पीलीभीत: पीटीआर में दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीवों की भरमार, शेड्यूल वन के पैंगोलिन की भी मौजूदगी
पीलीभीत, अमृत विचार: पीलीभीत टाइगर रिजर्व अपनी खूबसूरती और यहां के बाघों के लिए देश-दुनिया में पहचान बनाता नजर आ रहा है। इन सबके बीच तराई की गोद में बसे इस जंगल में दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीवों की मौजूदगी भी बढ़ती नजर आ रही है। वन्यजीव संरक्षण से जुड़ी संस्था टरक्वाइज वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसायटी के मुताबिक पीलीभीत टाइगर रिजर्व में शेड्यूल वन में शामिल पैंगोलिन चिन्हित किए गए हैं। पैंगोलिन का शुल्क भी बाघ की खाल के बराबर अंतरराष्ट्रीय बाजार में कीमत रखता है। इसी वजह से इसकी तस्करी की संभावना भी रहती है।
रुहेलखंड का एक मात्र सघन जंगल, जिसे अब पीलीभीत टाइगर रिजर्व के नाम से जाना जाता है, अपनी जैव विविवधता को लेकर चंद सालों में ही देश के श्र्रेष्ठ टाइगर रिजर्वों की दौड़ में शामिल हो चुका है। बाघों एवं उनके संरक्षण के दम पर ही राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय अवार्ड जीत चुके पीलीभीत टाइगर रिजर्व एवं उसके आसपास क्षेत्र में वन्यजीवों के साथ अब दुर्लभ प्रजाति के वन्यजीवों की तादाद भी बढ़ती जा रही है।
वर्तमान में यहां 71 से अधिक बाघ हैं। यहां तेंदुआ, भालू समेत यहां दुलर्भ प्रजाति की रस्टी स्पॉटेड कैट, रेड कोरल कुकरी सांप, फिशिंग कैट समेत कई दुर्लभ पक्षियों की प्रजातियां पाई गई है। इसमें करीब वैश्विक स्तर के भी पक्षी शामिल है। कम लोग ही जानते होंगे कि पीलीभीत टाइगर रिजर्व में शेड्यूल वन श्रेणी का पैंगोलिन भी पाया जाता है।
टरक्वाइज वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन सोसायटी के अध्यक्ष मोहम्मद अख्तर मियां के मुताबिक यह एक विलुप्त श्रेणी का वन्यजीव है, जो बेहद कम ही दिखाई देता है। इसे सल्लू सांप और चींटीखोर के नाम से भी जाना जाता है।
यह स्तनधारी वन्यजीव आईयूसीएन (इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर) के रेड डाटा बुक में संकटग्रस्त वन्यजीव की श्रेणी में दर्ज है। भारतीय वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 में इसको अनुसूची प्रथम में रखा गया है। यह चींटी और दीमक को खाने वाला वन्यजीव पीलीभीत टाइगर के घने जंगलों में चिन्हित किया गया है।
सबसे ज्यादा होती है तस्करी
पैंगोलिन एक ऐसा वन्यजीव है, जिसकी दुनिया भर में सबसे ज्यादा तस्करी होती है। आईयूसीएन के मुताबिक दुनिया भर के वन्यजीवों की अवैध तस्करी में अकेले 20 फ़ीसदी पैंगोलिन है। टरक्वाइज वाइल्डलाइफ कंजर्वेशन सोसायटी के मोहम्मद अख्तर मियां के मुताबिक कई देशों में दवाएं बनाने और मांस के लिए पैंगोलिन की बहुत डिमांड रहती है। पैंगोलिन की त्वचा की ऊपरी शल्क कैरोटिन से बनी होती है। जानकारों के मुताबिक बहुत सी बीमारियों के इलाज में इसकी मदद ली जाती है। कुछ साल पहले अमरिया क्षेत्र में एक शिकारी को पैंगोलिन के साथ पकड़ा गया था, जिसे बाद में जेल भी भेजा गया था।
अब तक तीन रेंजों में हो चुका चिन्हित
पैंगोलिन को पीलीभीत टाइगर रिजर्व की हरिपुर, बराही और दियोरिया रेंज में चिन्हित किया गया है। यह जंगल क्षेत्र के अलावा बफर क्षेत्र में भी देखे गए हैं। जंगल में आग जैसी घटनाएं होने और हैबीटेट लॉस होने की वजह से यहां इस प्रजाति के संरक्षण पर ध्यान देने की आवश्यकता है। स्थानीय ग्रामीण इसको दमा के रोगी और मांस के लिए शिकार करते हैं। संकटग्रस्त प्रजाति होने के नाते इस पर विशेष ध्यान देना बेहद जरुरी है- अख्तर मियां खां, अध्यक्ष, टरक्वाइज वाइल्ड लाइफ कंजर्वेशन सोसायटी।
पीलीभीत टाइगर रिजर्व में वन्यजीवों के संरक्षण पर प्रमुखता से ध्यान दिया जा रहा है। बाघ संरक्षण के साथ-साथ यहां अन्य वन्यजीवों की तादाद भी बढ़ी है। साथ ही कुछ रेअर स्पेशिज भी देखी जा रही है। टाइगर रिजर्व के लिए लिहाज से यह एक शुभ संकेत है- मनीष सिंह, डिप्टी डायरेक्टर, पीलीभीत टाइगर रिजर्व।
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