Allahabad High Court: पुलिस रिपोर्ट से असहमत होने पर मजिस्ट्रेट संज्ञान लेने के लिए स्वतंत्र

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Published By Deepak Mishra
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प्रयागराज। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मजिस्ट्रेट द्वारा पुलिस रिपोर्ट में आए निष्कर्ष से असहमत होकर मामले का संज्ञान लेने के संबंध में कहा कि अगर मजिस्ट्रेट पुलिस रिपोर्ट पर स्वयं संज्ञान लेता है, तो  सीआरपीसी की धारा 200 के प्रावधानों का पालन करना आवश्यक नहीं है। 

जब पुलिस द्वारा अंतिम रिपोर्ट प्रस्तुत की जाती है तो मजिस्ट्रेट ऐसी पुलिस रिपोर्ट से सहमत या असहमत हो सकता है और अगर वह पुलिस द्वारा दाखिल अंतिम रिपोर्ट से सहमत होता है तो उसके लिए शिकायतकर्ता को नोटिस जारी करना और शिकायतकर्ता को अवसर देने के बाद विरोध याचिका पर विचार करना अनिवार्य है और अगर उसे लगता है कि पुलिस ने अपनी रिपोर्ट में जो निष्कर्ष निकाले हैं।

वह गलत है या टिकाऊ नहीं है तो वह सीधे सीआरपीसी की धारा 190 (1) (बी) के तहत संज्ञान लेने के लिए स्वतंत्र है। दरअसल कोर्ट के समक्ष प्रश्नगत मामला था कि उचित जांच के बाद जांच एजेंसी द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट को खारिज करते समय मजिस्ट्रेट सीआरपीसी की धारा 190(1)(बी) के तहत संज्ञान ले सकता है? 

मौजूदा मामले में मजिस्ट्रेट ने पुलिस द्वारा प्रस्तुत अंतिम रिपोर्ट और उसके सामने उपलब्ध संपूर्ण सामग्री के आधार पर आगे की जांच पर भी विचार किया, इसके बाद मजिस्ट्रेट ने पाया कि जांच एजेंसी द्वारा निकाले गए निष्कर्ष टिकाऊ नहीं हैं और इसके बाद उन्होंने उक्त अंतिम रिपोर्ट को खारिज कर दिया।

 इसलिए कोर्ट ने माना कि मजिस्ट्रेट द्वारा अंतिम रिपोर्ट को खारिज करने और याचियों के खिलाफ संज्ञान लेने के पारित आदेश में कोई अवैधता नहीं है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति अनीश कुमार गुप्ता की एकलपीठ ने श्रीओम व दो अन्य की याचिका को खारिज करते हुए पारित किया। याचिका में मुख्य न्यायिक मजिस्ट्रेट, हाथरस के आदेश को चुनौती दी गई थी।

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