पीलीभीत: ई-रिक्शा में बेतरतीब तरीके से ले जाए जा रहे स्कूली बच्चे, न परिजन गंभीर न सिस्टम संजीदा...नियम-कानून ताक पर
पीलीभीत, अमृत विचार। स्कूली वाहनों में नौनिहालों की जिंदगी से खुलेआम खिलवाड़ जारी है। यातायात नियमों को धज्जियां उड़ाते हुए डग्गामार वाहनों में बच्चों को ढोया जा रहा है। शिक्षा विभाग, स्कूल प्रबंधन, परिवहन विभाग, पुलिस समेत अभिभावक हर कोई अपनी जिम्मेदारी से बचता दिखाई दे रहा है। हालांकि जिम्मेदार सड़क सुरक्षा के नाम पर लंबी चौड़ी बातें करते आ रहे हैं।
इसके बावजूद शहर की सड़कों पर अनफिट स्कूली वाहन और ई-रिक्शों से बच्चों को ढोया जा रहा है। आए दिन होने वाले हादसों के बावजूद न तो जिम्मेदार सरकारी तंत्र संजीदा दिखाई दे रहा है, न ही बच्चों के अभिभावक। कुल मिलाकर देखा जाए तो बच्चों को स्कूल पहुंचाने और वापस घर लाने तक का सफर जोखिम भरा नजर आ रहा है।
जिले में करीब 100 से अधिक प्राइवेट स्कूलों को संचालन होता है। जिनमें अधिकांश स्कूलों के पास स्वयं के वाहन हैं। जिनसे स्कूली बच्चों को घर से स्कूल लाया जाता है। परिवहन विभाग के पास जिले भर में 206 स्कूली वाहन पंजीकृत है। जिसमें बस, मैजिक और वैन शामिल हैं। खास बात यह है कि इनमें भी जो वाहन पंजीकृत हैं, उनमें अधिकांश वाहनों की फिटनेस पर आए दिन सवाल उठते रहते हैं। पिछले कुछ सालों से ई-रिक्शा का चलन तेजी से बढ़ा है। शहर की सड़कों पर बेतरतीब दौड़ रहे अधिकांश ई-रिक्शा पंजीकृत भी नहीं है।
कायदे के मुताबिक इन पर पांच या फिर सात बच्चों तक ही बैठाए जा सकते हैं। मगर, जिम्मेदारों की अनदेखी के चलते अधिकांश ई-रिक्शा चालक अधिक कमाई के चक्कर में 10 से 15 स्कूली बच्चों को बिठाकर मासूमों की जान से खिलवाड़ करते नजर आ रहे हैं। शहर के हाईवे समेत प्रमुख सड़कों पर दौड़ रहे ऐसे वाहन पुलिस समेत परिवहन विभाग के अफसरों के सामने से भी गुजरते हैं, लेकिन उन पर कोई ध्यान नहीं दिया जा रहा। कई बार घटनाएं सामने आ चुकी हैं, जिसमें क्षमता से अधिक बच्चे होने की वजह वाहन हादसे शिकार हो गए।
पूर्व में भी हो चुकी हैं घटनाएं
एक दिन पूर्व असम हाईवे पर स्कूली बस और प्राइवेट बस में टक्कर लगने से छह स्कूली बच्चे घायल हो गए। करीब साल भर पूर्व अमरिया में एक बोलेरो पलट गई थी। जिसमें कई बच्चे चोटिल हो गए थे। इस वाहन का फिटनेस भी नहीं था। इसके अलावा रामलीला रोड, स्टेशन रोड समेत कई जगह रिक्शा पलटने से बच्चे घायल हो चुके हैं।
चालक के खुद के बैठने की जगह नहीं
ई-रिक्शे में बच्चों को स्कूल भेजना खासा जोखिम भरा है। बच्चों को स्कूल ले जाने वाले ई-रिक्शों पर नजर डाले तो अधिकतर ई-रिक्शों में बच्चों की संख्या क्षमता से कहीं अधिक होती है। बच्चे ठीक से बैठ भी नहीं पाते। इतना ही नहीं, रिक्शा चालक अपनी सीट पर इतने बच्चों को बिठा लेते हैं कि उन्हें हैंडिल मोड़ने तक में काफी मशक्कत करनी पड़ती है, इसके बावजूद वह हाईवे समेत सड़कों पर दौड़ते देखे जा सकते हैं।
लापरवाही में अभिभावक भी जिम्मेदार
बच्चों को अच्छी शिक्षा मिले, इसके लिए अभिभावक नामी गिरामी स्कूलों के चक्कर लगाते हैं। स्कूल संचालक भी मोटी फीस वसूलते हैं। मगर, इसके बावजूद कई स्कूलों में अधिकांश बच्चे ऑटो, ई-रिक्शा और मैजिक से ढोए जा रहे हैं। इसमें से अधिकतर वाहन नियमों पर खरे नहीं उतरते हैं। इसमें अभिभावक भी खासे जिम्मेदार है।
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