बरेली में चीतल, लकड़बग्घा और घुरल की संख्या शून्य

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Published By Vishal Singh
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पारिस्थिकी पर संकट: बारहसिंहा, लंगूर और फिशिंग कैट भी उंगलियों पर गिनने लायक बचे

मोनिस खान, बरेली,अमृत विचार। जनप्रतिनिधियों और अफसरों के लिए विकास की अपनी अलग परिभाषा हो सकती है लेकिन सच यह है कि पारिस्थिकी तंत्र और जैव विविधता के मामले में बरेली सर्वाधिक पिछड़े जिलों में शुमार हो गया है। वनों का क्षेत्रफल पहले ही नाममात्र के लिए रह गया है, अब इसका भीषण दुष्प्रभाव वन्यजीवों की संख्या पर भी पड़ा है। सबसे बुरी खबर यह है कि कुछ साल पहले तक जिले में सैकड़ों चीतल थे, उनकी संख्या अब शून्य हो गई है। इसके साथ लकड़बग्घा और घुरल भी पूरी तरह खत्म हो गए हैं। बारहसिंहा, लंगूर और फिशिंग कैट जैसे जीवों की संख्या भी दहाई का आंकड़ा छूने लायक नहीं बची है।

वन विभाग ने हाल ही में मंडल के चारों सामाजिक वन प्रभागों में वन्य जीवों की गणना कराई है और इसके नतीजे बरेली के लिए बेहद निराशाजनक हैं। वन्य जीवों की संख्या में भारी कमी के साथ जैव विविधता के लिहाज से भी जिला न्यूनतम स्तर पर पहुंच गया है। वन विभाग की ओर से जिन 23 अलग-अलग प्रजातियों के वन्यजीवों की गणना कराई गई है, उनमें फिशिंग कैट, काला हिरन, शूकर हिरन, चौसिंघा, वनरोज, घुरल, चीतल, बारहसिंहा, सुअर, लंगूर, मगरमच्छ, भेड़िया, लकड़बग्घा, लोमड़ी, सियार, मोर, वन गाय, जंगली बिल्ली, बिज्जू, सेहा, गोह जैसे वन्यजीव शामिल हैं।

बरेली में अब सिर्फ 13776 वन्यजीव इनमें छह हजार से ज्यादा तो बंदर
अगर बंदरों को वन्य जीव की श्रेणी में न रखा गया होता तो शायद बरेली की स्थिति और ज्यादा शर्मनाक होती। मंडल के चारों सामाजिक वानिकी प्रभागों में हुई ताजा गणना के आंकड़ों के मुताबिक बरेली में वन्य जीवों की कुल संख्या 13776 है जिनमें से छह हजार से ज्यादा तो सिर्फ बंदर हैं। बाकी वन्यजीवों में सुअर, सियार और भेड़िया की अधिकता है।मंडल के बाकी तीनों जिलों की स्थिति इससे काफी बेहतर है। बदायूं में सर्वाधिक 50828 वन्यजीव हैं और शाहजहांपुर में 17295 वन्यजीव। पीलीभीत सामाजिक वानिकी प्रभाग में 27182 वन्यजीव हैं, इसमें पीलीभीत टाइगर रिजर्व के वन्य जीवों के आंकड़े शामिल नहीं हैं।

फिर भी नहीं थम रहीं शिकार की घटनाएं
व्यावसायिक इस्तेमाल के लिए बड़े पैमाने पर शिकार किए जाने से कई वन्यजीवों की संख्या तेजी से कम हो रही है। सबसे ज्यादा गोह और मोर को निशाना बनाया जाता है। मोर पंख बाजार में बेचे जाते हैं, गोह का इस्तेमाल दवा बनाने में होता है। पिछले दिनों वन विभाग ने एक मेले से बड़ी संख्या में गोह बरामद की थीं। ये दोनों ऐसे वन्यजीव हैं जो देहात और शहर दोनों जगह दिखते हैं। इनकी संख्या तेजी से घटी है। वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक जिले में सिर्फ 361 गोह और 218 मोर चिह्नित किए गए हैं। मोर की संख्या के मामले में बरेली मंडल के दूसरे जिलों से काफी पीछे है।

वन्यजीवों की नियमित रूप से गणना कराई जाती है। जिन वन्यजीवों की संख्या बरेली में कम या शून्य है, उनमें कई वन्यजीव आमतौर पर जिले में नहीं पाए जाते। वन विभाग जैव विविधता संरक्षण के लिए समय-समय पर जागरूकता कार्यक्रम भी आयोजित करता है। - विजय सिंह, वन संरक्षक

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