चल सको तो चलो, गांव बुलाते हैं... सेवानिवृत IAS रमेशचंद्र पाठक ने खेत-खलिहान को समर्पित किया जीवन

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Published By Muskan Dixit
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पिछले दिनों मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी के खेत में पटेला लगाने की तस्वीरें वायरल हुई थीं। इसके साथ ही, गढ़वाल के एक कर्नल की खेती-बाड़ी की चर्चा भी खूब हो रही है। कुछ इन्हीं की तरह हैं, उत्तराखंड के कुमाऊं अंचल के सेवानिवृत आईएएस अधिकारी रमेशचंद्र पाठक, वह पिछले 12 वर्षों से चुपचाप पैतृक गांव मल्ला डौणू, तहसील बेरीनाग, जिला पिथौरागढ़ की मिट्टी से रिश्ता निभा रहे हैं।

- आईएएस अधिकारी के रूप में बड़े पदों पर रहने के बाद अन्य अधिकारियों के तरह महानगरों के बजाय गांव लौटने और खेती करने के पीछे की वजह?

- एक सामान्य किसान परिवार में मेरा जन्म हुआ। पिता ईश्वरी दत्त पाठक और मां खष्टी देवी खेती ही करते थे। मैं हमेशा जमीन से जुड़़ा रहा। सेवाकाल में भी बराबर गांव आता-जाता रहा इसलिए अपनी मिट्टी से प्रेम बना रहा। 

- अपनी शिक्षा के बारे में बताएं?

- बचपन में छानी यानी झोपड़ी में पढ़ाई की। 13 वर्ष में हाईस्कूल की परीक्षा पास कर ली थी। इंटर तक की पढ़ाई स्कॉलरशिप और 'पुअर ब्वॉयज फंड' से हुई। आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी, इसलिए आगे की पढ़ाई के लिए पिता ने जमीन गिरवी रख दी। दो विषयों से एमए करने के साथ एलएलबी किया।

- पिथौरागढ़ के दुर्गम गांव में रहने के बावजूद आईएएस बनने का विचार कैसे आया?

- 1974 में बागेश्वर में बैंक से वेतन निकालते समय एक अखबार में यूपीपीसीएस का विज्ञापन देखा। बिना ज्यादा जानकारी के फॉर्म भर दिया। लेकिन तब यह भी पता नहीं था कि डिप्टी कलेक्टर क्या होता है। बिना किसी तैयारी के पहले प्रयास में ही प्री और रिटर्न निकाल लिया। लेकिन परीक्षा में पूर्ण रूप से सफलता नहीं मिली। इसके बाद परीक्षा को गंभीरता से लिया। पढ़ाने के साथ खुद पढ़ना शुरू किया। 1977 में डिप्टी कलेक्टर पद पर चयन हो गया। 

- आप किन-किन महत्वपूर्ण पदों पर रहे?

- उत्तराखंड बनने के बाद राज्य के पहले लेबर कमिश्नर के रूप में काम करने के साथ ही, गन्ना आयुक्त, डीएम चंपावत, समाज कल्याण निदेशक, सचिव, परिवहन आयुक्त जैसे पदों पर कार्य किया। 
- अभी किस उपज की खेती की है।
- अभी खेतों में धान, उड़द, भट्ट की बुआई की है। गुड़ाई भी खुद ही करते हैं। खेती में लागत अधिक है, फिर भी इसे अपनाया है।  
- प्रशासनिक अनुभव गांव में कुछ काम आया। 
-  सेवानिवृत्ति के बाद अपनी प्रशासनिक क्षमता व अनुभव के जरिए गांव में सड़क, बिजली, पानी और स्वास्थ्य जैसी मूलभूत सुविधाओं के लिए प्रयास किए। आज गांव में शहर जैसी कई सुविधाएं उपलब्ध हैं।

- पहाड़ के गांवों से पलायन क्यों हो रहा है?

-  पलायन रोकने का सबसे सशक्त उपाय है, महिलाओं और बेटियों को खेती-बाड़ी से जोड़ना और गांव के प्रति गर्व की भावना पैदा करना। अगर एक पूर्व आईएएस अधिकारी गांव में रहकर अपने खेत में काम कर सकता है, तो बाकी क्यों नहीं? पलायन तब तक नहीं रुकेगा, जब तक हम युवाओं और महिलाओं को गांव से जोड़ने के ठोस प्रयास नहीं करेंगे। मेरे जैसे न जाने कितने लोगों ने गांव में पढ़ाई कर उच्च पद हासिल किए और आज भी कर रहे हैं। इसलिए बच्चों की पढ़ाई के नाम पर पलायन सिर्फ आरामतलब जिंदगी जीने का एक बहाना है।
-     आज के युवाओं के लिए क्या संदेश देना चाहेंगे। 
-  यही कि समय सबसे बड़ा धन है, इसे गंवाए नहीं। मेहनत, सादगी और आत्मसंस्कार ही जीवन को सार्थक बनाते हैं। अपना आहार, विहार, विचार व संस्कार अच्छा रखें जीवन आनंदमय रहेगा। 

प्रस्तुति :हरीश उप्रेती करन, 
हल्द्वानी

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