अस्पतालों की लापरवाही से जा रही मरीजों की जान, स्वास्थ्य विभाग खेल रहा नोटिस का खेल 

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Published By Virendra Pandey
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 निजी अस्पतालों की मनमानी के आगे स्वास्थ्य विभाग खामोस

लखनऊ, अमृत विचार । राजधानी में हाल ही में घटे तीन मामलों के उदाहण सिर्फ बानगी भर के लिए दिए जा रहे हैं। निजी अस्पतालों में हो रही इलाज में लापरवाही से आए दिन ऐसी घटनाएं सामने आने के बावजूद स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई सिर्फ नोटिस तक ही सिमित है। कई अस्पताल ऐसे भी हैं जो स्वास्थ्य विभाग की जांच में भी फर्जी पाए गए। फिर भी जिम्मेदार मूकदर्शक हैं। इसका फायदा उठाकर निजी अस्पताल बेहतर इलाज के नाम पर जमकर लूट कर रहे हैं।

यह हैं मामले

केस-1 : गुडंबा थाना क्षेत्र के आदिल नगर स्थित जनता मेडिकल सेंटर में गत 3 अगस्त को सिजेरियन प्रसव के बाद विकासनगर निवासी सुषमा देवी (28) की मौत हो गई। पति आनंद गौतम ने लापरवाही का आरोप लगाया था। स्वास्थ्य विभाग के अपर निदेशक (एडी मंडल) डॉ. जीपी गुप्ता ने जांच शुरू की। जांच में अस्पताल एक घर में चलते हुए मिला। अस्पताल का पंजीकरण तक नहीं था। निरीक्षण के दौरान कोई प्रशिक्षत डॉक्टर तक मौजूद नहीं मिला। कार्रवाई के बजाय स्वास्थ्य विभाग नोटिस का खेल खेल रहा है।

केस-2 : ठाकुरगंज के दूध मंडी स्थित जंगली पीर बाबा की मजार के पास रहने वाली सोमैया का बेटा जियान (3) को परिजनों ने बुखार व शरीर में दर्द होने की ​शिकायत पर बीते दिनों ऑक्सीजन हॉ​स्पिटल में भर्ती कराया था। डॉक्टर ने 50 हजार रुपये का इंजेक्शन लगने की बात कही थी। बच्चे की मां सोमैया ने जेवर गिरवी रखकर रुपये का इंतजाम किया था। इंजेक्शन लगने के बाद बच्चे की मौत हो गई। परिजनों ने लापरवाही का आरोप लगाया। घटना की जांच एडी मंडल कर रहें हैं। एक माह बीतने वाला है। स्वास्थ्य विभाग की कार्रवाई सिर्फ नोटिस देने तक ही सिमित है।

केस 3- राजाबाजार के रहने वाले अजीम की पत्नी निदा (32) को प्रसव पीड़ा होने पर चार जुलाई की रात चौपटिया के हयात नर्सिंग होम में भर्ती कराया गया था। आरोप है कि बिना जांच किए ही चिकित्सकों ने ऑपरेशन कर प्रसव करा दिया। महिला ने जुड़वा बच्चियों को जन्म दिया है। ऑपरेशन के कुछ देर बाद ही महिला की हालत बिगड़ने लगी। अगले दिन उसे चरक अस्पताल रेफर कर दिया गया। जहां उसे वेंटिलेटर पर रखकर इलाज किया गया। महिला की इलाज के दौरान मौत हो गई थी। इस मामले की जांच भी स्वास्थ्य विभाग के जरिये की जा रही है। कार्रवाई के नाम पर सिर्फ नोटिस ही थमाई जा सकी है।

स्वास्थ्य विभाग ने 100 अस्पतालों को किया था चिन्हित 

राजधानी में करीब एक हजार निजी अस्पताल पंजीकृत हैं। जबकि पांच हजार से अधिक बिना पंजीकरण के संचालित हो रहे हैं। बीते साल इस मामले की लगातार शिकायते होने पर स्वास्थ्य विभाग की ओर से ऐसे अस्पतालों के विरुद्ध अभियान चलाया गया। टीम ने ठाकुरगंज, काकोरी, पारा, मलिहाबाद, माल, बीकेटी, इटौंजा और आईआईएम रोड सहित कई क्षेत्रों में छापेमारी की। अस्पतालों में खामियों की भरमार सामने आई। टीम की छापेमारी में कहीं डॉक्टर नहीं मिले, तो कहीं आग से बचाव के पर्याप्त इंतजाम नहीं थे। इसके अलावा कई जगह छात्रों द्वारा इलाज किया जा रहा था। यहां तक बिना विशेषज्ञ के आईसीयू और एनआईसीयू संचालित होते मिले। स्वास्थ्य विभाग ने ऐसे अस्पतालों के संचालन बंद कराने के बजाय नोटिस का खेल खेला। सभी अस्पतालों को नोटिस जारी कर 24 घंटे में जवाब मांगा गया। ऐसे करीब 100 से अधिक अस्पताल चिन्हित किए गए। लेकिन इक्का-दुक्का अस्पताल संचालकों ने ही नोटिस का जवाब दिया है। ज्यादातर अस्पताल संचालक सांठगांठ कर मामले को रफादफा करवा लिया। इसके बाद स्वास्थ्य विभाग भी अभियान को ठंडे बस्ते में डाल कर शांत बैठ गया। 

अपर निदेशक स्वास्थ्य विभाग डॉ. जीपी गुप्ता ने बताया कि जनता मेडिकल सेंटर में महिला का सिजेरियन प्रसव कराने वाली महिला डॉक्टर ने बयान दर्ज करा दिया है। बेहोशी का डॉक्टर अभी नहीं आया है। उसे रिमांडर भेजा गया है। साथ ही अस्पताल में भर्ती कराने वाला दलाल भी बयान के लिए नहीं आया है। अस्पताल संचालक ने पंजीकरण के लिए नवीनीकरण के लिए आवेदन कर रखा है। इसके आलावा ऑक्सीजन और हयात अस्पताल को भी रिमाइंडर नोटिस जारी की गई है। अभी तीनों अस्पतालों की जांच चल रही है। लापरवाही की पुष्टि होने पर कार्रवाई होगी। 

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