प्रयागराज : साक्ष्यों और गवाहों से छेड़छाड़ की स्थिति में पूर्व प्राप्त जमानत रद्द की जा सकती है
प्रयागराज : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने जमानत रद्द करने के प्रावधानों को स्पष्ट करते हुए कहा कि जमानत रद्द करना और जमानत खारिज करना दो अलग-अलग परिदृश्य हैं, क्योंकि जमानत रद्द करना जमानत आदेश द्वारा नागरिक को पहले से दी गई स्वतंत्रता में हस्तक्षेप करता है। जमानत रद्द करने का तंत्र कानून में प्रदान किया गया, जिससे यह सुनिश्चित किया जा सके कि जमानत आदेश द्वारा रिहा किए गए अभियुक्त को साक्ष्यों से छेड़छाड़ करने से रोककर समाज के साथ न्याय किया जाएगा।
जमानत रद्द करने में पहले से लिए गए निर्णय की समीक्षा भी शामिल होती है। इसका प्रयोग बहुत सावधानी और सतर्कता से किया जाना चाहिए। जमानत का अवैध या विकृत आदेश तथा अप्रासंगिक सामग्री के आधार पर जमानत देने वाला आदेश सीआरपीसी की धारा 439(2) के तहत कार्यवाही में रद्द किया जा सकता है। उक्त आदेश न्यायमूर्ति आशुतोष श्रीवास्तव की एकलपीठ ने अहसवानी कुमार अग्रवाल की याचिका स्वीकार करते हुए पारित किया। मामले के अनुसार आरोपी ने आवेदक और उसके बीच फर्जी करारनामा तैयार किया, जिसमें करोड़ों रुपये की कृषि भूमि की बिक्री का लेनदेन दिखाया गया।
हालांकि एफएसएल ने इस दस्तावेज को फर्जी घोषित किया और आईपीसी की विभिन्न धाराओं के तहत पुलिस स्टेशन ट्रॉनिका सिटी, गाजियाबाद में प्राथमिकी दर्ज कराई गई। आरोपी ने गाजियाबाद के सत्र न्यायाधीश के समक्ष जमानत के लिए आवेदन किया, जिसे मंजूर कर लिया गया। उपरोक्त जमानत आदेश को चुनौती देते हुए याची/सूचनाकर्ता के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि आरोपी के खिलाफ जघन्य अपराधों में आपराधिक मामले दर्ज हैं और उस पर गुंडा एक्ट और यूपी गैंगस्टर एक्ट के तहत भी आरोप लगाए गए हैं। याची के अधिवक्ता ने याची की जान को खतरा बताते हुए तर्क दिया कि आरोपी के खिलाफ नई एफआईआर दर्ज की गई और वह जांच एजेंसियों द्वारा गिरफ्तारी से बच रहा है। इसके अलावा ट्रायल कोर्ट द्वारा जमानत आदेश में विवेक का प्रयोग न किए जाने और सुप्रीम कोर्ट द्वारा निर्धारित कानून पर विचार न किए जाने को दर्शाया गया।
आरोपी की आपराधिक पृष्ठभूमि पर विचार करते हुए कोर्ट ने माना कि आरोपी जमानत का हकदार नहीं है, क्योंकि जालसाजी के साथ वह आर्थिक अपराध में भी संलिप्त है। इसके अलावा आरोपी द्वारा याची पर झूठे मुकदमे दर्ज कराने के मामले में कोर्ट ने कहा कि आरोपी ने आवेदक पर उसके खिलाफ दर्ज आपराधिक मामलों को वापस लेने का दबाव बनाने के लिए झूठा बलात्कार का मामला दर्ज कराया था।याची पर बुलंदशहर न्यायालय में भी आरोपी और उसके गिरोह के सदस्यों द्वारा हमला किया गया था। अतः कोर्ट ने वर्तमान मामले को जमानत रद्द करने के लिए एक उपयुक्त मामला माना और विपक्षी संख्या 2/आरोपी की जमानत रद्द कर दी।
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