पीलीभीत: 15 हजार रुपये वाला ठेला 32 हजार में खरीदा, खपाए 65 लाख..जानिए क्या है मामला
पीलीभीत, अमृत विचार। सरकारी खरीद में पारदर्शिता लाने के लिए शासन ने जेम पोर्टल की व्यवस्था तो शुरू कर दी, लेकिन इसमें भी धरातल पर पूरी तरह से पारदर्शिता नहीं हो पा रही है। कमीशनखोरी के चलते चहेते ठेकेदारों को काम दिलाने के लिए कुछ जिम्मेदार गोलमाल करने से बाज नहीं आ रहे हैं। इसकी बानगी हाल ही में शहर नगरपालिका में देखने को मिली है। जहां स्वच्छ भारत मिशन के तहत पिछले वित्तीय वर्ष का बजट खपाने के लिए महंगे दाम में खरीद कर ली गई। इतना ही नहीं अलग-अलग कैटेगरी होने के बाद भी एक ही ठेकेदार को पूरा काम दे दिया गया। जिसमें 65 लाख रुपये खपा दिए गए हैं। हालांकि इस मामले पर अफसर भी पूरी तरह से चुप्पी साध गए हैं।
स्वच्छ भारत मिशन के तहत नगरपालिका और नगर पंचायतों को बजट मिलने का प्रावधान है। जिसमें नगर पालिका संसाधन की खरीद करती है। शहर नगरपालिका को पिछले वित्तीय वर्ष में संसाधनों की खरीद करनी थी। जिसमें हैंगिंग डस्टबिन, हाथ वाले ठेले, ट्रैक्टर, ट्राली, डिपर खरीदे जाने थे। जिनका प्रयोग सफाई व्यवस्था को सुधारने के लिए होना था।
नगरपालिका के कर्मचारियों ने फाइल बनाकर अफसरों के समक्ष पेश की, तो पहले डीएम ने इस फाइल पर हस्ताक्षर करने से इनकार कर दिया। मगर कमीशनखोरी और अपने चहेते ठेकेदार को काम दिलाने के लिए नगरपालिका के जिम्मेदारों ने बोर्ड का गठन होने से पहले ही अफसरों से किसी तरह इस फाइल की स्वीकृति ले ली। स्वीकृति मिलने के बाद जेम पोर्टल पर टेंडर अपलोड किया गया।
आरोप है कि टेंडर अपलोड होने की जानकारी कहीं भी प्रकाशित नहीं की गई। चहेते ठेकेदार से साठगांठ करते हुए एक फर्म को टेंडर दे दिया गया। उसकी ओर से इन उपकरणों की सप्लाई नगरपालिका को दी गई। मगर सवाल अब यह उठता है कि जो सामान बाजार में इससे कम रेट में उपलब्ध है, उसे इतना महंगा खरीदने के लिए नगरपालिका के जिम्मेदारों ने हां क्यों कर दिया? ठेकेदार की ओर से 82 हस्त संचालित ठेले दिए हैं। प्रति ठेला कीमत 32 हजार रुपये बताई गई है, लेकिन यहीं ठेला बाजार में मात्र 15 हजार रुपये की कीमत में डस्टबिन सहित उपलब्ध है।
पालिका की ओर से 26 लाख 24 हजार रुपये का भुगतान किया है। ऐसे में माना जा रहा है कि कहीं न कहीं कमीशनखोरी के चलते 13 लाख 94 हजार का भुगतान अतिरिक्त किया गया है। इसके अलावा 100 हैंगिंग डस्टबिन खरीदे गए हैं। जिनका नगरपालिका से 1200 रुपये प्रत्येक डस्टबिन का भुगतान कराया गया है। मगर हकीकत में डस्टबिन की कीमत मात्र 800 से 850 रुपये बताई जा रही है। ठेकेदार की ओर से दिए गए डस्टबिन की क्वालिटी भी बेहतर नहीं बताई जा रही है। इसके पीछे भी सेटिंग के खेल का शोर मच गया है।
इतना ही नहीं उनका परीक्षण भी नहीं कराया गया है। जबकि नियम है कि खरीदे गए सामान का संबधित विभाग की ओर से टेक्निकल मुआयना कराकर रिपोर्ट दी जाएगी। इस सामान के अलावा दो डिपर जिसकी कीमत 12.20 लाख रुपये तय की गई। एक ट्रैक्टर-ट्रॉली भी खरीदा गया। ट्रॉली का भुगतान पालिका की ओर से 4.85 लाख किया गया। मगर हकीकत में ट्रॉली इससे आधी कीमत की भी नहीं है। इस तरह आरोप है कि कमीशनबाजी के चलते 65 लाख रुपये को ठिकाने लगा दिया। इस सामान का सत्यापन कराना भी जरूरी नहीं समझा।
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