लखीमपुर खीरी: तो क्या शावकों के सिर से हट जाएगा मां की साया ? बाघिन होगी ट्रैंकुलाइज
धर्मवीर गुप्ता, बांकेगंज। रत्नापुर और ढाका गांव में आतंक मचाने वाली बाघिन को ट्रैंकुलाइज करने के निर्देश वनाधिकारियों को प्राप्त हो चुके हैं। ऐसे में वन्यजीव प्रेमियों और विशेषज्ञों में तीनों शावकों के जीवन को लेकर चिंता बढ़ गई है। उनका मानना है कि माता के बिना शावक किसी अन्य बाघ का अथवा ग्रामीणों के आक्रोश का शिकार बन जाएंगे।
23 जून की शाम रत्नापुर में सड़क किनारे घास काट रहे 12 वर्षीय किशोर प्रदीप कुमार पर जानलेवा हमला करने के साथ ही कुछ दिनों में कई पशुओं को घर में घुसकर मारने वाली बाघिन को अंततः ट्रैंकुलाइज करके क्षेत्र वासियों को दहशत से निजात दिलाने का आदेश गोला वन विभाग टीम को मिल चुका है। गोला वन रेंज में दो पिंजरे व मैलानी वन रेंज के ढाका में एक पिंजरा लगाया है। कई कैमरे भी लगाए जा चुके हैं। उसे ट्रैंकुलाइज करने के लिए टीम मौके पर पहुंच चुकी है।
रत्नापुर में लगे पिंजरे में पहले दिन बकरा बांधा गया, दूसरे दिन मृत पड़िया को पिंजरे में डाला गया, लेकिन बाघिन अभी तक स्वच्छंद घूम रही है। तमाम ग्रामीण बाघिन के साथ तीन शावकों के होने की चर्चा भी कर रहे हैं। वनकर्मी कैमरे में शावकों के दिखाई न देने की बात कह रहे हैं। ग्रामीणों की बात झुठलाना आसान नहीं है, क्योंकि 18 अक्टूबर 2024 को रत्नापुर से कुछ दूरी पर बांकेगंज कुकरा मार्ग पर लोहिया पुल के पास बाघिन अपने तीन शावकों को मुंह में दबाकर बारी-बारी से सड़क पार करते हुए दिखाई दी थी, जिसका फोटो और वीडियो वायरल हुआ था। यदि वही बाघिन रत्नापुर में है तो उसके साथ तीन शावकों का होना भी सच है।
कुछ अनुभवी वनकर्मी स्वीकार करते हैं कि बाघिन आमतौर पर शावकों को एक निश्चित स्थान पर छोड़ देती है। उन्हें अपनी भाषा में समझाकर वहीं रुकने को कहकर शिकार करने जाती है। शिकार लेकर वापस उसी स्थान पर आती है, स्वयं खाती है और अपने शावकों को खिलाती है, शायद इसलिए भी वह कैमरे में नहीं आ रहे हों। वन्यजीव प्रेमियों और विशेषज्ञों की चिंता यह है कि तीन शावक ही हैं, जो न तो अभी अपना शिकार करना सीख पाए होंगे और न ही खुद को सुरक्षित रखना सीख पाएं होंगे।
क्या कहते हैं वन्य जीव विशेषज्ञ
वन्य जीव विशेषज्ञ डॉक्टर जितेंद्र शुक्ला बताते हैं अगर उस क्षेत्र में दहशत फैलाने वाली बाघिन के साथ तीन शावक है तो वन विभाग को अपने निर्णय पर पुनर्विचार करना चाहिए। क्योंकि शावक अपनी माता की छत्रछाया में शिकार और संघर्ष करना सीखते हैं। नर शावक डेढ़ वर्ष की आयु में खुद शिकार करने में समर्थ हो जाता है और माता से अलग होकर अपना क्षेत्र बनाने का प्रयास करता है। मादा शावक दो वर्ष की आयु के बाद माता से अलग रहने में सक्षम हो जाती है। इससे पहले यदि उनकी माता को उनसे अलग कर दिया जाए तो उन्हें जीवन के लिए संघर्ष करना कठिन हो जाएगा। बाघों में एक बुरी आदत होती है वे अपनी ही नस्ल को आगे बढ़ते देखना चाहते हैं। ऐसे में यदि शावक अन्य बाघों की नजर में आ गए तो वे ही इन्हें मार देंगे। दूसरे अभी शिकार करने में अपरिपक्व शावक यदि माता के पदचिन्हों पर चलते हुए किसी पालतू पशु का शिकार करने किसी ग्रामीण के घर में घुस गए तो ग्रामीण भी इन्हें घेरकर मार सकते हैं, इसलिए वन विभाग को बाघिन को ट्रेंकुलाइज करने और शावकों से उसे दूर करने से पहले इन बिंदुओं पर भी विचार कर लेना चाहिए। मानव जीवन बहुमूल्य है। उसकी सुरक्षा जरूरी है परंतु वन्यजीव भी परिस्थिति तंत्र का एक अहम हिस्सा है। उन्हें भी नष्ट होने से बचाना हमारी जिम्मेदारी है।
वन क्षेत्राधिकारी गोला संजीव कुमार ने बताया कि क्षेत्र में उत्पात मचाने वाला बाघ हो या बाघिन उसे ट्रैंकुलाइज करके पकड़ा जाएगा। इसकी अनुमति मिल गई है और एक्सपर्ट की टीम भी आ गई है। रही बात शावकों की तो वे अभी तक कैमरे में दिखाई नहीं दिए हैं।
