High Court की लिव-इन रिलेशनशिप पर बड़ी टिप्पणी, कहा- न्यायालय ऐसे मामलों से तंग आ चुका है

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने लिव-इन रिलेशनशिप में रहने वाले व्यक्ति को अपनी साथी महिला का शोषण करने के आरोप से दोष मुक्त करते हुए कहा कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा लिव-इन रिलेशनशिप को वैध घोषित किए जाने के बाद से न्यायालय ऐसे मामलों से तंग आ चुका है, क्योंकि लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा भारतीय मध्यम वर्गीय समाज में स्थापित कानून के खिलाफ है। प्रायः देखा गया है कि जब ऐसे रिश्तों में खटास आ जाती है, तो अंततः ऐसे रिश्तों में पड़े लोग अदालतों में कानूनी लड़ाई लड़ते हैं। ऐसे रिश्तों के खत्म होने का प्रभाव पुरुषों की तुलना में महिलाओं पर अधिक पड़ता है। 

कोर्ट ने स्पष्ट किया कि लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा महिलाओं के हितों के खिलाफ है, क्योंकि एक पुरुष एक या कई महिलाओं के साथ लिव-इन रिलेशनशिप में रहने के बाद भी शादी कर सकता है, लेकिन अलगाव के बाद महिलाओं के लिए जीवनसाथी ढूंढना मुश्किल हो जाता है। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकलपीठ ने बीएनएस, 2023 और पॉक्सो अधिनियम की विभिन्न धाराओं के तहत दर्ज मामले में शाने आलम को जमानत देते हुए की।

याची पर आरोप है कि उसने पीड़िता से शादी का झूठा वादा करके उसके साथ अनैतिक संबंध बनाए और बाद में पीड़िता से शादी से इनकार कर दिया। पीड़िता की अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि आरोपी के दुष्कृत्य ने पीड़िता का जीवन बर्बाद कर दिया है। अब उसके लिए विवाह के लिए उपयुक्त वर ढूंढना मुश्किल हो रहा है। इस पर कोर्ट ने निष्कर्ष दिया कि यद्यपि युवा पीढ़ी लिव-इन रिलेशनशिप की अवधारणा से बहुत प्रभावित है, लेकिन इसका प्रतिकूल प्रभाव भी उनके जीवन पर स्पष्ट रूप से दिखाई दे रहा है।

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