बढ़ते आंकड़े चिंताजनक
भाग-दौड़ भरी जिंदगी में तनाव के साथ अवसाद हावी है। समाज का लगभग हर वर्ग इससे प्रभावित है। इसका असर देश में आत्महत्या के मामलों की लगातार बढ़ती संख्या के तौर पर दिखाई दे रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 के दौरान देश में आत्महत्या के मामले …
भाग-दौड़ भरी जिंदगी में तनाव के साथ अवसाद हावी है। समाज का लगभग हर वर्ग इससे प्रभावित है। इसका असर देश में आत्महत्या के मामलों की लगातार बढ़ती संख्या के तौर पर दिखाई दे रहा है। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) की ताजा रिपोर्ट के मुताबिक, साल 2021 के दौरान देश में आत्महत्या के मामले साल 2020 के मुकाबले करीब 7.2 फीसदी ज्यादा दर्ज किए गए।
रिपोर्ट के अनुसार, पेशे या करियर से संबंधित समस्याएं, अलगाव की भावना, दुर्व्यवहार, हिंसा, पारिवारिक समस्याएं, मानसिक विकार, शराब की लत और वित्तीय नुकसान देश में आत्महत्या की घटनाओं के मुख्य कारण हैं। रिपोर्ट में कहा गया है कि भारत में 2020 में आत्महत्या के कुल 1,53,052 मामले दर्ज किए गए थे जबकि 2021 में सात प्रतिशत अधिक कुल 1,64,033 मामले दर्ज किए गए।
इनमें सबसे ज्यादा मामले महाराष्ट्र (22,207) में सामने आए, जो देश के कुल मामलों का 13.5 फीसदी हिस्सा है। इसके बाद तमिलनाडु (18,925) में 11.5 फीसदी, मध्य प्रदेश (14,965) में 9.1 फीसदी, पश्चिम बंगाल (13,500) में 8.2 फीसदी और कर्नाटक (13,056) में आठ फीसदी मामले दर्ज हुए हैं। देश की सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य होने के बावजूद उत्तर प्रदेश में आत्महत्या के मामले बेहद कम रहे हैं। रिपोर्ट के मुताबिक, यूपी में देश की कुल आत्महत्याओं का महज 3.6 फीसदी हिस्सा दर्ज हुआ था।
साल 2021 के आंकड़ों को देखा जाय तो चिंताजनक बात यह है कि कुल आत्महत्या में 25.6 फीसदी आत्महत्याएं दिहाड़ी मजदूरों ने की है। उसके बाद 14.1 फीसदी गृहणियों ने आत्महत्याएं की हैं। इसके बाद वेतन भोगी लोगों ने आत्महत्या की हैं। साफ है कि दिहाड़ी मजदूर और वेतनभोगी की आत्महत्या में एक बड़ी वजह आर्थिक संकट हो सकता है। वर्ष 2021 में कृषि क्षेत्र से जुड़े 10,881 लोगों ने आत्महत्या की है। जबकि साल 2020 में 10,667 लोगों ने आत्महत्या की थी।
इन आंकड़ों में चिंता की बात यह है कि किसानों की आत्महत्या भले ही थोड़ी कम हुई हो लेकिन कृषि श्रमिकों की हत्या के मामलों में बढ़ोतरी हुई है। यानी अब किसान ही नहीं, कृषि क्षेत्र से जुड़े श्रमिकों में भी आत्महत्या के मामले बढ़ रहे हैं। व्यक्ति में हताशा की शुरुआत तनाव से होती है, जो उसे आत्महत्या तक ले जाती है।
आत्महत्या की बढ़ती प्रवृत्ति एक तरह से सामाजिक दुर्घटना है। मनोचिकित्सकों के अनुसार डिप्रेशन से पीड़ित लोगों की काउंसलिंग और मानसिक चिकित्सा देकर उन्हें स्वस्थ बनाया जा सकता है। सफलता और असफलता को सहज ढंग से लेने का माहौल परिवार व समाज मिलकर बना सकते हैं। जिन राज्यों में आत्महत्या के सबसे अधिक मामले हैं उस पर केंद्र और राज्य सरकार को गंभीरता से विचार करना चाहिए।
