महाभारत काल की वैभव गाथा है अहिच्छत्र

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Published By Anjali Singh
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अहिच्छत्र, भारतीय संस्कृति और कलात्मकता का अद्भुत उदाहरण है, जो अपने धार्मिक, सांस्कृतिक और ऐतिहासिक महत्व के लिए जाना जाता है। यह शहर पुरातात्विक दृष्टि से महत्वपूर्ण होने के साथ ही भारत की प्राचीन संस्कृति, शिक्षा, शासन और कलात्मकता का भी ध्वज वाहक है। अहिच्छत्र का नाम ‘अहि’ (सर्प) और ‘छत्र’ (छाया) से मिलकर बना है। किंवदंती है कि इस स्थान पर तप कर रहे एक ऋ षि को एक सांप ने आकर छाया दी थी। इससे अहिच्छत्र नाम मिला। 

पुराणों और प्राचीन ग्रंथों में वर्णित अहिच्छत्र, कभी उत्तरी पांचाल की राजधानी था। यह वही पांचाल है, जिसकी राजकुमारी द्रौपदी का विवाह पांडवों से हुआ था। यहां खुदाई में विभिन्न कालों की सभ्यताओं के अवशेष मिले हैं, जिनमें मौर्य, शुंग, कुषाण, गुप्त और मुगल काल प्रमुख हैं। यहां मिले बर्तन, सिक्के, मूर्तियां, हथियार और दीवारों के अवशेष इस बात के प्रमाण हैं कि यह क्षेत्र कभी अत्यंत समृद्ध और उन्नत था।

पांच हजार वर्ष पुरानी सभ्यता 

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रुहेलखंड विश्वविद्यालय में इतिहास के प्रोफेसर विजय बहादुर यादव बताते हैं कि भारतीय पुरातत्व सर्वेक्षण विभाग द्वारा की गई खुदाई में अहिच्छत्र में लगभग 5 हजार वर्ष पुरानी सभ्यता के प्रमाण मिले हैं। यहां मिली ईंटों की संरचना, दीवारें और मूर्तियां बताती हैं कि कभी यहां सुनियोजित नगर व्यवस्था थी। मिट्टी के बर्तन, तांबे के औजार और शिलालेख सिद्ध करते हैं कि अहिच्छत्र शिक्षा, व्यापार, कला और संस्कृति का बड़ा केंद्र था। 

बौद्ध शिक्षा का था महत्वपूर्ण केंद्र 

बुद्धकाल में अहिच्छत्र बौद्ध शिक्षा का महत्वपूर्ण केंद्र था। यहां प्राप्त बौद्ध मूर्तियां और विहारों के अवशेष संकेत देते हैं कि यह क्षेत्र बुद्ध धर्म के अनुयायियों के लिए प्रमुख स्थल रहा होगा। पुरातात्विक महत्व के कारण ही यह क्षेत्र पर्यटकों और शोधकर्ताओं के लिए आकर्षण का केंद्र है। बरेली की पहचान भले ही सुरमा, बांस और झुमकों के लिए होती हो, लेकिन यहां की समृद्ध संस्कृति अहिच्छत्र के ही इतिहास का एक पन्ना है। 

उत्तरी एवं संयुक्त पांचाल की राजधानी

उत्तराखंड के नैनीताल जिले का दक्षिणी भाग, उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद, रामपुर, पीलीभीत, बरेली, बदायूं तथा शाहजहांपुर का पूर्वी भाग तथा गंगा पार के इटावा, मैनपुरी, फर्रुखाबाद एवं एटा का दक्षिण भाग प्राचीन काल में एक राज्य था, जो पांचाल नाम से विख्यात था। इसी की राजधानी अहिच्छत्र थी। प्राचीन ब्राह्मण ग्रंथों, जैन एवं बौद्ध जातकों में अहिच्छत्र एवं पांचाल के तमाम प्रसंगों का उल्लेख है।

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द्रौपदी का जन्म यहीं हुआ था

महाभारतकाल में द्रुपद उत्तर पांचाल (अहिच्छत्र) एवं दक्षिण पांचाल (काम्पिल्य) दोनों के राजा थे। उनकी पुत्री द्रौपदी जो पांचाली कहलाईं, का जन्म अहिच्छत्र में हुआ था और विवाह काम्पिल्य में हुआ। महाभारत के अनुसार गुरु द्रोणाचार्य ने राजा द्रुपद को परास्त किया और आधे अहिच्छत्र के शासक बने। हालांकि उनका राज्य कौरव ही चलाते थे। द्रोणाचार्य तो हस्तिनापुर में ही रहे। कौरव-पांडवों का यहां अधिकार होने के कारण अहिच्छत्र का किला पांडवकालीन किला कहलाया। 

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जैन अनुयायियों का तीर्थ

जैन अनुश्रुतियों के अनुसार मान्यता है कि 23 वें जैन तीर्थंकर पार्श्वनाथ को अहिच्छत्र में कैवल्य ज्ञान की प्राप्ति हुई। यहां जैन अनुयायियों का भी बड़ा तीर्थ है। 

अहिच्छत्र की तमाम धरोहरें पांचाल संग्रहालय में संरक्षित  

रुहेलखंड विश्वविद्यालय में एक छोटे से हाल में 1985 में पांचाल संग्रहालय की नींव रखी गई थी। इस संग्रहालय में अहिच्छत्र की तमाम धरोहरें संरक्षित हैं। प्राचीन इतिहास एवं संस्कृति विभाग के तहत संचालित डिजिटल पांचाल संग्रहालय का लोकार्पण 15 मई 2023 को राज्यपाल आनंदीबेन पटेल ने किया। इस संग्रहालय में तीन हजार साल पुरानी ऐतिहासिक मूर्तियां, पांडुलिपि, मिट्टी व धातु के बर्तन, कपड़े, शस्त्र, मुद्रा प्रयोगशाला आदि दुर्लभ सामग्री सुरक्षित हैं। खुदाई के दौरान मिला तीन हजार साल पुराना नर कंकाल खास है। इसके अलावा वस्त्र वीथिका, अभयपुर का प्राचीन स्थल, मृण्मूर्ति वीथिका, टेराकोटा गैलरी, फोटो गैलरी तथा साउंड एंड डिजिटल ऑडोटोरियम मौजूद है।-शिवांग पांडेय