Kanpur: गंगा को प्रदूषित कर रहे अनटैप्ड सीवेज नाले, इन घाटों पर बरती जा रही लापरवाही...जुर्माने के बाद भी समस्या बरकरार

Amrit Vichar Network
Published By Deepak Shukla
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कानपुर, अमृत विचार। गंगा को छह अनटैप्ड सीवेज नाले भी प्रदूषित कर रहे हैं। डब्का, सत्तीचौरा, गोलाघाट, रानीघाट, परमिया और गुप्तारघाट पर जैविक शोधन (बायोरेमिडिएशन) का कार्य नहीं हो रहा है। नालों के पास जैविक शोधन के लिये स्थापित डोजिंग प्लास्टिक टैंक में सीडिंग और माइक्रोबियल कल्चर ही नहीं डाला जा रहा है जो बायोरेमिडिएशन के लिये जरूरी है। यूपीपीसीबी के अधिकारियों ने निरीक्षण के दौरान कई बार इस समस्या को पकड़ा और जुर्माने की कार्रवाई भी की लेकिन गंगा में प्रदूषण जाना बंद नहीं हुआ है।

उत्तर प्रदेश प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के अनुसार कानपुर नगर में गंगा नदी में छह सीवेज नाले डब्का, सत्तीचौरा, गोलाघाट, रानीघाट, परमिया और भगवतदास गुप्तारघाट में जैविक शोधन (बायोरेमिडिएशन) का कार्य हो रहा है। यह कार्य नगर निगम द्वारा अनुबंधित संस्था मेसर्स विशान्त चौधरी कांट्रैक्टर जेवी, मेसर्स नेक्सजेन इन्फोवर्ड प्रा. लि. अलीगढ़ कर रही है। 

यूपीपीसीबी के क्षेत्रीय अधिकारी अमित मिश्रा ने बताया कि नालों के निरीक्षण में एक भी जगह बायोरेमिडिएशन का कार्य नहीं होता है। अप्रैल और मई में नालों की यही स्थिति है। नगर निगम को कई नोटिसों के बाद भी संबंधित कंपनी कार्य में लापरवाही बरत रही है। जिससे नालों का दूषित पानी सीधा गंगा में प्रवाहित हो रहा है। यह स्थिति आपत्तिजनक है। 

क्यों है बायोरेमिडियेशन जरूरी

बायोरेमिडिएशन टेक्नोलॉजी में जैविक विधि से नाले के पानी को साफ किया जाता है। इस टेक्नोलॉजी में कुछ ऐसे घास और पौधे होते हैं, जिनकी जड़ों में बैक्टीरिया पैदा होते हैं। बायोरिमेडिएशन टेक्नोलॉजी में केना घास समेत अन्य घास को नालों में लगाया जाता है। इसमें पनपने वाले बैक्टीरिया नालों में बहने वाली गंदगी को खाते हैं,  साथ ही सफाई में काफी सहायक हैं। सीवेज ट्रीटमेंट प्लांटों (एसटीपी) में भी इस विधि का इस्तेमाल किया जाता है। इससे गंगा में प्रदूषण जाने से रुकता हे।

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