InCoMACS-2024: पर्यावरण संरक्षण पर नहीं किया काम तो पानी की बूंद को तरस जाएंगे लोग, विदेशियों के लिए कामधेनु गाय है भारत- डॉ. राजेंद्र सिंह

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Published By Muskan Dixit
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लखनऊ, अमृत विचारः नेशनल पीजी कॉलेज को आज 50 वर्ष पूरे हो गए हैं। कॉलेज अपना गोल्डन जुबली मना रहा है। इस अवसर पर कॉलेज में पहली बार एक अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर भव्य आयोजन किया गया। जहां देश से लेकर विदेश तक के युवा वर्ग, छात्र, शोधकर्ता, शिक्षाविदों और उद्योग क्षेत्र के प्रसिद्ध हस्तियों ने भाग लिया। यह तीन दिवसीय InCoMACS-2024 (International Conference on Multidisciplinary Approaches to Chemical Sciences) में 300 से अधिक रिसर्च और स्टडी पेश की जाएंगी। इस अंतर्राष्ट्रीय सम्मेलन का मुख्य उद्देश्य लोगों तक केमिस्ट्री के विशाल रूप से रूबरू कराना है कि किस तरह लोगों को लाइफ कैमेस्ट्री से शुरू होकर कैमेस्ट्री पर ही खत्म हो रही है। इसे समझाने के लिए देश के कई नामचीन लोगों ने इस कॉन्फ्रेंस में हिस्सा लिया। जहां मुख्य अतिथि के रूप में तरुण भारत संघ के अध्यक्ष और भारत के जल पुरूष नाम से मशहूर डॉ. राजेंद्र सिंह, सम्मानित अतिथि के रूप में सेंटर ऑफ बायोमेडिकल रिसर्च के निदेशक प्रो. आलोक धवन, सीडीआईआर के चीफ साइंटिस्ट डॉ. अतुल गोयल, लखनऊ विश्वविद्यालय के कैमेस्ट्री डिपार्टमेंट के प्रो. वीके शर्मा शामिल हुए।

 

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स्टोन एज के अंत से शुरू हुआ कैमेस्ट्री का युग

 

कॉलेज प्रिंसिपल प्रो. देवेंद्र कुमार सिंह ने कार्यक्रम की शुरुआत करते हुए बताया कि हर सब्जेक्ट की अपनी एक लेगेसी होती है। ऐसा ही कुछ कैमेस्ट्री के साथ भी है। कैमेस्ट्री की शुरुआत आज से नहीं बल्कि सदियों साल पहले से हो चुकी है। कांस युग से शुरू हुई कैमेस्ट्री ने अपना पूरा स्वरूप ही बदल लिया है। इसमें भारत समेत अमेरिका, जर्मनी, फ्रांस, कनाडा और पोलैंड के शोधकर्ता, शिक्षाविदों और उद्योग क्षेत्र के प्रसिद्ध हस्तियां भाग लेंगी और अपना रिसर्च और स्टडी पेश करेंगे। साथ ही रासायनिक विज्ञान के क्षेत्र में नवीनतम नवाचारों और समाधानों ने लोगों के जीवन को आसान बना दिया है। उन्होंने कहा कि आज के समय में कैमेस्ट्री के बहुत से स्वरूप हो गए है, जो हर विधा में लोगों को फायदा पहुंचा रहे हैं। जैसे कि कार्बनिक रसायन विज्ञान, पर्यावरण, फोरेंसिक विज्ञान, सामग्री विज्ञान और औद्योगिक रसायन। जीवन के हर मोड़ में कैमेस्ट्री मौजूद है।

 

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एजुकेशन में डिसइंट्रीगेशन है, विद्या में इंट्रीगेशन है

 

तरुण भारत संघ के अध्यक्ष और भारत के जल पुरूष डॉ. राजेंद्र सिंह ने इस उद्योगिक काल में और बड़ी इंफ्रास्ट्रक्चर में कैमेस्ट्री ने भले ही बड़े बदलाव किए हैं, लेकिन इसका बड़ा असर हमारे क्लाइमेट पर भी पड़ा है। कलाइमेट को इसकी बहुत मार झेलनी पड़ी है। जहां पहले सिर्फ 40 प्रतिशत क्षेत्र को सुखा झेलना पड़ता था। वहीं अब 40 प्रतिशत से लेकर 70 प्रतिशत हो गया है। जहां कुछ क्षेत्रों को सुखा झेलना पड़ रहा है तो कुछ क्षेत्रों को बाढ़ से गुजरना पड़ता है। ये सब सिर्फ और सिर्फ क्लाइमेट चेंज की वजह हो रहा है। इस क्लाइमेट चेंज को रोकने के लिए लोगों को आगे बढ़ना होगा।

 

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वहीं सेंटर ऑफ बायोमेडिकल के निदेशक प्रो. आलोक धवन ने बताया कि रसायन विज्ञान हर चीज का केंद्र बिंदु है। फिर चाहे वो ससटेनिबिलिटी हो, एन्वायरमेंट चेंज हो या फिर डेली यूज होनी वाली लाइट हो। हम लोग धीरे-धीरे ग्रीन एनर्जी की ओर बढ़ रहे हैं। इसे लेकर कई सारी रिसर्च चल रही हैं कि किस तरह की चीजों का निर्माण किया जाए की पॉलीमर्स का इस्तेमाल कम से कम हो और एन्वायरमेंट को कम से कम प्रदूषण हो। आज एक ऐसा समय आ गया है कि पर्यावरण दूषित है। यह इस लिए कि मानव ने पर्यावरण का दोहन कर दिया है। इसको कंट्रोल करने में रसायन विज्ञान काफी मदद कर सकती है। लोगों को समझना होगा की किस तरह से पर्यावरण को बचा सकते हैं। इसमें रसायन और पढ़ाई ही मदद करेगी।

 

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