प्रयागराज : मजिस्ट्रेट को विवेचना की निगरानी का पूर्ण अधिकार
अमृत विचार, प्रयागराज । इलाहाबाद हाईकोर्ट ने दहेज हत्या मामले में निष्पक्ष विवेचना को लेकर कहा कि न्यायिक मजिस्ट्रेट को विवेचना की निष्पक्षता की जांच और निगरानी करने का अधिकार प्राप्त है। विवेचना से व्यथित पक्षकारों को अनुच्छेद 226 के अंर्तगत याचिका के स्थान पर दंड प्रक्रिया संहिता के प्रावधानों के विकल्प का प्रयोग करना चाहिए।
यह आदेश न्यायमूर्ति अंजनी कुमार मिश्रा और न्यायमूर्ति विवेक कुमार सिंह के खंडपीठ ने दहेज हत्या के मामले की निष्पक्ष विवेचना की मांग वाली याचिका को निस्तारित करते हुए दिया।याची राजेश कुमार यादव ने कौशाम्बी जिले के थाना पीपरी में दहेज हत्या समेत कई धाराओं में मृतका के पति और अन्य ससुरालीजनों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करवाई थी। तीन माह से ज्यादा समय बीत जाने के बावजूद विवेचनाधिकारी द्वारा न तो आरोपियों की गिरफ्तारी की गई और न ही आरोप पत्र दाखिल किया गया।याची का आरोप है कि विवेचनाधिकारी आरोपियों के प्रभाव में आ कर सही विवेचना नहीं कर रहे हैं।
निष्पक्ष विवेचना न होने का आरोप लगाते हुए याची ने अनुच्छेद 226 के अंतर्गत हाईकोर्ट में याचिका दाखिल की थी। याची की ओर से प्रस्तुत तर्कों को सुनते हुए कोर्ट ने कहा कि याची को दंड प्रक्रिया संहिता की धारा 156 (3) के अंर्तगत मजिस्ट्रेट को एफआईआर दर्ज कराने, विवेचना की निगरानी करने और विवेचना को किसी दूसरी जांच एजेंसी को देने का पूरा अधिकार है। पुलिस विवेचना से व्यथित याची अनुच्छेद 226 के अंतर्गत याचिका के बजाय संबंधित मजिस्ट्रेट के न्यायालय में अर्जी दाखिल कर सकता है।
ये भी पढ़ें - प्रयागराज : न्यायिक अधिकारियों का हुआ स्थानांतरण
