Irfan Solanki: 18 महीने बाद मामले में आया फैसला, 10 बार टला था...प्लॉट पर रहने का पुख्ता आधार नहीं, इससे हुई देरी
18 महीने बाद मामले में आया फैसला, 10 बार टला था
कानपुर, अमृत विचार। आगजनी कांड शुक्रवार को 18 माह बाद फैसला आया। अभियोजन के ओर से वादिनी का प्लॉट पर रहने का कोई पुख्ता सबूत न दे पाना फैसले में देरी का कारण बना। सपा विधायक समेत पांच दोषियों का बीते 1 मार्च को ट्रायल पूरा हो गया था। जिसके बाद फैसले को लेकर 10 तिथियों में सुनवाई की गई, लेकिन अलग-अलग कारणों की वजह से फैसला कई बार टलता रहा।
एडीजीसी भास्कर मिश्रा ने बताया कि सजा सुनाए जाने से पहले कोर्ट ने 350 पन्नों के जजमेंट में प्रमुख बिंदु पढ़ कर विस्तार पूर्वक बताए। जिसमें फैसले में देरी का प्रमुख कारण वादिनी नजीर फातिमा का प्लॉट में रहने का पुख्ता सबूत बना।
एडीजीसी के मुताबिक बचाव पक्ष की ओर से प्लॉट की रजिस्ट्री कोर्ट में दाखिल में गई थी, जबकि अभियोजन पक्ष की ओर से बताया गया था कि नजीर फातिमा के पति ने प्लॉट का केडीए से एलॉटमेंट कराया था, जिसकी कई किस्तें भी वादिनी के पति की ओर से जमा की गई थीं, लेकिन अभियोजन प्लॉट में वादिनी के रहने का कोई पुख्ता सबूत नहीं पेश कर पाया था। जिस कारण मामले में फैसला सुनाने में देरी हो रही थी।
बेल और ट्रायल में कही बातों में अंतर बना सजा का आधार
वादिनी नजीर फातिमा की अधिवक्ता प्राची श्रीवास्तव ने बताया कि घटना को अंजाम देने के बाद सपा विधायक इरफान सोलंकी और रिजवान फरार हो गए थे। गिरफ्तारी से बचने के लिए आरोपियों की ओर से कोर्ट में अग्रिम जमानत याचिका दाखिल की गई थी, जिसे खारिज कर दिया गया था। जिसके बाद दोषियों ने सरेंडर किया था। इसके बाद दोबारा जमानत याचिका दाखिल की गई।
दोनों जमानत याचिकाओं में कही गई बातें और ट्रायल के दौरान दिए गए बयान में अंतर था। साथ ही बचाव पक्ष कोर्ट में यह बताने में असफल रहा था कि वादिनी प्लॉट में अनाधिकृत रूप से रह रही है। बचाव पक्ष के अधिवक्ता करीम सिद्दीकी ने बताया कि कोर्ट ने जमानत के समय कही गई बातों को आधार बनाया है जो क्रिमिनल जस्टिस सिस्टम के विरुद्ध है। हम फैसले के विरुद्ध इलाहाबाद हाईकोर्ट में अपील करेंगे।
