यूपी: पुलिस कमिश्नरेट में तैनात 161 पुलिसकर्मी गायब! विभाग ने कर्मचारियों की रिपोर्ट बनाकर भेजी मुख्यालय
कानपुरः यूपी के कानपुर पुलिस कमिश्नरेट से 161 पुलिसकर्मी लापता हो गए हैं। इनमें से कुछ दिन, तो कुछ तीन से छह महीने से गायब हैं। विभाग ने इनकी खोजबीन की, नोटिस भेजे, लेकिन कोई सामने नहीं आया। ये सभी पुलिसकर्मी छुट्टी लेकर घर गए थे, मगर ड्यूटी पर वापस नहीं लौटे। आखिरकार, विभाग ने इनकी सूची तैयार कर मुख्यालय को भेज दी। यह खबर काफी चर्चा में हैं। इसके पीछे की सच्चाई अब सामने आ गई है।
कानपुर पुलिस कमिश्नरेट ने एक्स पर एक वीडियो जारी किया है। इसमें उन्होंने कहा कि दिनांक 21.07.2025 को मीडिया में एक खबर प्रसारित हो रही है कि कानपुर कमिश्नरेट के 161 पुलिस कर्मी कुम्भ मेले के बाद से गायब/गुमशुदा है इस खबर की जांच करने पर ज्ञात होता है कि हमारे कुल 53 पुलिस कर्मी विभिन्न थानों व यातायात लाइन/पुलिस लाइन से अनुपस्थित/गैर हाजिर चल रहे है इनकी विभागीय जांच करवाई जा रही है बाद जांच जो भी निष्कर्ष होगा उसके आधार पर विभागीय कार्यवाही की जाएगी। फिलहाल जो 161 पुलिस कर्मी का आकड़ा निराधार/असत्य है। जांच के दौरान यदि यह सामने आता है कि अनुपस्थिति किसी गंभीर कारण (जैसे एक्सीडेंट या पारिवारिक समस्या) से हुई है, तो उसे ध्यान में रखा जाता है। लेकिन अगर जानबूझकर लापरवाही या अनुशासनहीनता पाई जाती है, तो संबंधित पुलिस रेगुलेशन एक्ट के तहत दंडात्मक कार्रवाई की जाती है।
कहा गया था कि पुलिस विभाग में छुट्टी आसानी से नहीं मिलती। फिर भी, जब पुलिसकर्मी अवकाश लेकर जाते हैं, तो कई बार पारिवारिक या अन्य कारणों से समय पर वापस नहीं आते। कानपुर कमिश्नरेट के इन 161 पुलिसकर्मियों ने भी ऐसा ही किया। इनमें चारों जोन, पुलिस लाइन, कार्यालय और ट्रैफिक विभाग के कर्मचारी शामिल हैं। विभागीय जानकारी के मुताबिक, जो कर्मचारी लंबे समय तक बिना सूचना के अनुपस्थित रहते हैं और नोटिस का जवाब नहीं देते, उन्हें 'डिसलोकेट' श्रेणी में डाला जाता है। इन सभी गायब पुलिसकर्मियों को भी अब इसी श्रेणी में रखा गया है। सूत्र बताते हैं कि इनके गृह जनपद में कई बार पत्र भेजे गए, लेकिन न जवाब मिला, न ही कोई वापस लौटा। अधिकारी इस संख्या को और भी ज्यादा बता रहे हैं।
मेडिकल आधार पर होती है वापसी
विभागीय सूत्रों का कहना है कि बिना सूचना लंबी छुट्टी लेने वाले पुलिसकर्मी, जब वापस आते हैं, तो मेडिकल सर्टिफिकेट लाते हैं। इसके आधार पर वे ड्यूटी जॉइन करने की कोशिश करते हैं। कई बार विभाग उन्हें जॉइन करने से रोकता है, तो वे अदालत का रुख करते हैं।
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