International Day of Yoga 2024: गोंडा की धरती पर जन्मे महर्षि पतंजलि ने दुनिया को दिया था योग का संदेश 

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Published By Jagat Mishra
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उमानाथ तिवारी/ गोंडा, अमृत विचार। जिस योगासन की आज पूरी दुनिया दीवानी है और जिसे निरोगी जीवन का आधार माना जाता है उस योग के प्रणेता का जन्म गोंडा में हुआ था। जिले के वजीरगंज ब्लाक के कोंडर गांव में जन्मे महर्षि पतंजलि ने ही दुनिया को योग का संदेश दिया था। योग के जन्मदाता महर्षि पतंजलि पर्दे के पीछे से अपने शिष्यों को योग की शिक्षा देते थे। धार्मिक ग्रंथों के अनुसार इनकी जन्मस्थली गोंडा जनपद के वजीरगंज कस्बा स्थित कोडर झील के तट पर स्थित है। यहां पतंजलि का एक छोटा सा मंदिर है और मंदिर के नाम पर जमीन भी है‌। महर्षि पतंजलि सिर्फ सनातन धर्म ही नहीं आज हर धर्मो के लिए पूज्य हैं। महर्षि के बताए योग के सूत्र से आज कितने लोग असाध्य रोगों से मुक्ति पा चुके हैं। योग एक ऐसी विधा है जिसका अभी तक धार्मिक आधार पर कोई बंटवारा नहीं है। यह लगभग सभी पंथ, सम्प्रदाय व जाति के लोगों का जीवन का हिस्सा बन चुका है।

ईसा से 200 वर्ष पूर्व हुआ था महर्षि पतंजलि का जन्म
महर्षि पतंजलि का जन्मकाल शुंगवंश के शासनकाल का माना जाता है। जो ईसा से 200 वर्ष पूर्व था। ऋषि पतंजलि की माता का नाम गोणिका था। पतंजलि के जन्म के विषय में ऐसा कहा जाता है कि यह स्वयं अपनी माता के अंजुली के जल के सहारे धरती पर नाग से बालक के रूप में प्रकट हुए थे। माता गोणिका के अंजुली से पतन होने के कारण उन्होंने इनका नाम पतंजलि रखा था। ऋषि को ‘नाग से बालक’ होने के कारण शेषनाग का अवतार भी माना जाता है। महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली का साक्ष्य पाणिनि की अष्टाध्यायी महाभाष्य में मिलता है। जिसमें पतंजलि को गोनर्दीय कहा गया है। जिसका अर्थ है गोनर्द का रहने वाला और गोण्डा जिला गोनर्द का ही अपभ्रंश है। 

पाणिनि के शिष्य थे महर्षि पतंजलि
महर्षि पतंजलि पाणिनि के शिष्य थे। पतंजलि पर्दे के पीछे से अपने शिष्यों को प्रतिदिन योग क्रिया का अभ्यास कराते थे। शिष्यों को गुरु दर्शन करने की मनाही थी। एक जनश्रुति के अनुसार एक दिन महर्षि पतंजलि अपने आश्रम पर शिष्यों को पर्दे के पीछे से शिक्षा दे रहे थे तभी एक शिष्य ने पर्दा हटा कर उन्हें देखना चाहा, तो वह शेषनाग का अवतार होकर अंतर्ध्यान हो गए। महर्षि पतंजलि को शेषनाग का अवतार भी माना जाता है। मान्यता है कि वह सर्प के आकार होकर कोडर झील होते हुए गए। इसलिए झील का आकार आज भी सर्पाकार है। 

महर्षि पतंजलि ने की थी महाभाष्य, पाणिनि, अष्टाध्यायी व योगशास्त्र की रचना
महर्षि पतंजलि अपने तीन प्रमुख कार्यो के लिए आज भी विख्यात हैं। व्याकरण की पुस्तक महाभाष्य, पाणिनि अष्टाध्यायी और योगशास्त्र है। काशी में नागकुआं नामक स्थान पर उन्होने इस ग्रंथ की रचना की थी। आज भी नागपंचमी के दिन इस कुंए के पास अनेक विद्वान व विद्यार्थी एकत्र होकर संस्कृत व्याकरण के संबंध में शास्त्रार्थ करते हैं। महाभाष्य व्याकरण का ग्रंथ है परंतु इसमें साहित्य, धर्म, भूगोल, समाज रहन-सहन से संबंधित तथ्य मिलते हैं।

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पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने का चल रहा प्रयास 
अमृत स्वरूपी योग को पूरी दुनिया में बांटने वाले महर्षि पतंजलि की जन्मस्थली कोडर को के रूप में विकसित करने का प्रयास चल रहा है। तरबगंज विधायक प्रेम नरायन पांडेय के प्रस्ताव पर प्रदेश सरकार ने अपनी सहमति दे दी है‌। इसके लिए करीब 4 करोड़ रुपये खर्च किए जाने का प्रस्ताव है। पर्यटन विचार को पहली किश्त के तौर पर 1.30 करोड़ रुपये का बजट‌ मिल चुका है‌।

महर्षि पतंजलि के नाम पर बना है पॉलिटेक्निक व स्पोर्ट्स क्लब 
महर्षि पतंजलि के नाम पर जिले में दो संस्थान भी हैं। कर्नलगंज में 18 करोड़‌ रुपये की लागत से सूचना प्रौद्योगिकी पालीटेक्निक का निर्माण कराया गया है वहीं जिला प्रशासन ने मुख्यालय पर वेंक्टाचार्य क्लब परिसर में महर्षि पतंजलि स्पो‌र्ट्स कांप्लेक्स का निर्माण कराया है। 

जन्मभूमि को संरक्षित करने का लिए चल रहा संघर्ष
महर्षि पतंजलि की जन्मभूमि को संरक्षित कर पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने के लिए पतंजलि जन्मभूमि न्यास समिति पिछले दो दशक से संघर्ष कर रही है‌। न्यास समिति के अध्यक्ष डॉ. भगवदाचार्य का कहना है कि महर्षि पतंजलि ने स्वयं व्याकरण महाभाष्य में अपनी जन्मस्थली कोंडर का जिक्र किया है। उन्होंने स्वयं को बार-बार गोनर्दीय कहा है। डॉ. भगवदाचार्य महर्षि पतंजलि की जन्मभूमि को विश्व धरोहर का दर्जा दिलाकर पर्यटन स्थल घोषित करने के लिए लगातार प्रयास कर रहे हैं। उन्होंने कोंडर में एक योग विश्वविद्यालय की स्थापना के लिए प्रधानमंत्री को पत्र भेजा था। यह मांग अभी आयुष मंत्रालय में विचाराधीन है‌।

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