Holi 2023 : Banda में अनोखे तरह से मनाई जाती होली, पहले दिन कीचड़ तो दूसरे दिन खेलते रंग, इसके पीछे की वजह है बड़ी रोचक
बांदा में अनोखे तरह से होली का त्यौहार मनाया जाता।
बांदा में अनोखे तरह से होली का त्यौहार मनाया जाता। जहां पहले दिन लोग कीचड़ से फिर अगले दिन रंग से खेलते है। इसके साथ ही गांव की चौपालों में आज भी ईसुरी और गंगाधर के फाग गूंजते है।
बांदा, [पवन तिवारी]। रंगों का त्योहार होली पर्व पर आज भी बृज के बाद बुंदेलखंड में जिस परंपरा को कायम किये हुए है। फाल्गुन माह में गुलाबी ठंड के बीच यहां की चौपालें अलाव की धीमी आंच के बीच जब लोक गायक ईसुरी और गंगाधर के फाग के साथ यहां के लोगों की जुबान पर ढोलक की थाप, खंजली और झांझ-मंजीरे की खनक के साथ सजती हैं, तो समा बंध जाती है।
21वीं सदी के भारत में होली जहां हुड़दंग और डीजे पर बजने वाले रीमिक्स के तरानों पर होने वाले डांस तक सीमित होकर रह गया है, वहीं बुंदेलखंड के गांवों में आज भी रंगों का पर्व होली परम्परागत तरीके से जिस उत्साह के साथ धूमधाम से मनाया जाता है, वह देखते ही बनता है। आपसी वैमनस्यता से दूर लोगों के दिलों में उमड़ता प्रेम और अनुराग फाल्गुन के महीने में जब सुरों में ढलकर अंगड़ाइयां लेता है तो ढोलक की थाप और खंजली के साथ झांझ की ऐसी ताल मिलती है कि लोग अपने सारे गम भूलकर बस उस रंग में रंग जाना चाहते हैं।
एक समय था कि जब फाल्गुन का महीना लगते ही गुलाबी ठंड के बीच गांव की चौपालें अलाव की धीमी आंच के साथ सजने लगती थीं। तब बुंदेलखंड के लोकगायक व लेखक ईसुरी और गंगाधर की चौकड़िया फाग “मोहन भर पिचकारी खींचे, पर गये इन सालन में ओरे। बीते जात मायके मइयां, जो तुम छैल छला हो जाते। ऐसी पिचकारी की घालन, तक कें भर मारी पिचकारी। मोहन हसबो होत रजा मेरी, पर गई लरकन की रंगदाई’’ जैसे ईसुरी के गीत होरियारों के जुबान से खुद-ब-खुद निकलने लग जाते थे।
चित्रकूटधाम मंडल के जनपद बांदा समेत महोबा, हमीरपुर और चित्रकूट के ग्रामीण इलाकों में फाग गायन की परंपरा सैकड़ों सालों से जस कि तस चली आ रही है। बुंदेलखंड में विदोखर, उमरी, निवादा, अरतरा और छानी समेत कई गांवों में आज भी तमाम मशहूर फाग गायक अपनी गायकी से फागों की पहचान कायम किये हुए हैं। फाग गायकों की टोलियां गली-कूचों में फाग गाकर होली का उत्साह बढ़ाती हैं।
फाग गायक रमेश पाल बताते हैं कि यहां के दर्जनों गांवों के धार्मिक स्थलों से होली के त्योहार का आगाज ईसुरी फागों से होता है। फिर इसके बाद ग्रामीण इलाकों के हर गली-मोहल्लों में इसका गायन होता है। बुंदेलखंड में यह परंपरा बहुत पहले से चली आ रही है। आज बुंदेलखंड के लोक गायक ईसुरी, हरनाम सिंह नरवरिया और किशोर उनके चौकड़िया फाग को अपने सुर देकर सजा रहे हैं।
पहले दिन कीचड़ तो दूसरे दिन खेलते रंग
बुंदेलखंड में होली का त्योहार दो दिन मनाये जाने की परंपरा है। इसमें पहले दिन धूल और कीचड़ की होली होती है, जबकि दूसरे दिन रंग खेला जाता है। पहले शहर के कई चौराहों में लोहे की बड़ी टंकियों में रंग घोलकर सामूहिक होली खेले जाने की परंपरा थी, लेकिन अब यह परंपरा खत्म हो गई है। अब इसकी जगह चौराहों में डीजे के तरानों पर सामूहिक नृत्य की परंपरा चल पड़ी है। कहीं-कहीं पर इस त्योहार पर एक दूसरे के कपड़े भी फाड़े जाते हैं, लेकिन कोई नाराजगी व्यक्त नहीं करता।
