उफ! ये अतिक्रमण तो मरीजों को अस्पताल तक नहीं पहुंचने देता, लोहिया संस्थान का गेट नंबर-8 अतिक्रमण की चपेट में

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Published By Muskan Dixit
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लखनऊ, अमृत विचार: डॉ. राम मनोहर लोहिया आयुर्विज्ञान संस्थान के गेट नंबर-8 के इर्द-गिर्द भीषण अतिक्रमण हैं। गंभीर मरीजों को लेकर आने वाली एंबुलेंस अक्सर इस जाम में फंस जाती हैं। एंबुलेंस के हूटर और तीमारदारों के माथे पर चिंता की लकीरों का भी अतिक्रमणकारियों पर कोई फर्क नहीं पड़ता। काफी देर तक मरीजों की एंबुलेंस जाम में फंसी रहती है। इसके बावजूद संस्थान के गेट और मुख्य मार्ग से अवैध कब्जे नहीं हटाए जाते हैं। अस्पतालों के बाहर यातायात अराजकता में फंसती एंबुलेंस और गंभीर मरीजों को होने वाली दिक्कतों पर पंकज द्विवेदी की रिपोर्ट...।

गंभीर हालत में एंबुलेंस से लाए जाते हैं मरीज
लोहिया संस्थान की ओपीडी में रोजाना चार हजार से अधिक मरीज आते हैं। इसमें बड़ी संख्या में गंभीर मरीज होते हैं। दूसरे जिलों से गंभीर मरीजों को एंबुलेंस से लाया जाता है। संस्थान के मुख्य मार्ग पर जाम से एंबुलेंस को ओपीडी तक पहुंचने में बाधा उत्पन्न होती है। गेट नंबर-8 से ही ओपीडी की इंट्री होती है। यहीं पर जन औषधालय केंद्र भी है। जाम गंभीर मरीजों के लिए जानलेवा साबित हो सकता है।

20 मिनट जाम में फंसी रही मरीज ले जा रही एंबुलेंस
लोहिया संस्थान के गेट के पास अतिक्रमण के अलावा इन दिनों नाले की मरम्मत के चलते एक तरफ सड़क भी बंद है। इससे पूरे दिन जाम की स्थिति रहती है। बस्ती के आदर्श कुमार ने बताया कि पिता को सांस से संबंधित बीमारी है। शुक्रवार को एंबुलेंस से उन्हें लोहिया संस्थान की ओपीडी लाए थे। अयोध्या मार्ग की तरफ से आने पर एंबुलेंस अस्पताल के पास जाम में फंस गई। 15 से 20 मिनट बाद जैसे तैसे अस्पताल के अंदर पहुंच सके।

लोहिया संस्थान के गेट पर निजी एंबुलेंस की कतार
लोहिया संस्थान के इसी गेट के सामने की सड़क पर निजी एंबुलेंस कतार में खड़ी रहती हैं। करीब 40 की संख्या में खड़ी रहने वाली ये एंबुलेंस भी जाम बढ़ाने में अपना योगदान करती हैं। इन निजी एंबुलेंसों के चालक दिनभर तीमारदारों को निजी अस्पतालों में बेहतर इलाज दिलाने का झांसा देकर मरीजों को शिफ्ट कराने में लगे रहते हैं। कई शिकायतें भी आईं। इन शिकायतों के बाद उपमुख्यमंत्री ब्रजेश पाठक ने सरकारी अस्पतालों और चिकित्सा संस्थानों के आसपास निजी एंबुलेंस खड़ी करने पर रोक लगाने के निर्देश दिए थे। इसमें कहा गया था कि निजी एंबुलेंस मरीज को सरकारी अस्पतालों में ला सकती हैं, लेकिन मरीजों को छोड़ने के बाद तत्काल बाहर जाना होगा। अस्पतालों के आसपास निजी एंबुलेंस खड़ी भी नहीं की जाएंगी। इसकी जिम्मेदारी सीएमओ को दी गई थी। तत्कालीन सीएमओ डॉ. मनोज अग्रवाल ने एक टीम भी बनाई थी। कुछ दिनों टीम सक्रिय रही, केजीएमयू के पास से तीन एंबुलेंस सीज भी की गईं। कुछ दिनों बाद अभियान ठप हो गया। अब फिर लोहिया संस्थान के गेट के पास एंबुलेंस की कतार दिखती है।

lohia institute

इन्हें बनाया गया था नोडल
शासन के निर्देश पर तत्कालीन सीएमओ ने निजी एंबुलेंस पर नजर के लिए नोडल बनाए थे। डिप्टी सीएमओ डॉ. बीएन यादव को सिविल-झलकारीबाई अस्पताल, डॉ. गोपी लाल को बलरामपुर अस्पताल, डॉ. एपी सिंह को लोहिया संस्थान, डॉ. आरएन सिंह को केजीएमयू तथा अन्य अफसरों को अन्य अलग-अलग अस्पतालों की जिम्मेदारी दी गई थी।

एंबुलेंस हटवाना मेरी जिम्मेदारी नहीं
सीएमओ डॉ. एनबी सिंह ने कहा कि अस्पतालों के बाहर से एम्बुलेंस हटवाने का काम पुलिस का है न कि सीएमओ का। इसकी जिम्मेदारी मेरी नहीं है। यदि पूर्व में ऐसी कोई व्यवस्था थी भी तो मुझे नहीं पता।

अस्पताल के आसपास अतिक्रमण न होने पाए इसके लिए टीम नियुक्त की गई है। टीम रोजाना भ्रमण करती रहती है। इसके बाद भी अवैध कब्जे अगर दिखे तो टीम से स्पष्टीकरण लिया जाएगा, साथ ही तत्काल अतिक्रमण हटवाया जाएगा।
- संजय यादव, जोनल अधिकारी, जोन-4 नगर निगम

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