स्थानीय लोगों, पर्यावरणविदों ने शिमला में बढ़ते तापमान, घटते हिम आच्छादित क्षेत्रों पर जताई चिंता

स्थानीय लोगों, पर्यावरणविदों ने शिमला में बढ़ते तापमान, घटते हिम आच्छादित क्षेत्रों पर जताई चिंता

शिमला। दिसंबर की शुरुआत से ही भारी हिमपात और कंपकंपाती ठंड का दौर शुरू हो जाता था, जो मार्च के अंत तक या अप्रैल की शुरुआत तक बना रहता था और पूरा शिमला बर्फ की चादर से लिपट जाता था, लेकिन अब यह दृश्य मानो गुजरे दिनों की बात हो गया है। सर्दियों में बर्फ की चादर ओढ़ा शिमला दुनियाभर के पर्यटकों को आकर्षित करता है, लेकिन अब यहां की वादियों में अधिकतर समय सूखी-बेजान घास की परत से पटे भूरे पहाड़ दिखाई देते हैं।

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 पर्यावरणविदों और स्थानीय लोगों में घटते हिम आच्छादित क्षेत्रों और बढ़ते तापमान को लेकर चिंताएं बढ़ गई हैं। बर्फ अब अमूमन पहाड़ों के बेहद ऊंचाई वाले क्षेत्रों में ही दिखते हैं और पर्वतों की रानी ठंड की अपनी रौनक खोती जा रही है। इसका असर अब पहाड़ी शहर में सर्दियों में पर्यटकों की घटती संख्या और सूखते जल स्रोतों के रूप में पहले से कहीं अधिक दिखाई दे रहा है। जलवायु विशेषज्ञों के अनुसार, हिम आच्छादित क्षेत्र घट रहे हैं और शिमला से सटे पर्यटक शहर कुफरी एवं नरकांडा में भी बर्फबारी में कमी दिख रही है, जो मशहूर स्कीइंग स्थल भी हैं। 

‘टूरिस्ट इंडस्ट्री स्टेकहोल्डर्स एसोसिएशन’ के अध्यक्ष एम के सेठ ने कहा, हिमाचल प्रदेश में राजधानी शिमला का पर्यटन उद्योग सैलानियों की घटती संख्या से प्रभावित हुआ है। पर्यटकों को आकर्षित करने के लिए अब शहर में और अधिक पर्यटन स्थलों एवं गतिविधियों को तलाशने की जरूरत महसूस हो रही है। राज्य के सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) में पर्यटन का योगदान 7.5 प्रतिशत है। बर्फबारी शहर के लिए पानी के बारहमासी स्रोतों जैसे झरनों, धाराओं और नालों को फिर से भरने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है। कम बर्फबारी का मतलब है जल स्रोतों का सूखना और शहरों में पानी की किल्लत होना। 

2018 में पानी की कमी इस कदर बढ़ गई थी कि हर पांचवें या छठे दिन जल आपूर्ति सीमित करनी पड़ती थी, जिससे भीषण गर्मी के दौरान पर्यटकों की आमद में भारी कमी आई थी। मौसम विभाग के आंकड़ों के मुताबिक, 1989-90 में शिमला में नवंबर से मार्च तक 556.7 सेंटीमीटर बर्फबारी हुई थी, जबकि 2008-09 में इसी अवधि में यह आंकड़ा महज 105.2 सेंटीमीटर दर्ज किया गया था।

पुराने समय के लोग बताते हैं कि 1945 में शिमला में एक ही बार में रिकॉर्ड 360 सेंटीमीटर से 450 सेंटीमीटर बर्फबारी हुई थी, जिससे आम जनजीवन अस्त-व्यस्त हो गया था और यहां तक ​​कि रेलवे स्टेशन भी ढह गया था। शिमला में स्थानीय मौसम विज्ञान कार्यालय के निदेशक सुरेंद्र पॉल ने बताया, बारिश का एक अनियमित पैटर्न है, क्योंकि ग्लोबल वार्मिंग के कारण जलवायु परिवर्तन देखा जा रहा है। चरम मौसम की घटनाएं दर्ज की जा रही हैं और बर्फबारी के दिन धीरे-धीरे घटते जा रहे हैं।

जलवायु विशेषज्ञों ने कहा कि पहाड़ों की अंधाधुंध कटाई, कंक्रीट की बहुमंजिला इमारतों का निर्माण, जनसंख्या में कई गुना वृद्धि और मानवीय गतिविधियों में तेजी शिमला के लिए अभिशाप बन गई है तथा शहर अब मैदानी इलाकों की तुलना में अधिक गर्म हो गया है। स्टेट सेंटर ऑन क्लाइमेट चेंज (एससीसीसी), हिमाचल प्रदेश और भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) के अहमदाबाद स्थित स्पेस एप्लीकेशन सेंटर द्वारा उन्नत वाइड फील्ड सेंसर (एडब्ल्यूआईएफएस) उपग्रह डेटा मानचित्र का इस्तेमाल कर किए गए एक संयुक्त अध्ययन से पता चला है कि हिमाचल प्रदेश में 2020-21 में बर्फ के आवरण में 18.5 प्रतिशत की कमी आई है। 

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