UP: बांदा के इस मंदिर की अद्भुत है मान्यता… मां योगमाया के श्राप से सफेद रंग का हो गया गिरवां का खत्री पहाड़

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Published By Nitesh Mishra
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बांदा में मां योगमाया के श्राप से सफेद रंग का हो गया गिरवां का खत्री पहाड़।

बांदा में मां योगमाया के श्राप से सफेद रंग का गिरवां का खत्री पहाड़ हो गया। मां दुर्गा के 108 शक्ति पीठों में विंध्यवासिनी का दरबार शामिल है। नवरात्र की अष्ठमी में खत्री पहाड़ में माता योगमाया दर्शन देती हैं।

बांदा, [राघव तिवारी]। मां विंध्यवासिनी ने मिर्जापुर धाम में विराजने से पहले शेरपुर (गिरवां) को अपने निवास के रूप में चुना था,लेकिन मां के रौद्र रूप से घबराये पर्वत ने उनका भार सहन करने से इन्कार कर दिया था, जिससे नाराज मां विंध्यवासिनी ने पर्वत को कोढ़ी हो जाने का श्राप दे दिया था।

हालांकि पर्वत के क्षमा मांगने पर मां ने उसे नवरात्र की अष्टमी को उस पर्वत पर विराजने का वरदान भी दिया, लेकिन तभी इस पर्वत के पत्थर काले से सफेद हो गये। नवरात्र की अष्टमी को मां का दरबार पर्वत पर विराजी मां विंध्यवासिनी के मंदिर में लगता है, उस दिन मंदिर के नीचे स्थित मां के पट बंद रहते हैं।

किंवदंती द्वापर युग की बताई जाती है। देवकी और वसुदेव की सात निरीह संतानों की हत्या कंस ने महज इसलिये कर दी, क्योंकि उसकी सबसे प्रिय बहन देवकी की विवाह के बाद विदाई के समय आकाशवाणी हुई थी कि जिस बहन को तू इतने प्यार से विदा कर रहा है उसी का आठवां पुत्र तेरा काल होगा।

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बस इसी सच को कंस हजम नहीं कर पाया और उसने बहन को विदा करने के बजाय केश पकड़ककर भूमि पर घसीटना शुरू कर दिया और उसके पति वसुदेव समेत कठोर कारागार में डाल दिया। आठवें पुत्र के रूप में भगवान श्रीकृष्ण ने स्वयं अवतार लिया। उनके अवतार लेते ही कारागार के ताले टूट गये। वसुदेव बालक श्रीकृष्ण को लेकर गोकुल गये, जहां यशोदा ने एक कन्या को जन्म दिया था।

बालक कृष्ण को यशोदा के पास लिटाकर कन्या को अपने साथ ले आये। कंस को जैसे ही जानकारी लगी उसने आकर देवकी से उस कन्या को छीन लिया और उसकी हत्या करने के लिये जैसे ही कन्या को हवा में उछाला कन्या ने मां विंध्यवासिनी का रूप धारण कर लिया और अट्टहास कर कहा कि उसे मारने वाला अवतार ले चुका है और उसका अंत निश्चित है।

मां ने भक्तों का कल्याण करने के लिये शेरपुर (गिरवां) स्थित विशाल पर्वत को चुना, लेकिन मां के उस रौद्र रूप को देखकर घबराये उस पर्वत ने माता का भार सहन करने से इन्कार कर दिया। इस पर मां और भी अधिक क्रोधित हो गईं और पर्वत को कोढ़ी हो जाने का श्राप दे दिया। इसके बाद मां विंध्यवासिनी मिर्जापुर में विराज गईं। इधर कोढ़ी हो जाने का श्राप मिलने से पश्चाताप में डूबे उस पर्वत ने मां से क्षमा मांगी।

मां विंध्यवासिनी ने पर्वत को वरदान दिया कि नवरात्र की अष्टमी के दिन वह मिर्जापुर धाम को छोड़कर उस पर्वत पर आकर विराजेंगी। तभी से नवरात्र की अष्टमी के दिन पर्वत पर विराजीं मां विंध्यवासिनी के दर्शन और उनसे अपने मन की मुरादें मांगने वाले भक्तों की अपार भीड़ लगती है।  

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चार दशक पहले बना माता का भव्य मंदिर

पर्वत पर तो मां विंध्यवासिनी के मंदिर का निर्माण बहुत पुराना है, जो कि चूना-पत्थर से बना है, लेकिन पर्वत के नीचे जो मंदिर है, उसके निर्माण के संबंध में कहा जाता है कि तकरीबन चार दशक पहले मां विंध्यवासिनी ने गिरवां के ब्राह्मण परिवार बद्री प्रसाद दुबे की नातिन शांता को स्वप्न में दर्शन दिए और इच्छा प्रकट की, कि पर्वत के नीचे भी उनके मंदिर की स्थापना कराई जाए। मां वहां श्रद्धालुओं को दर्शन देंगी तभी गांव और स्थानीय निवासियों के प्रयास से यहां विशाल मंदिर का निर्माण कराया गया और मां विंध्यवासिनी की प्राण प्रतिष्ठा कराई गयी। तभी से पर्वत के नीचे विशाल मेले का आयोजन होने लगा।

अस्मिता बचाने को शिला में समा गई कन्या

शेरपुर गांव की एक कथा और इस मंदिर के संबंध में प्रचलित है, जो बहुत पुरानी नहीं है। बताया जाता है कि नीयत खराब होने के कारण कुछ अराजक तत्व एक कन्या का पीछा कर रहे थे, दौड़ती हुई वह कन्या उसी पर्वत के नीचे सीढ़ियों पर जा पहुंची और रक्षा के लिये मां विंध्यवासिनी को पुकारा। अचानक उसके बदन में बिजली की तरह फुर्ती आ गई और वह देखते ही देखते पर्वत के शिखर पर पहुंच गई। अराजक तत्व पीछा करते हुए वहां भी पहुंच गये। अब उस कन्या का इन अराजक तत्वों के चंगुल से बच पाना मुश्किल हो गया। मां की शक्ति से ही वह एक शिला में समा गई। दो भागों में बंट चुकी इस शिला के भीतर आज भी मां के नौ स्वरूपों में दर्शन विद्यमान हैं।

10 दिन तक लगता है मेला

जिले के गिरवा थाना क्षेत्र के सिद्धिदात्री विंध्यवासिनी मंदिर में कई वर्षों से लगातार नवरात्रि में मेला लगता है। 10 दिन तक यहां पर लाखों की तादाद में श्रद्धालु अपनी मन्नत मांगने माता रानी के दर्शन करने के लिए आते हैं। इसमें मध्य प्रदेश के छतरपुर, सतना, पन्ना, भोपाल, जबलपुर, ग्वालियर और उत्तर प्रदेश के जनपद बांदा, महोबा, हमीरपुर, चित्रकूट, फतेहपुर, कानपुर, लखनऊ और प्रयागराज से लोग दर्शन करने के लिए आते हैं। हर वर्ष यहां पर शतचंडी महायज्ञ रामलीला और कई प्रकार के सांस्कृतिक कार्यक्रमों का आयोजन होता है।

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