प्रयागराज: कैदियों के वेतन में संशोधन के राज्य सरकार के आदेश को चुनौती देते हुए दाखिल हुई जनहित याचिका

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Published By Sachin Sharma
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट में कैदियों की मजदूरी में संशोधन मामले में उत्तर प्रदेश सरकार के अगस्त 2023 के आदेश को चुनौती देते हुए जनहित याचिका दाखिल की गई है। मालूम हो कि मुख्य न्यायाधीश प्रीतिंकर दिवाकर और न्यायमूर्ति सौमित्र दयाल सिंह की खंडपीठ द्वारा कैदियों के वेतन में संशोधन न होने पर राज्य के अधिकारियों के व्यवहार पर गहरी चिंता व्यक्त करते हुए इस साल अगस्त में सरकारी आदेश जारी किया गया।

सरकारी आदेशानुसार कुशल, अर्धकुशल और अकुशल कैदियों की मजदूरी को 40, 30 और 25 रुपए से बढ़ाकर क्रमशः 81,60 और 50 रुपए कर दिया गया। उक्त आदेश को चुनौती देने वाली याचिका अधिवक्ता आसिम लूथरा और अथर्व दीक्षित द्वारा दाखिल की गई है, जिन्हें अदालत ने वेतन संशोधन मामले में एमिकस क्यूरी (न्यायमित्र) नियुक्त किया है।

आदेश को चुनौती इस आधार पर दी गई है कि कैदियों के लिए निर्धारित न्यूनतम मजदूरी राज्य में लागू न्यूनतम मजदूरी से कम है। याचिका में कैदियों के पारिश्रमिक का भुगतान और पीड़ितों को मुआवजा नियम, 2005 को ध्यान में रखा गया है, जिसके अनुसार कैदियों द्वारा अर्जित पारिश्रमिक से 15% राशि काटकर पीड़ितों को वितरण करने के लिए बैंक खातों में जमा की गई है।

याचिका में यह आरोप भी लगाया गया है कि यह राशि ना तो पीड़ितों को वितरित की जा रही है और ना ही कैदियों को वापस दी जा रही है। कोर्ट को बताया गया कि खोले गए बैंक खातों में 100 करोड़ से अधिक राशि पड़ी हुई है। अंत में याचिका में यह प्रार्थना की गई है कि कैदियों की मजदूरी को संशोधित करने वाला सरकारी आदेश रद्द कर दिया जाए और राज्य को न्यूनतम मजदूरी अधिनियम के अनुसार मजदूरी को संशोधित करने का निर्देश दिया जाए।

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