रामपुर: सुनीता और शारदा टेंपो चलाकर खींच रहीं गृहस्थी की गाड़ी, नारी शक्ति की बनी मिसाल

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Published By Vikas Babu
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रोहिताश मणि,रामपुर/मिलक। मिलक की दो महिलाएं नारी शक्ति की मिसाल बन चुकी हैं। उनकी मेहनत और जज्बे को हर कोई सलाम करता है। मां के साथ-साथ पिता की जिम्मेदारी बखूबी निभा रही हैं। बच्चों की अच्छी शिक्षा व उनके पालन पोषण के लिए दिन रात टेंपो चला रही हैं। उनके इस कठिन परिश्रम से क्षेत्र की महिलाएं नई सीख ले रही हैं।  

शिक्षा के क्षेत्र में मिलक जिले में तेजी से आगे बढ़ रहा है। सुनीता और शारदा भी मिलक की शान से कम नहीं हैं। नगर के शाहूजी नगर निवासी बबलू बिलासपुर बस अड्डे पर होटल चलाकर परिवार का पालन पोषण करते थे। विवाह के कुछ वर्ष बाद बब्लू की आकस्मिक मृत्यु हो गई। पति की मौत के बाद पत्नी शारदा के ऊपर गमों का पहाड़ टूट पड़ा। तीन मासूम बच्चों के पालन पोषण की जिम्मेदारी चुनौती से कम नहीं थी। 

दो बच्चों को स्कूल भेजना था और दो छोटे मासूम बच्चों को साथ रखना था। शारदा ने दूसरों की मजदूरी और काम करना उचित नहीं समझा और स्वयं का कार्य करने का निर्णय लिया। जैसे-तैसे कर कुछ रुपये इकट्ठा किए और लोन पर एक ई- रिक्शा खरीद लिया। पूर्व में बाइक चलाने का अनुभव काम आया। सड़क पर ई- रिक्शा दौड़ाना शुरू कर दिया। सड़क पर महिला को ई-रिक्शा चलाते देख लोगों ने चर्चाएं शुरू कर दीं। 

शारदा के इस जज्बे को कई बार विभिन्न कार्यक्रमों में सम्मानित किया। शारदा बताती हैं कि ई- रिक्शा चलाकर उनके परिवार का गुजारा नहीं हो पाता था। इसलिए उन्होंने टेंपो लिया, इसके बाद ड्राइविंग लाइसेंस बनवाया। अब वह टेंपो को मिलक से बिलासपुर तक दौड़ाती हैं। जिसकी कमाई से बच्चों का पालन-पोषण करती हैं। साथ ही टेंपो की किश्त भी जमा करती हैं। क्षेत्र के दुलीचंदपुर गांव निवासी सुनीता की कहानी भी दर्द भरी है। 

विवाह के कुछ समय के बाद सुनीता पति के साथ हरिद्वार चली गई। हरिद्वार में पति बीमार हुए तो सुनीता ने पति के ई-रिक्शा का हैंडल थाम लिया। बीमार पति की हालत खराब होते देख वापस गांव लौटने का फैसला लिया और मिलक में ई- रिक्शा चलाना शुरू कर दिया। पति की हालत में सुधार हुआ तो सुनीता ने पति को मजदूरी करने के लिए रुद्रपुर की एक फैक्ट्री में भेज दिया। 

कुछ आर्थिक स्थिति मजबूत हुई, तो लोन पर टेंपो ले लिया। सुनीता  का कहना है कि सड़क पर जाते समय लोग तरह-तरह के कमेंट पास करते हैं। मिलक हो या बिलासपुर टेंपो अड्डों पर मुंशी रुपयों की मांग करते हैं। कहती हैं कि मजदूरी करने वाली महिलाएं आज भी सुरक्षा से कोसों दूर हैं। लिंग भेदभाव आज भी बरकार है।लोगों की नजरों में महिलाओं को उतना सम्मान नहीं मिलता जितना समानता के साथ मिलना चाहिए।

ऑटों चलाते शारदा को सात तो सुनीता को हो गए पांच वर्ष 
हौसलें अगर बुलंद हों तो मंजिलें आसान हो जाती हैं। कुछ कर गुजरने का जज्बा अगर हममें हो तो कोई भी काम छोटा बड़ा नहीं होता है। यह मिसाल मिलक की रहने वाली शारदा और सुनीता के लिए सही बैठती है। परेशानी आने पर दोनों महिलाओं ने हिम्मत नहीं हारी। उन्होंने बच्चों को पालने का मन में ठान ली,तो शारदा  सात वर्ष से टेंपो चलाकर परिवार का पेट पाल रही,तो सुनीता पांच भी वर्ष से टेंपो चलाकर गृहस्थी की गाड़ी खींच रही है। 

शारदा के तीन बच्चे हैं। जिनमें दो पुत्र सत्यम 13 वर्ष व हनी आठ वर्ष  के हैं। जबकि  ज्योति 10वर्ष की है।सुनीता के छह बच्चे  हैं। जिनमें दो लड़के अशोक 10 वर्ष व राजू 15 वर्ष का है। जबकि चार पुत्री कविता 14 वर्ष ,पिंकी 12वर्ष ,प्रीति नौ वर्ष,सुमन सात वर्ष  की है। शारदा बताती है कि पूरे दिन लड़ाई-झगड़े और संघर्ष के बाद वह 500 से 600 रुपये तक ही कमा पाती है।

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