सोशल मीडिया किशोरों की मासूमियत कर रहा नष्ट : HC की कड़ी टिप्पणी कहा, सरकार भी नियंत्रण में असमर्थ

Amrit Vichar Network
Published By Vinay Shukla
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प्रयागराज, अमृत विचार : इलाहाबाद हाईकोर्ट ने किशोर मन पर टेलीविजन, इंटरनेट और सोशल मीडिया के पड़ रहे ‘विनाशकारी प्रभाव’ पर गहरी चिंता जताते हुए कहा कि ये माध्यम बहुत कम उम्र में ही उनकी मासूमियत को खत्म कर रहे हैं। सरकार भी इन माध्यमों की अनियंत्रित प्रकृति के कारण इन्हें नियंत्रित करने में असमर्थ प्रतीत हो रही है।

कोर्ट ने यह टिप्पणी एक 16 वर्षीय किशोर द्वारा दाखिल आपराधिक पुनरीक्षण याचिका को स्वीकार करते हुए की, जिसमें किशोर पर जघन्य अपराध के मामले में वयस्क के समान मुकदमा चलाने के किशोर न्याय बोर्ड के साथ-साथ कौशांबी स्थित पोक्सो न्यायालय के आदेश को चुनौती दी गई थी। उक्त मामले में मनोवैज्ञानिक मूल्यांकन को निर्णायक मानते हुए न्यायमूर्ति सिद्धार्थ की एकलपीठ ने पाया गया कि "बीकेटी आईक्यू टेस्ट" के अनुसार 62 अंक वाला याची ‘सीमांत बौद्धिक कार्यशीलता’ की श्रेणी में आता है, जो निम्न/औसत श्रेणी से भी नीचे है।

मनोवैज्ञानिक टेस्ट रिपोर्ट में उसकी मानसिक आयु मात्र 6 वर्ष आँकी गई, साथ ही सामाजिक व्यवहार में कठिनाइयाँ, खराब शैक्षणिक प्रदर्शन और सीमित संपर्क का उल्लेख भी किया गया। रिपोर्ट याची के पक्ष में है। अतः केवल एक जघन्य अपराध के आधार पर उसे वयस्क के समकक्ष नहीं रखा जा सकता है, जब तक कि उसकी मानसिक और सामाजिक परिस्थितियों का उचित मूल्यांकन न किया जाए। अंत में कोर्ट ने माना कि निर्भया मामला अपवाद था, सामान्य नियम नहीं। प्रत्येक किशोर को वयस्क मानकर मुकदमा नहीं चलाया जा सकता। केवल अपराध की प्रकृति नहीं, बल्कि अपराधी की मानसिक, बौद्धिक और सामाजिक स्थिति का सम्यक परीक्षण भी आवश्यक है। उपरोक्त तथ्यों और विधिक विसंगतियों को देखते हुए कोर्ट ने निचली अदालतों के आदेशों को रद्द कर दिया और याची के खिलाफ एक बाल आरोपी के रूप में ही कार्यवाही करने का निर्देश दिया।

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