अमेठी : कागज में ओडीएफ हुआ जिला, और खुले में शौंच जा रहे हैं लोग

Amrit Vichar Network
Published By Pradumn Upadhyay
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अमृत विचार, अमेठी । प्रशासन की ओर से अमेठी को ओडीएफ घोषित किया जा चुका है, जबकि हकीकत इससे कोसों दूर है। जिले के हजारों घरों में अब तक शौचालय नहीं बना है। वहीं कई घरों में बने शौचालयों का प्रयोग नहीं किया जा रहा है। कई जगहों पर शौचालय निष्प्रयोज्य होने के कारण लोग खुले में शौच जा रहे हैं। वहीं इसके लिए जिम्मेदार अधिकारी कुछ भी स्पष्ट न बता कर टाल-मटोल कर रहे हैं।

अदम गोंडवी की पंक्तियां ‘कागजों में तुम्हारे शहर का मौसम गुलाबी है, मगर यह आंकड़े झूठे और दावा किताबी है’ जिले में एकदम सटीक साबित हो रही हैं। प्रशासन की ओर से अमेठी को खुले में शौच मुक्त जिला घोषित किया जा चुका है, जबकि हकीकत इसके एकदम विपरीत है। सिर्फ गांवों में ही नहीं नगर में भी तमाम परिवार ऐसे हैं जिन्हें अब तक शौचालय की सुविधा नहीं मिली है। शौचालय के अभाव में लोग आज भी मार्ग की पटरियों व खेतों में शौच के लिए जा रहे हैं। कभी-कभी सड़कों पर शौच के लिए जाते समय हादसे का शिकार होना पड़ता है। ऐसा ही कई अन्य गांव में भी हुआ है। जहां शौच के लिए जाते समय लोग सर्प दंश का शिकार हुए हैं। वहीं कई महिलाओं व किशोरियों के साथ अपहरण व दुष्कर्म की घटनाएं हुईं। इसके बावजूद प्रशासन चुप्पी साधे है।

न नसीब हुई छत और न मिला शौचालय

विकास खंड बहादुरपुर के गांव पूरे चौहान निवासी लाल बहादुर दो भाई थे। इनका आपस में बंटवारा भी हो गया था। लाल बहादुरपुर को तमाम प्रयास के बाद भी आवास व शौचालय योजना का लाभ नहीं मिला। इस पर वह परिवारीजनों के साथ फूस की टटिया पर जीवन यापन कर रहा है। चार वर्ष पहले बीडीओ ने बताया था कि मुख्यमंत्री आवास के लिए नाम भेज दिया गया है। लाल बहादुर की पत्नी ने बताया कि उसके पति ने कई बार आवास और शौचालय योजना का लाभ लेने के लिए प्रयास किया, लेकिन न तो प्रधान ने सुनी और न ही अधिकारियों ने। मवई आलमपुर ग्राम पंचायत के आलमपुर निवासिनी रेशमा ने बताया कि घास फूस की झोपड़ी रखकर किसी तरह गुजर बसर कर रही हूं।

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बहादुरपुर ग्राम पंचायत के गांव पूरे केसरी निवासी मो. हारून ने बताया कि इस बुढ़ापे में अपनी पत्नी के साथ अधगिरे कच्चे मकान में रह कर जान हथेली पर रखकर किसी तरह रह रहा हूं, आवास के लिए ब्लाक मुख्यालय के चक्कर लगाते लगाते थक हार चुका हूं। उसी गांव के निवासी इशरार उर्फ लाला ने बताया कि दीवार के सहारे पन्नी तान कर उसके नीचे बूढ़ी मां, पत्नी व तीन छोटे-छोटे बच्चों के साथ धूप छांव व बारिस में दिन रात गुजारना मुश्किल हो गया है, हल्की बारिश में ही जलता चूल्हा पानी की बूंदों से बुझ जाता है। रेखा देवी का कहना है कि छप्पर रखकर पत्नी व दो छोटे छोटे बच्चों के साथ किसी तरह दिन काट रही हूं, एक अदद छत मोहैया हो जाती तो रिश्क भरी जिंदगी से निजात मिल जाती। वहीं वृद्ध महिला लखपता ने बताया कि एक दिव्यांग बेटी के साथ कच्ची दीवार पर छप्पर रखकर रहती हूं, बारिस में कब दीवार गिर जाए कुछ कहा नहीं जा सकता, दीवार के सहारे रखे छप्पर के नीचे रहने को मजबूर हूं, आवास मिल जाता तो बुढापा किसी तरह कट जाता।

निष्प्रयोज्य पड़े शौचालय, मवेशी बांध रहे ग्रामीण

गांवों में बने कई शौचालय निष्प्रयोज्य पड़े हैं। इनके चारों तरफ झाड़ियां उग आई है। कहीं-कहीं तो प्रधान व ठेकेदार ने शौचालय निर्माण के लिए पैसा ले लिया था। उनकी ओर से शौचालय का निर्माण अधूरा छोड़ दिया गया। कुछ शौचालय जमीनी विवाद के कारण शौचालय निष्प्रयोज्य पड़ा है। गांव में कई अन्य शौचालय अधूरे होने के कारण उसमें ग्रामीण मवेशी बांध रहे हैं। कुछ लाभार्थी पैसा ले लेने के बाद भी बार बार कहने के बावजूद शौचालय नहीं बनवा रहे हैं।

स्वेच्छाग्राही टीम नहीं है एक्टिव

हर गांव में खुले में शौच जाने से रोकने के लिए सरकार की ओर से एक स्वेच्छा ग्राही टीम बनाई गई थी, जिसमें प्रत्येक गांव से करीब एक दर्जन लोग टीम में शामिल किए गए थे। इनका काम लोगों को खुले में शौच के लिए न जाने के लिए जागरूक करना था। टीम को इस बात का भी ध्यान रखना था कि जिन घरों में शुचालय बने हुए है, वे इसका इस्तेमाल कर भी रहे हैं या नहीं। इस काम के लिए इन्हें पैसा भी दिया गया था। फिलहाल स्वेच्छाग्रही टीम के कागजों का हिस्सा बनकर रह गई है।

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