यहां प्रसाद ग्रहण करने से जागृत होती है गुरुभक्ति की कुंडलिनी, भक्तों की लगती हैं लंबी कतारें

यहां प्रसाद ग्रहण करने से जागृत होती है गुरुभक्ति की कुंडलिनी, भक्तों की लगती हैं लंबी कतारें

मथुरा। राधारानी की नगरी वृन्दावन में बन रहे विश्व के सबसे ऊंचे चन्द्रोदय मन्दिर में ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी को आयोजित पानीहाटी दही चूड़ा महोत्सव का विशेष प्रसाद पाने के लिए भक्तों का हजूम जुड़ जाता है। मान्यता है कि विशेष प्रसाद के ग्रहण करने से गुरूभक्ति की कुडलिनी जागृत होती है। यह महोत्सव इस बार दो जून को मनाया जाएगा।

इस पावन दिन ही बलराम जी के अवतार तथा चैतन्य महाप्रभु के अंतरंग सखा नित्यानन्द प्रभु ने रघुनाथ दास गोस्वामी को आशीर्वाद देने के पहले उनकी परीक्षा उन्हें दंड यानी सजा देकर ली थी। इस संबंध में पौराणिक दृष्टान्त देते हुए चन्द्रोदय मन्दिर वृन्दावन के अध्यक्ष चंचलापति दास ने बताया कि रघुनाथ दास गोस्वामी का जन्म पश्चिम बंगाल के 24 परगना क्षेत्र के पानीहाटी नामक स्थान में एक जमींदार परिवार में हुआ था।

यद्यपि उनके पिता ने उनका विवाह कम आयु में ही कर दिया था। वैराग्य के भाव होने के कारण उनकी इच्छा थी कि वे चैतन्य महाप्रभु की सेवा में लग जांय तथा इसके लिए उन्होंने काफी प्रयास भी किया था मगर वे जगन्नाथपुरी में चैतन्य महाप्रभु से मिलने नही जा पाए। उन्होंने बताया कि एक बार रघुनाथ दास गोस्वामी को पता चला कि नित्यानन्द प्रभु पानीहाटी में आए हैं तो उन्होेंने निश्चय किया कि वे उनके दर्शन के लिए वहां जाएंगे।

इसके बाद वे न केवल वहां गए बल्कि बरगद के पेड़ की आड़ से नित्यानन्द प्रभु को देख रहे थे। उनमें एक समर्पित शिष्य के भाव देखकर नित्यानन्द प्रभु ने उन्हें अपने पास बुलाया और उनसे कहा कि चोरी से देखने की जगह वे सीधे भी आ सकते थे, चूंकि उन्होंने चोरी से देखने का अनुचित कार्य किया है इसलिए उन्हे यह सजा दी कि वे पानीहाटी के अधिक से अधिक संतों को दही चूड़ा खिलाये।

रघुनाथ दास गोस्वामी ने जब उनकी आज्ञा का पालन कर दिया और तमाम संतों को दही चूडा खिला दिया तो नित्यानन्द प्रभु ने उन्हें अपना आशीर्वाद दिया था। इस महोत्सव को दही चूड़ा महोत्सव भी कहा जाता है। इतिहास साक्षी है कि महान संत रघुनाथ दास गोस्वामी बाद में वृन्दावन आए और वृन्दावन से राधाकुण्ड आये जहां पर अपनी भजनकुटी में उन्होंने लम्बे समय तक न केवल भजन किया बल्कि गौड़ीय वैष्णव सम्प्रदाय के कई ग्रन्थ लिखे थे।

उनकी भजनकुटी गिर्राज जी की परिक्रमा करनेवाले करोड़ों भक्तों को आज भी प्रेरणा देती है तथा परिक्रमा के दौरान जब वे राधाकुण्ड पहुंचते है वे इस महान संत की भजनकुटी में अपनी श्ऱद्धा व्यक्त करते है। वर्तमान में संत कृष्णदास इस भजन कुटी में भजन कर रहे र्हैं। पानीहाटी दही चूड़ा महोत्सव में आयोजित कार्यक्रम के बारे में जन संपर्क अधिकारी अभिषेक मिश्र ने बताया कि इस दिन प्रातःकालीन पूजन अर्चन के बाद सायं गौरांग प्रभु और नित्यानन्द प्रभु के श्रीविगृहेां को पालकी द्वारा मंदिर प्रांगण में कल्याणी पर लाया जाता है जहां पर वैदिक मंत्रों के मध्य जलाभिषेक और पुष्प महा अभिषेक कराया जाता है।

इस दिन निताई गौरांग को बहुत ही आकर्षक पोशाक धारण कराई जाती है और विगृहों का देशी और विदेशी पुष्पों से अनूठा श्रंगार किया जाता है तथा विगृहों को नौका विहार के लिए ले जाया जाता है। वहां पर हरिनाम संकीर्तन के मध्य दोनो ही विगृहों पर पुनः पुष्प अर्पण किया जाता है । कार्यक्रम का समापन शंखध्वनि के मध्य महाआरती और फिर विशेष रूप से तैयार किये गए दही चूड़ा प्रसाद के वितरण से होता है। कुल मिलाकर कार्यक्रम श्रद्धा और शुचिता से इतना सराबोर होता है कि पूरे कार्यक्रम में एक प्रकार से भक्ति रस की गंगा प्रवाहित होती रहती है।

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