्यक्तित्व एवं कृतित्व पर प्रकाश डाला. कहा कि बहुभाषाविद साहित्यकार डॉ. मिश्र के जीवन में साहित्य रचा-बसा था. उनके साहित्यिक सफर पर प्रकाश डालते हुए बताया कि हिन्दी, संस्कृत और अंग्रेजी सहित विभिन्न भाषाओं में उनकी लगभग चार दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हैं. लाइब्रेरियन सीमा ने कहा कि महाकाव्य, खंडकाव्य, उपन्यास, नाटक, कथा-कहानी संग्रह सहित विदुषी डॉ. मिश्र ने साहित्य की हर विधा पर लेखनी चलायी.
लाइब्रेरियन सीमा मिश्र ने कहा कि हिन्दी साहित्य जगत में देवयानी महाकाव्य रच कर उन्होंने पहली महिला महाकाव्य रचनाकर के रूप में स्थान पाया. कहा प्राकृत भाषा की पुस्तक "गउडबहो" का अनुवाद लखनऊ विवि के संस्कृत पाठ्यक्रम से जुड़ा है.
...लाइब्रेरियन सीमा ने कहा साहित्य सेवा की धुन से डॉ. मिथिलेश कुमारी मिश्र ने पटना से लेकर फरुखाबाद और लखनऊ तक साहित्यिक संस्थाएं स्थापित कर हिन्दी और संस्कृत के प्रचार-प्रसार को गति दी.
इस अवसर पर पलक मिश्र, आकांक्षा वाजपेयी, अवन्तिका ने भी उनके चित्र पर पुष्पांजलि अर्पित कर श्रद्धांजलि दी. राधेश्याम कश्यप सहित पाठकगण रहे.
वहीं कवयित्री अर्चना वाजपेयी ने कहा ग्रामीण पृष्ठभूमि से निकलकर विश्वमंच पर साहित्यिक पहचान बनाने के बाद गांव-घर, परिवार और लोक संस्कृति से जुड़ाव बनाये रखना बहुभाषाविद डा. मिश्र की विशेषता रही
