प्रयागराज : धर्म परिवर्तन के संबंध में अवयस्क की सहमति प्रासंगिक नहीं 

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Published By Virendra Pandey
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प्रयागराज, अमृत विचार। इलाहाबाद हाईकोर्ट ने धर्म परिवर्तन और नाबालिग के साथ शारीरिक संबंध बनाने के मामले में टिप्पणी करते हुए कहा कि कानून का यह सामान्य सिद्धांत है कि 18 वर्ष से कम आयु का व्यक्ति अपने धर्म परिवर्तन के संबंध में सहमति नहीं दे सकता है और आईपीसी की धारा 375 के अनुसार 18 वर्ष से कम आयु की महिला की सहमति के साथ या उसकी सहमति के बिना शारीरिक संबंध बनाना वैध नहीं माना जाएगा। इसे दुष्कर्म की श्रेणी में रखा जाएगा। इसके अलावा अगर किसी नाबालिग को उसकी इच्छा के विरुद्ध कानूनी संरक्षकता से दूर ले जाया जाता है तो यह अपहरण ही कहलाएगा। उक्त टिप्पणी न्यायमूर्ति उमेश चंद्र शर्मा ने आरोपी सौरभ की याचिका को खारिज करते हुए दी।

गौरतलब है कि प्राथमिकी के तथ्यों के अनुसार शिकायतकर्ता की पुत्री नरगिस (17 वर्षीय) नीलगाय से गेहूं की फसल को सुरक्षित करने के लिए घर से खेत में गई थी। कुछ देर बाद शिकायतकर्ता की पत्नी सबनाम व भतीजा लियाकत भी वहां पहुंचे तो उन्होंने देखा कि पड़ोसी देवीलाल का पुत्र सौरभ उनकी नाबालिग बेटी को लेकर जा रहा है। उन्होंने घर लौट कर शिकायतकर्ता को सूचित किया। उसके बाद उन्होंने बेटी को बहुत ढूंढा, लेकिन वह नहीं मिली। तब उन्होंने थाना अरनियां, बुलंदशहर में 12 मार्च 2022 को आईपीसी की विभिन्न धाराओं और पोक्सो एक्ट की धारा 3/4 के तहत प्राथमिकी दर्ज कराई। याची के अधिवक्ता ने कोर्ट को बताया कि जांच अधिकारी ने उचित जांच के बिना आरोप पत्र दाखिल कर दिया है।

वास्तव में याची और शिकायतकर्ता की बेटी एक-दूसरे से प्रेम करते थे और 15 मार्च 2022 को आर्य समाज मंदिर, नैनी, प्रयागराज में दोनों ने विवाह कर लिया। विवाह प्रमाण पत्र की प्रति अनुलग्नक संख्या के रूप में संलग्न की गई। पीड़िता धर्म से मुस्लिम थी, इसलिए शादी से पहले उसने खुद को हिंदू के रूप में परिवर्तित किया और अपना नाम बदलकर नरगिस से सोनी आर्य कर लिया। इसके अलावा पीड़िता ने कोर्ट को यह भी बताया कि उसके पिता ने उसकी वास्तविक जन्मतिथि बदल दी थी। उसके बाद याची के खिलाफ आपराधिक कार्यवाही को रद्द करने की मांग लेकर बंदी प्रत्यक्षीकरण याचिका हाईकोर्ट में दाखिल की गई। याची के अधिवक्ता ने तर्क दिया कि याची पर लगाए गए आरोप निराधार और मनगढ़ंत हैं। उसका कोई आपराधिक इतिहास नहीं है। उसके खिलाफ चल रही आपराधिक कार्यवाही और संज्ञान आदेश को रद्द करना चाहिए। कार्यवाही रद्द करने की मांग के खिलाफ शिकायतकर्ता ने कोर्ट के समक्ष तथ्य रखते हुए कहा कि घटना के समय उसकी पुत्री की उम्र 17 वर्ष 7 माह 27 दिन थी। 

अतः आर्य समाज, कृष्णा नगर, प्रयागराज द्वारा जारी विवाह प्रमाण पत्र कोई प्रासंगिकता नहीं रखता है। पीड़िता ने दबाव में आकर धर्म परिवर्तन किया और सीआरपीसी की धारा 164 के तहत मजिस्ट्रेट के सामने गलत बयान दिया। अंत में कोर्ट ने जांच अधिकारी द्वारा प्रस्तुत रिपोर्ट पर संज्ञान लेते हुए यह निष्कर्ष निकाला कि अपराध के समय पीड़िता एक अवयस्क लड़की थी और उसकी जन्मतिथि 14 जुलाई 2004 थी। अतः घटना के समय उसकी उम्र 17 वर्ष ही निश्चित होती है। इसके अलावा उसने याची के साथ अपनी मर्जी से विवाह नहीं किया। वास्तव में उसने याची के साथ जाने से इंकार कर दिया था। अतः आईपीसी की विभिन्न धाराओं और पोक्सो एक्ट के तहत दर्ज मामले में आरोपी सौरभ की याचिका खारिज की जाती है।

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