बाराबंकी : वारिस पाक की दरगाह मोहब्बत और इंसानियत की मिसाल, देश-विदेश से उमड़े अकीदतमंद
दीपराज सिंह/देवा/बाराबंकी, अमृत विचार। हर वर्ष की तरह इस बार भी देवा की पावन धरती पर सूफी संत हाजी वारिस अली शाह की दरगाह पर भक्ति और आस्था का सैलाब उमड़ पड़ा है। बाबा वारिस पाक की दरगाह पर दूर-दराज़ से आए जायरीन अपनी मुरादें लेकर सर झुकाते हैं, और यही अटूट विश्वास उन्हें यहां खींच लाता है कि बाबा के दर से कोई खाली नहीं लौटता।
हजरत सैय्यद कुर्बान अली शाह उर्फ दादा मियां की याद में शुरू हुए दस दिवसीय देवा मेले में देश ही नहीं, विदेशों से भी जायरीन पहुंचे हैं। कोई कोलकाता से आया है, कोई गुजरात, असम या बंगाल से। सभी की जुबां पर एक ही दुआ है या वारिस, रहमत बरसा दो।
हजरत हाजी वारिस अली शाह का संदेश आज भी उतना ही प्रभावशाली है जितना उनके समय में था। प्यार, भाईचारा और इंसानियत ही सबसे बड़ी इबादत है। यही वजह है कि देवा शरीफ की दरगाह सिर्फ इबादतगाह नहीं, बल्कि राष्ट्रीय एकता और सौहार्द का प्रतीक बन चुकी है। बलरामपुर के सत्यप्रकाश कहते हैं कि बाबा की नगरी में जो सुकून मिलता है, वह कहीं और नहीं। लगता है जैसे पूरी दुनिया की नेमतें यहीं उतर आई हों।
वहीं कानपुर के फिरोज आलम कहते हैं, "जब भी दिल भारी होता है, बाबा के दर पर आकर राहत मिलती है। दरगाह की फिजा में आज भी वारिस पिया का पैग़ाम गूंजता है प्यार बांटो, नफरत मिटाओ। यही है इंसानियत का असली रास्ता। धर्म और जात-पात की दीवारों को गिराकर इंसानियत की खुशबू बिखेरने वाली यह दरगाह आज भी उस अमर सूफी संदेश को जीवित रखे हुए है। जहां वारिस का नाम लिया जाता है, वहां रहमत बरसना तय है।
