प्रयागराज: मध्यस्थता मामलों में जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ जांच के निर्देश

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Published By Jagat Mishra
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने मध्यस्थता और सुलह अधिनियम, 1996 की धारा 37 के तहत अपील दाखिल करने के लिए जिम्मेदार अधिकारियों के खिलाफ जांच के निर्देश देते हुए कहा कि ऐसे मामले में मौद्रिक पहलू शामिल होता है। अतः उक्त अधिनियम के तहत आवेदन दाखिल करने के चरण में न केवल तत्परता और परिश्रम की आवश्यकता होती है बल्कि ऐसे मामलों को प्राथमिकता दी जानी चाहिए। कोर्ट ने माना कि अपीलकर्ता द्वारा हाईकोर्ट के समक्ष विलंब माफी आवेदन में दिया गया स्पष्टीकरण अप्रामाणिक और अपर्याप्त है, जिसकी न केवल जांच की जानी चाहिए बल्कि जिम्मेदार पदाधिकारी के खिलाफ कड़े कदम भी उठाने चाहिए। यह आदेश मुख्य न्यायाधीश अरुण भंसाली और न्यायमूर्ति विकास बुधवार की खंडपीठ ने कार्यकारी अभियंता ड्रेनेज डिविजन की अपील को खारिज करते हुए पारित किया। 

मामले के अनुसार वर्ष 2017 में रुपए की देनदारी तय करते हुए चार मध्यस्थता पुरस्कार चार प्रतिशत ब्याज के साथ पारित किए गए। अधिनियम की धारा 34 के तहत आवेदन 4 साल और 9 महीने की देरी के बाद वाणिज्यिक न्यायालय, गोरखपुर के समक्ष दाखिल किया गया था। वर्ष 2022 में देरी के आधार पर आवेदन खारिज कर दिया गया। इसके बाद वर्तमान अपील अधिनियम की धारा 34 के तहत आदेश की तारीख से 513 दिनों की देरी के बाद दाखिल की गई थी। अपीलकर्ता (राज्य) के अधिवक्ता ने तर्क दिया की देरी अनजाने में हुई। अतः इसे माफ कर देना चाहिए। जबकि दावेदार के अधिवक्ता ने उक्त तर्क का खंडन करते हुए कहा कि विलंब माफी आवेदन में दिया गया स्पष्टीकरण असंतोषजनक है। अंत में कोर्ट ने पाया कि विलंब माफी आवेदन में अपीलकर्ता द्वारा दिया गया स्पष्टीकरण एक राज्य अधिकारी से दूसरे राज्य अधिकारी के पास फाइल ले जाने के संबंध में एक सामान्य तौर पर रूढ़िवादी स्पष्टीकरण था। 

कोर्ट ने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों का हवाला देते हुए कहा कि जहां देरी उन अधिकारियों के कारण होती है जो फाइल पर बैठे रहते हैं और कोई कार्यवाही नहीं करते हैं। निश्चित रूप से न्यायिक समय की बर्बादी की लागत ऐसे दोषी अधिकारियों से वसूल की जानी चाहिए। अंत में कोर्ट ने माना कि मध्यस्थता पुरस्कार के खिलाफ धारा 34 के तहत आवेदन दाखिल करने की अवधि 30 दिनों की छूट अवधि के साथ 90 दिन है, जबकि अपीलकर्ता ने 4 साल और 9 महीने की देरी के बाद वाणिज्यिक न्यायालय का रुख किया। अतः कोर्ट ने अविलंब माफी आवेदनों को खारिज कर दिया।

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