आउटसोर्स सेवा निगम का बदला ढांचा, 11 लाख संविदाकर्मियों से लेकर बेरोजगार कर रहे थे इंतजार 

Amrit Vichar Network
Published By Virendra Pandey
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सिर्फ निगरानी तक सीमित रहेगा आउटसोर्स सेवा निगम

धीरेंद्र सिंह, लखनऊ, अमृत विचार। जिस आउटसोर्स सेवा निगम का राज्य के 11 लाख संविदाकर्मियों से लेकर युवा पीढ़ी को बेसब्री से इंतजार था, अब उसका ढांचा ही बदल गया है। यह निगम न पहले से काम कर रहे कार्मिकों को कोई नया नियुक्ति पत्र देगा, न ही 60 साल में सेवानिवृत्त की गारंटी। अब सिर्फ तीन साल तक नियुक्ति पत्र देने वाली आउटसोर्स एजेंसियों के चयन से लेकर उनके द्वारा समय से वेतन, नियुक्ति में आरक्षण, ईपीएफ व ईएसआई आदि मामले में सख्त निगरानी करेगा।

अमृत विचार ने एक जून के अंक में ‘आउटसोर्स सेवा निगम बनाने में आड़े आ रहे श्रम कानून’ शीर्षक से सारी स्थितियां स्पष्ट कर दी थी। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की गुरुवार की देर शाम हुई उच्चस्तरीय बैठक में इसपर मुहर भी लग गई। मुख्यमंत्री ने साफ कर दिया कि आटसोर्स सेवा निगम को रेगुलेटरी बॉडी की भूमिका में रखा जाए जो एजेंसियों की कार्यप्रणाली की निगरानी करे और नियमों के उल्लंघन पर ब्लैकलिस्टिंग, डिबारमेंट, पेनाल्टी और वैधानिक कार्यवाही सुनिश्चित करे।

अमृत विचार नई कॉपी

हालांकि मुख्यमंत्री योगी ने इस साल फरवरी माह के विधानसभा सत्र में संविदा कार्मिकों की पीड़ा गिनाकर उन्हें शोषण से मुक्ति दिलाने के लिए जब आउटसोर्स एजेंसियों को समाप्त करके आउटसोर्स सेवा निगम बनाने का एलान किया था, तो बेरोजगार युवकों ने खासा उत्साह दिखाया। इसका एक शासनादेश भी सामने आया, जिसमें कंपनी एक्ट 2013 की धारा 8 के तहत गैर लाभकारी उद्देश्यों वाले इस निगम के गठन का ब्योरा था। इसमें मुख्य सचिव की अध्यक्षता में निदेशक मंडल, उसके कार्य-अधिकार, कर्तव्य, नियमावली यानि सीमा नियम और अंतर्नियम के प्रावधान और इसी अनुरूप शासन, प्रशासन, निदेशालय, नगर निगम, स्थानीय निकाय, सरकारी संस्थाएं, सरकार से अनुदानित संस्थाओं, मंडल और जिला स्तर बनीं समितियों के जरिए चार श्रेणी के कार्मिकों को कुल 93 विभागों में नियुक्ति का मसौदा था। साथ ही निगम के संचालन व प्रशासन की पूरी गाइडलाइन थी।

मुख्यमंत्री की अप्रैल में हुई पहली बैठक में उठे थे सवाल

मुख्यमंत्री की आउटसोर्स सेवा निगम को लेकर 25 अप्रैल को मुख्य सचिव समेत आउटसोर्स सेवा निगम का सीमा नियम (मेमोरंडम ऑफ एसोसिएशन) और अंतर्नियम (आर्टिकल्स ऑफ एसोसिएशन) बनाने की जिम्मेदारी निभा रहे सचिवालय प्रशासन विभाग, वित्त विभाग, कार्मिक विभाग, न्याय विभाग और श्रम विभाग के एसीएस व प्रमुख सचिव के साथ हुई बैठक में ही श्रम कानूनों के मद्देनजर सवाल उठे थे। 

इस आपत्ति के बाद आउटसोर्स सेवा निगम का बदला चेहरा

दरअसल सरकारी विभागों और संस्थाओं में कार्यरत करीब 11 लाख संविदा कार्मिक कहीं 11 माह तो कहीं अधिकतम तीन साल के लिए एग्रीमेंट पर कार्यरत हैं। ऐसे में नए मानदेय पर 60 साल उम्र में सेवानिवृत्ति के नियमों के तहत आउटसोर्स सेवा निगम की ओर से प्लेसमेंट इंफारमेशन लेटर (एलआईपी) जनरेट करके संबंधित विभाग की चयन समितियों के अध्यक्ष के डिजिटल हस्ताक्षर से संबंधित कार्मिक देने की व्यवस्था से न्याय व श्रम विभाग सहमत नहीं हुआ। उनका तर्क था कि आउटसोर्स एजेंसी को बाहर करते ही नए नियमों पर नियुक्त कर्मी सरकारी विभाग में स्थाई कर्मी का दावेदार होगा। साथ ही, वह समान पद पर समान वेतन का दावा भी श्रम न्यायालयों से लेकर हाइकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट में कर सकता है।

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