लखनऊ : इसलिए कहा गया नीलकंठ
अमृत विचार, लखनऊ। महाशिवरात्रि के अवसर पर रामकृष्ण मठ के अध्यक्ष स्वामी मुक्तिनाथानन्द ने मठ में दिए अपने प्रवचन में कहा कि शिव नीलकंठ होने के कारण महादेव के रूप में पूजे जाते हैं। उन्होंने कहा कि शिवपुराण की रूद्र संहिता में यह मिलता है कि समुद्र मंथन से निकले कालकूट नाम के विष को पीने से उनका कंठ नीला पड़ गया था। इसी वजह से उन्हें नीलकंठ कहा गया।
उन्होंने कहा कि विष को पीकर ही महादेव ने सृष्टि की रचना की। क्षीरसागर में देवता और दैत्यों ने मिलकर मंदराचल पर्वत को मथने के लिए सर्प की रस्सी बनाई। समुद्र का मंथन किया गया तो उसमें चौदह तरह के रत्न निकले। सबसे पहले विष निकला जिसके प्रभाव से सबको बचाने के लिए महादेव ने उसे अपने कंठ में धारण कर लिया। अंत में अमृत निकला तो उसे पाने के लिए देव और दैत्यों में झगड़ा हुआ। जबकि विष को न देव ग्रहण करना चाहते थे न दैत्य।
यह विष इतना खतरनाक था कि इससे सम्पूर्ण ब्रह्मांड का नाश हो सकता था। सृष्टि को प्रलय से बचाने के लिए शिव ने वह विष पी लिया। मौके पर मौजूद पार्वती ने उनका गला पकड़ लिया। इससे न तो वह विष बाहर निकला और न भीतर गया। विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया और वह नीलकंठ कहलाये।
स्वामी मुक्तिनाथानन्द ने कहा कि जो भी इस धरा पर आया है उसे जाना भी है लेकिन महाकाल की भक्ति करने वाले को मृत्यु का भय नहीं रहता है। ब्रह्मांड को कष्ट से बचाने के लिए विष पी लेने वाले शिव जिससे प्रसन्न होते हैं उसके सारे कष्ट हर लेते हैं। इसी वजह से वह देवों में देव हैं। उन्हें सर्वश्रेष्ठ देवता माना गया है।
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