उत्तराधिकार अधिनियम से संबंधित अपील पर सुनवाई का अधिकार हाईकोर्ट के पास नहीं
प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने उत्तराधिकार प्रमाण पत्र के मामले में जिला न्यायाधीश की शक्तियों पर विशेष टिप्पणी करते हुए कहा कि उत्तराधिकार प्रमाण पत्र जारी करने की याचिका को खारिज करने वाले सिविल जज के आदेश के खिलाफ अपील भारतीय उत्तराधिकार अधिनियम, 1925 की धारा 388 (2) के तहत जिला न्यायाधीश के समक्ष दाखिल की जा सकती है, न कि उक्त अधिनियम की धारा 384 के तहत हाईकोर्ट के समक्ष। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति डॉ. योगेंद्र कुमार श्रीवास्तव की एकलपीठ ने श्रीमती मोनिका यादव की अपील को खारिज करते हुए की।
कोर्ट ने अपने फैसले में कहा कि उपरोक्त अधिनियम की धारा 388 जिला न्यायाधीश के अधीनस्थ न्यायालय पर एक विशेष क्षेत्राधिकार बनाती है। ऐसी शक्ति उपधारा (1) के तहत जिला न्यायाधीश से अधिनस्थ न्यायालय को सौंपी जाती है तो उस स्थिति में उपधारा (2) के तहत ऐसा न्यायालय ऐसी स्थिति में जिला न्यायाधीश के कार्य का निर्वहन करेगा। मालूम हो कि याची ने सिविल जज (सीनियर डिवीजन), भदोही, ज्ञानपुर द्वारा पारित एक आदेश के खिलाफ उत्तराधिकार अधिनियम,1925 की धारा 384 (1) के तहत अपील दाखिल की, जिसे धारा 372 के तहत खारिज कर दिया गया था।
अपीलकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि उत्तराधिकार प्रमाण पत्र देने व अस्वीकार करने या रद्द करने के जिला न्यायाधीश के आदेश के खिलाफ उक्त अधिनियम के तहत हाईकोर्ट के समक्ष अपील की जाएगी। जबकि सिविल जज को जिला जज की शक्तियां प्रदान की गई थी, इसलिए आदेश पारित करते समय वह जिला न्यायाधीश की क्षमता से कार्य कर रहे थे।
इस संदर्भ में हाईकोर्ट के समक्ष यह प्रश्न था कि उत्तराधिकार अधिनियम की धारा 388 (2) के तहत अपील हाईकोर्ट में सुनवाई योग्य है या नहीं। जिसके सापेक्ष कई अन्य मामलों को देखते हुए कोर्ट ने पाया कि उक्त अधिनियम से संबंधित अपील जिला न्यायाधीश के समक्ष दाखिल की जा सकती है। ऐसी अपीलों पर सुनवाई का अधिकार क्षेत्र हाईकोर्ट के पास नहीं है।
