अनुभव और जमीनी स्तर पर व्यापक समर्थन...ऐसे मिला सिद्धारमैया को 'CM पद', जानें राजनीतिक सफर

Amrit Vichar Network
Published By Vikas Babu
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नई दिल्ली। कांग्रेस नेता सिद्धारमैया को सरकार चलाने के अपने लंबे अनुभव और पूरे राज्य में जमीनी स्तर पर हासिल व्यापक जन समर्थन के कारण कर्नाटक के मुख्यमंत्री पद के कड़े मुकाबले में सफलता मिली। कांग्रेस नेतृत्व ने 2024 के लोकसभा चुनावों को ध्यान में रखते हुए मुख्यमंत्री पद के लिए 75 वर्षीय सिद्धारमैया के नाम पर मुहर लगाई है क्योंकि कर्नाटक में अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी), अनुसूचित जाति (एससी) और मुस्लिमों के बीच उनकी लोकप्रियता अगले आम चुनाव में हार-जीत का फासला तय करने में अहम भूमिका निभा सकती है। 

सिद्दरमैया ने इससे पहले वर्ष 2013 से 2018 के बीच कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में सेवाएं दी थीं। उनके पास न सिर्फ सरकार चलाने, बल्कि जाति एवं वर्ग के वर्चस्व वाले कर्नाटक में अलग-अलग समुदायों के हितों के बीच तालमेल बैठाने का भी लंबा तजुर्बा है। एक वरिष्ठ नेता ने कहा कि सिद्धारमैया कर्नाटक के सबसे कद्दावर नेताओं में से एक हैं और पार्टी मुख्यमंत्री का चयन करते समय उनकी लोकप्रियता व वोट जुटाने की क्षमता को नजरअंदाज नहीं कर सकती थी, क्योंकि वह अगले लोकसभा चुनावों में ज्यादा से ज्यादा सीटें जीतना चाहती है। 

सिद्दरमैया को कांग्रेस के ज्यादातर विधायकों का समर्थन भी हासिल है, जिन्होंने राज्य में पार्टी विधायक दल की पहली बैठक में हुए गुप्त मतदान में मुख्यमंत्री पद के लिए उनके नाम के पक्ष में मतदान किया था। आम लोगों के बीच सिद्दरमैया की लोकप्रियता कर्नाटक में चुनाव प्रचार के दौरान स्पष्ट रूप से नजर आई थी। यही नहीं, राहुल गांधी के नेतृत्व वाली ‘भारत जोड़ो यात्रा’ के पिछले साल एक अक्टूबर को कर्नाटक में दाखिल होने के दौरान भी जनता के बीच सिद्धारमैया की लोकप्रियता का आलम देखने को मिला था। उनकी अपील पर बड़ी संख्या में लोग इस पदयात्रा में शामिल हुए थे।

कर्नाटक विधानसभा चुनाव से पहले भी कांग्रेस के शीर्ष नेताओं में इस बात पर व्यापक सहमति थी कि अगर पार्टी राज्य की सत्ता में आती है, तो सिद्धारमैया मुख्यमंत्री पद के सबसे उपयुक्त दावेदार होंगे। सिद्धारमैया कांग्रेस पार्टी के दिवंगत नेता देवराज उर्स के बाद कर्नाटक के मुख्यमंत्री के रूप में पांच साल का कार्यकाल पूरा करने वाले एकमात्र मुख्यमंत्री भी हैं। नौ बार विधायक रह चुके सिद्दरमैया वर्ष 2006 में जनता दल (सेक्युलर) का दामन छोड़ कांग्रेस पार्टी में शामिल हुए थे। 

वह तीन ‘अहिंदा’ रैलियों के आयोजन के बाद जद (एस) से अलग हो गए थे और अपना नया संगठन बनाया था, जिसने जिला पंचायत चुनावों में काफी अच्छा प्रदर्शन किया था। बाद में सिद्धारमैया कांग्रेस नेतृत्व की पेशकश पर उसी साल अपने समर्थकों के साथ पार्टी में शामिल हो गए थे। ‘अहिंदा’ एक सामाजिक-राजनीतिक अवधारणा है, जो अल्पसंख्यकों, पिछड़े वर्गों और दलितों का प्रतिनिधित्व करती है। कांग्रेस में शामिल होने के तुरंत बाद सिद्दरमैया ने चामुंडेश्वरी विधानसभा सीट से इस्तीफा दे दिया था। उन्होंने कांग्रेस के टिकट पर उसी सीट से उपचुनाव लड़ा और जीत भी दर्ज की । 

2008 के लोकसभा चुनावों के लिए सिद्दरमैया को कर्नाटक प्रदेश कांग्रेस कमेटी (केपीसीसी) की प्रचार समिति का अध्यक्ष नियुक्त किया गया था और उन्होंने पार्टी के पक्ष में ज्यादा से ज्यादा वोट हासिल करने के लिए एड़ी-चोटी का जोर लगाया थ। 2008 के चुनावों में वह वरुणा सीट से निर्वाचित हुए थे। 12 अगस्त 1948 को मैसूर जिले के वरुणा होबली के सिद्धरमणहुंडी गांव में जन्मे सिद्दरमैया एक गरीब किसान परिवार से आते हैं। वह मैसूर विश्वविद्यालय से विज्ञान में स्नातक की डिग्री हासिल करने वाले अपने परिवार के पहले सदस्य थे। उन्होंने मैसूर विश्वविद्दालय से ही कानून की डिग्री भी ली और कुछ समय तक वकालत की।

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