नए शीत युद्ध की आहट

Amrit Vichar Network
Published By Vikas Babu
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उत्तर कोरियाई नेता किम जोंग उन ने दुनिया को नए शीत युद्ध में प्रवेश करने का संकेत दिया है। उन्होंने परमाणु हथियारों का उत्पादन बढ़ाने का आह्वान किया है। कोरियन न्यूज एजेंसी ने बताया कि किम ने देश की संसद के दो दिवसीय सत्र के दौरान ये टिप्पणीयां कीं। यह संसद सत्र तब आयोजित किया गया है जब किम ने इस महीने रूस के राष्ट्रपति व्लादिमीर पुतिन से मुलाकात करने तथा सैन्य एवं तकनीकी स्थलों का दौरा करने के लिए रूस के ‘फार ईस्टक्षेत्र की यात्रा की।

किम जोंग का यह दौरा ऐसे समय हुआ, जब अमेरिका ने उत्तर कोरिया पर आरोप लगाया है कि उत्तर कोरिया, यूक्रेन युद्ध के बीच रूस को हथियारों की सप्लाई कर रहा है। किम जोंग का कहना है कि अमेरिका सैन्य उकसावे की सारी हदें पार कर चुका है। उत्तर कोरिया को अमेरिका और उसके सहयोगी देशों से खतरे को देखते हुए परमाणु हथियारों की जरूरत है।

उन्होंने अमेरिका, दक्षिण कोरिया और जापान के बीच हाल में बढ़े सुरक्षा सहयोग को असल खतरा करार दिया है। उत्तर कोरिया परमाणु हथियारों के निर्माण में जी जान से जुटा है। उधर जापान के मुख्य कैबिनेट सचिव होरोकाजु मातसुनो ने कहा कि उत्तर कोरिया का परमाणु और मिसाइल विकास अंतर्राष्ट्रीय समुदाय की सुरक्षा के लिए खतरा है। हम अमेरिका, दक्षिण कोरिया और बाकी अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के साथ मिल कर संयुक्त राष्ट्र के प्रस्तावों को लागू कराएंगे और उत्तर कोरिया के परमाणु हथियारों को पूरी तरह से खत्म कराएंगे। 

नए शीत युद्ध  की आहट निश्चित ही चिंता का विषय है। महाशक्तियों के बीच शीत युद्ध प्रारंभ होने से विश्व व्यवस्था दो धड़ों में बंट जाएगी और दोनों धड़े एक-दूसरे को नीचा दिखाने के लिए शांतिपूर्ण सहअस्तित्व के मार्ग से विचलित हो जाएंगे। शीत युद्द के प्रारंभ होने से अंतर्राष्ट्रीय संगठनों का महत्व भी कम हो जाएगा।

कोरियाई प्रायद्वीप में हाल के वर्षों में तनाव बहुत बढ़ गया है। परमाणु हथियार और बैलेस्टिक मिसाइल बनाने के उत्तर कोरिया के नेता किम जोंग के इरादों ने क्षेत्र में अस्थिरता बढ़ाई है। चीन के बाद भारत उत्तर कोरिया का दूसरा सबसे बड़ा व्यापारिक साझीदार है। ऐसे में, क्या भारत पश्चिम दुनिया और उत्तर कोरिया के बीच मध्यस्थ की भूमिका निभा सकता है?

हालांकि अभी साफ नहीं है कि उत्तर कोरिया को अंतर्राष्ट्रीय समुदाय के करीब लाने में भारत क्या भूमिका निभा सकता है। परंतु यह भी तय है कि बड़ी वैश्विक घटनाओं को वह चुपचाप तमाशाई की तरह नहीं देख सकता।