राजद्रोह कानून

राजद्रोह कानून

विधि आयोग का यह सुझाव महत्वपूर्ण है कि राजद्रोह के अपराध संबंधी दंडात्मक प्रावधानों का दुरुपयोग रोकने के लिए आवश्यक कुछ कदम उठाकर इस प्रावधान को बरकरार रखा जा सकता है। यानि राजद्रोह से निपटने वाली भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए को बरकरार रखने की आवश्यकता है। इसमें कोई संदेह नहीं है कि राजद्रोह एक विवादास्पद अवधारणा है, इसे हमारे ‘भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता के अधिकार’ के साथ संतुलन में रखा जाना चाहिए।

आरोप है कि राजद्रोह कानून का राजनीतिक असंतोष को दबाने के लिए एक उपकरण के रूप में दुरुपयोग किया जाता है। ब्रिटेन जैसे कई देशों में इसे निरस्त कर दिया गया है। सरकार को सौंपी अपनी रिपोर्ट में आयोग ने कहा कि केवल इस आधार पर यह प्रावधान निरस्त कर देने का मतलब भारत में मौजूद भयावह जमीनी हकीकत से आंखें मूंद लेना होगा कि कुछ देशों ने ऐसा किया है। इसे पूरी तरह से निरस्त करने से देश की सुरक्षा और अखंडता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ सकता है।

हाल ही में सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को बताया है कि सरकार ने भारतीय दंड संहिता की धारा 124 ए (राजद्रोह) की पुन: परीक्षा की प्रक्रिया’ शुरू कर दी है। मई 2022 में न्यायालय ने एक अंतरिम आदेश में देशभर में धारा 124 ए के तहत लंबित आपराधिक मुकदमों और न्यायालयी कार्यवाही को रोकते हुए धारा 124 ए के उपयोग को निलंबित कर दिया था। जबकि केदारनाथ सिंह बनाम बिहार राज्य (1962) मामले में सुप्रीम कोर्ट ने धारा 124 ए (राजद्रोह) की संवैधानिकता को इस आधार पर बरकरार रखा है कि यह शक्ति राज्य के खुद की रक्षा के लिए आवश्यक है। जुलाई 2021 में सर्वोच्च न्यायालय में एक याचिका दायर की गई थी जिसमें राजद्रोह कानून पर फिर से विचार करने की मांग की गई थी। 

राजद्रोह कानून को 17 वीं शताब्दी में इंग्लैंड में अधिनियमित किया गया था। संविधान सभा, संविधान में राजद्रोह को शामिल करने के लिए सहमत नहीं थी। सदस्यों का तर्क था कि यह भाषण और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता को बाधित करेगा। उन्होंने तर्क दिया कि लोगों के विरोध के वैध और संवैधानिक रूप से गारंटीकृत अधिकारों का दमन करने के लिए राजद्रोह कानून का एक हथियार के रूप में दुरुपयोग किया जा सकता है।

राजद्रोह की परिभाषा को केवल भारत की क्षेत्रीय अखंडता के साथ-साथ देश की संप्रभुता से संबंधित मुद्दों को शामिल करने के संदर्भ में संकुचित किया जाना चाहिए। शायद आज कानून में सुधार पर विचार करने का सही समय है। साथ ही इस कानून के मनमाने इस्तेमाल के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए नागरिक समाज को पहल करनी चाहिए।