Lucknow News: अस्पतालों में धूल फांक रहे वेंटिलेटर, मरीजों की उखड़ रही सांसे, जानें क्या बोले जिम्मेदार

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Published By Muskan Dixit
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लखनऊ, अमृत विचार : मरीजों की उखड़ती सांसों को बचाने के लिए परिजन वेंटिलेटर के लिए एक से दूसरे अस्पतालों के चक्कर काट रहें। इसका फायदा निजी अस्पताल के दलाल उठा रहें। दलाल उनकी मजबूरी का फायदा उठाकर जमकर वसूली कर रहें। ऐसी आए दिन घटनाएं होने के बावजूद सरकारी अस्पतालों में बंद पड़े वेंटिलेटरों को क्रियाशील नहीं किया जा रहा। प्रमुख अस्पतालों में करीब 50 वेंटिलेटर धूल फांक रहें हैं।

कोविड काल में बड़ी संख्या में वेंटिलेटर की खरीद हुई थी। राजधानी के कई सरकारी अस्पतालों में इनका संचालन शुरू कराया गया। बाद में विशेषज्ञों और भारी भरकम बजट की कमी के चलते सरकारी अस्पतालों में वेंटिलेटर ताले में बंद हैं। अधिकारियों का कहना हैं कि वेंटिलेटर को चलाने वाले डॉक्टर, नर्सिंग स्टाफ व टेक्नीशियन की कमी है। नतीजतन सभी वेंटिलेटर का संचालन नहीं हो पा रहा है।

केजीएमयू में सबसे ज्यादा करीब 350 वेंटिलेटर का संचालन हो रहा है। इनमें से 74 वेंटिलेटर बेड ट्रॉमा सेंटर में हैं। सभी बेड हमेशा भरे रहते हैं। यहां आने वाले रोजाना करीब 10 से 12 मरीजों को बिना वेंटिलेटर के लौटाया जा रहा है। लोहिया संस्थान में लगभग 130 वेंटिलेटर हैं। इमरजेंसी में 35 वेंटिलेटर हैं। मेडिसिन विभाग में 20, न्यूरोलॉजी में 6, पीडियाट्रिक व एनस्थीसिया विभाग के आईसीयू में 15-15 वेंटिलेटर का संचालन हो रहा है। इसके अलावा अन्य विभागों में वेंटिलेटर का संचालन हो रहा है।

बलरामपुर अस्पताल में 40 वेंटिलेटर हैं। डॉक्टरों का कहना है कि सभी वेंटिलेटर पर मरीज भर्ती किए जा रहे हैं। लोकबंधु अस्पताल में 40 वेंटिलेटर हैं, जिनमें 10 वेंटिलेटर का संचालन हो पा रहा है। बाकी 30 वेंटिलेटर बंद पड़े हैं। महानगर स्थित भाऊराव देवरस अस्पताल में तीन और ठाकुरगंज संयुक्त अस्पताल में दो वेंटिलेटर बंद हैं। बीकेटी स्थित राम सागर मिश्र हॉस्पिटल में पांच वेंटिलेटर हैं। ये भी डॉक्टर-कर्मचारियों के अभाव में बंद हैं। सीएमएस डॉ. वीके शर्मा का कहना है जल्द वेंटिलेटर शुरू कराए जाएंगे।

निजी अस्पतालों से रेफर होकर आने वाले मरीजों की संख्या अधिक

ट्रॉमा सेंटर के क्रिटिकल केयर यूनिट के प्रभारी डॉ. अविनाश अग्रवाल ने बताया कि वेंटिलेटर के लिए आने वाले मरीजों की संख्या कारपोरेट अस्पतालों से रेफर होकर आने वालों की ज्यादा है। शुरुआत में परिजन मरीज को इन अस्पतालों में भर्ती करा देते हैं। रुपये खत्म होने पर ट्रॉमा लेकर आते हैं। एक मरीज को वेंटिलेटर सपोर्ट की जरूरत औसतन 7 से 8 दिन की पड़ती है। हलांकि, राहत की बात यह है कि 75 फीसदी मरीज वेंटिलेटर सपोर्ट से ठीक हो रहें हैं।

इस व्यवस्था से मिलेगी राहत

ट्रॉमा प्रभारी डॉ. प्रेमराज सिंह ने बताया कि उनकी ओर से शासन को एक प्रस्ताव भेजा गया है कि सभी प्रमुख अस्पतालों में वेंटिलेटर बेडों की जानकारी ऑनलाइन रहे। साथ ही सभी जगह के प्रभारियों को सीयूजी नंबर जारी किया जाए। जिससे मरीज को रेफर करने से पहले यह सुनिश्चित कर लिया जाए कि किस अस्पताल में वेंटिलेटर खाली है। इससे मरीजों को भटकना नहीं पड़ेगा।


ट्रॉमा सेंटर के क्रिटिकल केयर मेडिसिन में 34 वेंटिलेटर बेड हैं। इनमें से 2 बेड अंगदान के मरीजों के लिए आरक्षित रहते हैं। कोशिश रहती है कि सभी मरीजों को बेड उपलब्ध हों। औसतन रोजाना 10 से 12 मरीजों को बेड खाली न होने की स्थिति में लौटाना पड़ता है।

- डॉ. अविनाश अग्रवाल, प्रभारी क्रिटिकल केयर यूनिट, ट्रॉमा सेंटर

ट्रॉमा में कुल वेंटिलेटर बेड 74 संचालित हो रहे हैं। कोशिश रहती है कि कोई भी मरीज वापस न लौटे। बेड खाली न होने की स्थिति में एम्बुबैग के सहारे इलाज शुरू किया जाता है। वेंटिलेटर बेड खाली होने पर मरीज को शिफ्ट कर दिया जाता है।

-डॉ. प्रेमराज सिंह, प्रभारी ट्रॉमा सेंटर

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