ज़किया

अमानत में ख़यानत हो रही है…

अमानत में ख़यानत हो रही है सलीक़े से तिजारत हो रही है नहीं महफ़ूज़ कोई अपने घर में मगर घर की हिफ़ाज़त हो रही है सभी के ख़्वाब की ता’बीर ग़म है तो फिर किस को बशारत हो रही है हमीं ने ख़ून से सींचा वतन को हमीं से फिर शिकायत हो रही है खड़े …
साहित्य